Book Title: Arthadhigama Chintan
Author(s): Darbarilal Kothiya
Publisher: Z_Darbarilal_Kothiya_Abhinandan_Granth_012020.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ पड़ेगी। यदि उसे असमुद्र कहा जाय तो शेषाांशोंको भी असमुद्र कहा जायेगा और उस हालतमें समुद्रका व्यवहार कहीं भी नहीं होगा / ऐसी स्थितिमें किसीको ‘समुद्रका ज्ञाता' नहीं कहा जायगा / अतः नयको प्रमाणैकदेश मानकर उसे जैनदर्शनमें प्रमाणसे पृथक् अधिगमोपाय बताया गया है / वस्तुतः अल्पज्ञ ज्ञाता और श्रोताको दृष्टिसे उसका पृथक् निरूपण अत्यावश्यक है / संसारके समस्त व्यवहार और वचन-प्रवृत्ति नयोंके आधारपर ही चलते हैं। अनन्तधर्मात्मक वस्तुके एक-एक अंशको जानना या कहकर दूसरोंको जनाना नयका काम है और उस पूरी वस्तुको जानना प्रमाणका कार्य है / यदि नय न हो तो विविध प्रश्न, उनके विविध समाधान, विविध वाद और उनका समन्वय आदि कोई भी नहीं बन सकता। स्वार्थप्रमाण गूगा है। बह बोल नहीं सकता और न विविध वादों एवं प्रश्नोंको सुलझा सकता है / वह शक्ति नयमें ही है / अतः नयबाद जैन दर्शनकी एक विशेष उपलब्धि है और भारतीय दर्शनको उसकी अनुपम देन है / उपसंहार ___ वस्तु अनेक धर्मात्मक है, उसका पूरा बोध हम इन्द्रियों या वचनों द्वारा नहीं कर सकते / हाँ, नयोंके द्वारा एक-एक धर्मका बोध करते हए अनगिनत धर्मोंका ज्ञान कर सकते हैं। वस्तुको जब द्रव्य या पर्यायरूप, नित्य या अनित्य, एक या अनेक आदि कहते हैं तो उसके एक-एक अंशका ही कथन या ग्रहण होता है। इस प्रकारका ग्रहण नय द्वारा ही संभव है. प्रमाण द्वारा नहीं। प्रसिद्ध जैन तार्किक सिद्धसेनने नयवादकी आवश्यकतापर बल देते हुए लिखा है कि जितने वचन-मार्ग हैं उतने ही नय है / मूलमें दो नय स्वीकार किये गये हैं२-१. द्रव्याथिक और 2. पर्यायाथिक / द्रव्य, सामान्य, अन्वयका ग्राहक द्रव्यार्थिक और पर्याय, विशेष, व्यतिरेकका ग्राही पर्यायाथिक नय है। द्रव्य और पर्याय ये सब मिलकर प्रमाणका विषय हैं / इस प्रकार विदित है कि प्रमाण और नय ये दो वस्तु-अधिगमके साधन हैं और दोनों ही अपनेअपने क्षेत्रमें वस्तु के ज्ञापक एवं व्यवस्थापक हैं। 1. 'जावइया वयणपहा तावइया चेव होंति णववाया' -सन्मतितर्क 3-47 / 2. 'नयो द्विविधः, द्रव्यार्थिकः पर्यायाथिकश्च / पर्यायाथिकन येन भावतत्त्वमधिगन्तध्यम्, इतरेषां त्रयाणां द्रव्याथिकनयेन, सामान्यात्मकत्वात / द्रव्यमर्थः प्रयोजनमस्येत्यसौ। द्रव्याथिकः पर्यायोऽर्थः प्रयोजनमस्येत्यसो / पर्यायाथिकः तत्सर्वं समुदितं प्रमाणनाधिगन्तव्यम्।'-सर्वार्थसि० 1-33 / - 229 - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5