Book Title: Arhat Aradhana ka Muladhar Samyag Darshan
Author(s): Malla Muni
Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf

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Page 1
________________ मनिश्री श्रीमलजी आर्हत आराधना का मूलाधार सम्यग्दर्शन सम्पूर्ण मानवसभ्यता विकासक्रम का सुपरिणाम है. मानवजाति के आज तक के रूप पर यदि दृष्टिपात किया जाय तो क्रमिक विकास की अजस्र प्रवाहित होनेवाली स्रोतस्विनी का दर्शन-दिग्दर्शन किया जा सकता है. विकास की गतिशीलता स्वयं मानव पर ही निर्भर रही है. उसकी आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओंके साथ उसका अविच्छिन्न सम्बन्ध हैं. समस्त धर्म, दर्शन और संस्कृति इसी शाश्वत प्रक्रिया के अंग हैं. केवल धर्म, दर्शन और संस्कृति ही क्यों, समस्त मानव ज्ञान-विज्ञान ही इसी प्रक्रिया के अन्तर्गत हैं. प्रत्येक युग में इनका स्वरूप भिन्न-भिन्न परिलक्षित होगा. स्थिति, काल और वातावरण के अनुसार हर युग इनका सृजन करता रहा है. मिट्टी मिट्टी है पर कलाकार अपने मनोभावों के अनुसार उसे विभिन्न रूप देता रहता है. सृजन की यह प्रक्रिया सदैव गतिशील रही है. कभी मंद तो कभी तीव्र. यदि यों कहा जाय तो अधिक स्पष्ट होगा कि मनुष्य ने अपने निर्माण के लिए समस्त ज्ञान-विज्ञान का सृजन किया है. धर्म, दर्शन और संस्कृति भी मानव के मस्तिष्क की सहज उपज है और इसका आविष्कार भी उसने अपने लिए ही किया है. भारतीय धर्म-परम्परा में जीवन के प्रत्येक अनुष्ठान का केन्द्रबिंदु मनुष्य है. धर्म दर्शन तथा संस्कृति के क्षेत्र में सर्वत्र मनुष्य ही उपास्य रहा है. जिस धर्मक्रिया का फल मानवीय जीवन के लिए उपयोगी न हो, वह न भारतीय संस्कृति के लिए अनुकूल है और न आधुनिक जीवनपद्धति के लिए उपादेय विज्ञान, साहित्य, कला, राजनीति आदि की उपयोगिता की एक मात्र कसौटी मानव का प्रत्यक्ष परोक्ष लाभ है. जीवन के इस वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जहाँ एक ओर मानव की प्रतिष्ठा बढ़ी है, वहाँ दूसरी ओर स्वर्ग की कल्पनाओं में खोये रहने वाले लोगों को धरती का कुशल-मंगल पूछने का पाठ पढ़ना पढ़ा है. आज के इस जाने-पहचाने विश्व के समग्र विचारों का मध्य बिन्दु मानव के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं है. विश्वक्षितिज का प्रत्येक ग्रह-उपग्रह मानव रूपी केन्द्र के चारों ओर मंडराता है. विश्व की गति विधि का मूल आधार है मनुष्य. जो मनुष्य इतना महनीय और विश्वपरिधि का केन्द्र बिन्दु है, वह यथार्थ में है क्या ? हम इसे मिट्टी, पानी, प्राग, हवा आदि का संयोग मात्र मानें ? क्या यह जल में से उत्पन्न होने वाला और फिर जल ही में विलीन हो जाने वाला क्षणभंगुर एक बुद्बुद मात्र है ? नहीं. मनुष्य मात्र वही नहीं है, जो देखा जाता है. उसमें एक ऐसा अदृष्ट तत्त्व भी विद्यमान है, जो होकर भी दृष्टिगोचर नहीं होता । इसी तत्त्व का अन्वेषण करने के लिए भारत ने कई ऋषि महर्षि एवं आचार्य उत्पन्न किये. इसी के साक्षात्कार के लिए उन्होंने अपने जीवन तक को उत्सर्ग कर दिया. भारत में जो भिन्न-भिन्न मत-मतान्तर तथा वाद दृष्टिगोचर होते हैं वे इसी अदृष्ट के साक्षात्कार का निर्घोष कर रहे हैं. आत्मवादी दर्शनों की विचारधारा के अनुसार मनुष्य मर्त्य और अमृत का सुंदर संयोग है. इसमें कुछ ऐसा है, जो बार-बार बनता है, बिगड़ता है, सड़ता है और मिटता है. परन्तु साथ ही उसमें कुछ ऐसा भी सन्निहित है, जो न उत्पन्न Jain Education Intransnak or Pavele & Personal De C www.anyalbrary.org

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