Book Title: Arishta Nemi ki Aetihasikta
Author(s): Devendramuni Shastri
Publisher: Z_Munidway_Abhinandan_Granth_012006.pdf

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Page 2
________________ भगवान अरिष्टनेमि की ऐतिहासिकता ३५६ श्रीकृष्ण इस उपदेश को श्रवण कर अपिपास हो गये, उन्हें अब किसी भी प्रकार की शिक्षा की आवश्यकता नहीं रही। वे अपने आपको धन्य अनुभव करने लगे। प्रस्तुत कथन की तुलना हम जैन आगमों में आये हए भगवान अरिष्टनेमि के भविष्य कथन से कर सकते हैं। द्वारिका का विनाश और श्रीकृष्ण की जरत्कुमार के हाथ से मृत्यु होगी, यह सुनकर श्रीकृष्ण चिन्तित होते हैं। तब उन्हें भगवान उपदेश सुनाते हैं। जिसे सुनकर श्रीकृष्ण सन्तुष्ट एवं खेदरहित होते हैं। ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद४ में भगवान अरिष्टनेमि को ताऱ्या अरिष्टनेमि भी लिखा है स्वस्ति न इन्दो वृद्ध श्रवाः स्वति नः पूषा विश्ववेदाः ।। स्वस्तिनस्तार्योऽरिष्टनेमिः स्वस्ति नो वृहस्पतिदधातु ॥५ विज्ञों की धारणा है कि अरिष्टनेमि शब्द का प्रयोग जो वेदों में हुआ है वह भगवान अरिष्टनेमि के लिए है।६।। महाभारत में भी 'ताय' शब्द का प्रयोग हुआ है। जो भगवान् अरिष्टनेमि का ही अपर नाम होना चाहिए। उन्होंने राजा सगर को जो मोक्षमार्ग का उपदेश दिया है वह जैनधर्म के मोक्षमन्तव्यों से अत्यधिक मिलता-जुलता है। उसे पढ़ते समय सहज ही ज्ञात होता है कि हम मोक्ष सम्बन्धी जैनागमिक वर्णन पढ़ रहे है। उन्होंने कहा सगर ! मोक्ष का सुख ही वस्तुतः समीचीन सुख है। जो अहर्निश धन-धान्य आदि के उपार्जन में व्यस्त है, पुत्र और पशुओं में ही अनुरक्त है वह मूर्ख है, उसे यथार्थ ज्ञान नहीं होता । जिसकी बुद्धि विषयों में आसक्त है, जिसका मन अशान्त है, ऐसे मानव का उपचार कठिन है, क्योंकि जो राग के बंधन में बंधा हुआ है वह मूढ़ है तथा मोक्ष पाने के लिए अयोग्य है। ऐतिहासिक दृष्टि से यह स्पष्ट है कि सगर के समय में वैदिक लोग मोक्ष में विश्वास नहीं करते थे । अत: यह उपदेश किसी वैदिक ऋषि का नहीं हो सकता । उसका सम्बन्ध श्रमण संस्कृति यजुर्वेद में अरिष्टनेमि का उल्लेख एक स्थान पर इस प्रकार आया है-अध्यात्मयज्ञ को -ऋग्वेद १०।१२।१७८११ १ अन्तकृद्दशा, वर्ग ५, अ०१ २ (क) त्वमू षु वाजिन देवजूतं सहावानं तरुतारं रथानाम् । अरिष्टनेमि पृतनाजमाशु स्वस्तये ताय मिहा हुवेम ॥ (ख) ऋग्वेद १११११६ ३ यजुर्वेद २५।१६ ४ सामवेद ३ ५ ऋग्वेद शश१६ ६ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन, पृ० ७ ७ एवमुक्तस्तदा ताक्ष्य: सर्वशास्त्र विदांवरः । बिबुध्य संपदं चाग्रयां सद्वाक्यमिदमब्रवीत ॥ -महाभारत शान्तिपर्व २८८४ ८ महाभारत, शान्तिपर्व २६८।५, ६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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