Book Title: Arsha Grantho me Vyavruhatta paribhashika Author(s): Aditya Prachandiya Publisher: Z_Rajendrasuri_Janma_Sardh_Shatabdi_Granth_012039.pdf View full book textPage 5
________________ साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ आस्रव-आङ - श्रु+अव् प्रत्यय होने पर आश्रव शब्द निष्पन्न हुआ है जिसका अर्थ है आकर्षण होना । कर्म के उदय में भोगों की जो राग सहित प्रवृत्ति होती है वह नवीन कर्मों को खींचती है अर्थात् शुभाशुभ कर्मों के आने का द्वार ही आस्रव कहलाता है ।25 इस प्रकार कर्म के आकर्षण के हेतुभूत आत्मपरिणाम का नाम आस्रव है । वस्तु के गुण को तत्त्व कहा गया है। जैन दर्शन में सात तत्त्वों-जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा, तथा मोक्ष की चर्चा की गई है"6-यथा जीवाजीवात्रबबन्धसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्त्वम् । इस प्रकार आस्रव तत्त्व का भेद विशेष है। कार्मण स्कन्ध को आकर्षित करने वाली एक योग नामक शक्ति जीव में होती है जो मन, वच, काय का सहयोग पाकर आत्मा के प्रदेशों में हलचल उत्पन्न करती है। इस योग शक्ति से जो कार्मण स्कन्धों का आकर्षण होता है, उसे आस्रव कहते हैं27.--- यथा-- कायवाङ मनःकम योगः ॥१॥ सः आस्रवः ॥२॥ राजवात्तिक में पुण्य-पाप रूप कर्मों के आगमन के द्वार को आस्रव कहा गया है28- यथा पुण्यपापागम द्वार लक्षण आस्रवः । आस्रव को दो भागों में विभाजित किया गया है29-यथा आसवदि जेण कम्मं परिणामेणप्पणे स विण्णेओ। भावासवो जिणुत्तो कम्मासवणं परो होदि । १. द्रव्याव-ज्ञानावरणादिरूप कर्मों का जो आस्रव होता है, वह द्रव्यास्रव है । २. भावालव-जिस परिणाम से आत्मा के कर्म का आस्रव होता है, वह भावास्रव कहलाता है। द्रव्य द्रव्यं पदार्थः । द्रव्य का अर्थ पदार्थ है । द्रव्य वह मूल विशुद्ध तत्त्व है जिसमें गुण विद्यमान हो तथा जिसका परिणमन करने का स्वभाव है।—यथा दवियदि गच्छदि ताई ताई सन्भाव पज्जयाइं जं । दवियं तं भण्णं ते अण्णमदं तू सत्तादो॥ गुण, पर्याय, सदा पाए जाएँ, नित्य रूप हो, अनेक रूप परिणति कम ही वह द्रव्य है31-यथा तं परियाणहि दत्व तुहूँ जं गुण पज्जय-जुत्तु । सह भुव जाणहि ताहे गुण कम भुव पज्जउ वुत्तु ॥ वस्तुतः गुण और पर्यायों के आश्रय को द्रव्य कहते हैं । द्रव्य दो प्रकार से कहे गए हैं - यथा (क) जीवद्रव्य-जीव चेतनशील द्रव्य है। (ख) अजीवद्रव्य-अजीव चेतनाशून्य द्रव्य है। * आस्रव की उक्त व्युत्पत्ति लेखक को स्वनिर्मित लगती है । वस्तुतः द्रव्यसंग्रह के अनुसार ही '' धातु से आस्रव शब्द निष्पन्न है जिसका अर्थ है-बहकर आना। आर्ष ग्रन्थों में व्यवहृत पारिभाषिक शब्दावलि और उसका अर्थ अभिप्राय : डॉ० आदित्य प्रचंडिया | १६५Page Navigation
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