Book Title: Arishta Nemi ki Aetihasikta
Author(s): Devendramuni Shastri
Publisher: Z_Munidway_Abhinandan_Granth_012006.pdf

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Page 5
________________ 362 मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ पी० सी० दीवान ने लिखा है 'जैन ग्रन्थों के अनुसार नेमिनाम और पार्श्वनाथ के बीच में 84000 वर्ष का अन्तर है / हिन्दू पुराणों में इस बात का निर्देश नहीं है कि वसुदेव के समुद्रविजय बड़े भाई थे और उनके अरिष्टनेमि नामक कोई पुत्र था।' प्रथम कारण के सम्बन्ध में दीवान का कहना है कि हमें यह स्वीकार करना होगा कि हमारे वर्तमान ज्ञान के लिए यह सम्भव नहीं है कि जैन ग्रन्थकारों के द्वारा एक तीर्थकर से दूसरे तीर्थकर के बीच में सूदीर्घकाल का अन्तराल कहने में उनका क्या अभिप्राय है, इसका विश्लेषण कर सकें; किन्तु केवल इसी कारण से जैनग्रन्थों में वर्णित अरिष्टनेमि के जीवनवृत्तान्त को, जो अतिप्राचीन प्राकृत ग्रन्थों के आधार पर लिखा गया दूसरे कारण का स्पष्टीकरण करते हुए लिखा है कि भागवत सम्प्रदाय के ग्रन्थकारों ने अपने परम्परागत ज्ञान का उतना ही उपयोग किया है जितना श्रीकृष्ण को परमात्मा सिद्ध करने के लिए आवश्यक था। जैनग्रन्थों में ऐसे अनेक ऐतिहासिक तथ्य हैं जो भागवत साहित्य में उपलब्ध नहीं हैं। कर्नल टॉड ने अरिष्टनेमि के सम्बन्ध में लिखा है 'मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन काल में चार बुद्ध या मेधावी महापुरुष हुए हैं। उनमें पहले आदिनाथ और दूसरे नेमिनाथ थे। नेमिनाथ ही स्केन्डीनेविया निवासियों के प्रथम ओडिन तथा चीनियों के प्रथम 'फो' देवता थे। प्रसिद्ध कोषकार डाक्टर नगेन्द्रनाथ वसु, पुरातत्त्ववेत्ता डाक्टर फुहर्र, प्रोफेसर बारनेट, मिस्टर करवा, डाक्टर हरिदत्त, डाक्टर प्राणनाथ विद्यालंकार प्रति अन्य अनेक विद्वानों का स्पष्ट मन्तव्य है कि भगवान अरिष्टनेमि एक प्रभावशाली पुरुष हए थे, उन्हें ऐतिहासिक पुरुष मानने में कोई बाधा नहीं है। साम्प्रदायिक अभिनिवेश के कारण वैदिक ग्रन्थों में स्पष्ट नाम का निर्देश होने पर भी टीकाकारों ने अर्थ में परिवर्तन किया है, अतः आज आवश्यकता है तटस्थ दृष्टि से उस पर चिन्तन करने की। जब हम तटस्थ दृष्टि से चिन्तन करेंगे तो सूर्य के उजाले की भांति स्पष्ट ज्ञात होगा कि 1 जैन साहित्य का इतिहास-पूर्व पीठिका-ले०५० कैलाशचन्द्रजी, पृ० 170-171 2 अन्नल्स आफ दी भण्डारकर रिसर्च इन्स्टीट्यूट-पत्रिका, जिल्द 23, पृ० 122 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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