Book Title: Ardhamagdhi Vyakaran
Author(s): K V Apte
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 501
________________ ५०० अर्धमागधी व्याकरण विसियाउराणं। (समरा.पृ.३१७) २७) न सव्वे वि एगसहावा भवंति। (कथा.पृ.१११) २८) विचित्तसहावा पाणिणो। (कथा.पृ.१११) २९) महिलाणुरागरत्तो किं न कुणइ साहसं पुरिसो। (पउम.३३.६९) ३०) किं कुणइ पुरिसयारो पुरिसयारो पुरिसस्स विहिम्मि विवरीए। (नल.पृ.१२) ३१) आवयाए वज्जकढिणहियया चेव महापुरिसा हवंति। (समरा.पृ.२०८) ३२) पुव्वकयं सुकयं चिय जीवाणं सुक्खकारणं होइ। दुकयं च कयं दुक्खाण कारणं होइ निब्भंत।। (सिरि.१००) ३३) जस्सत्थो तस्स सुहं जस्सत्थो पंडिओ य सो लोए। जस्सत्थो सो गुरुओ अत्थविहूणो य लहुओ उ।। (पउम.३५.६६) ३४) न य परलोए निव्वाहो धम्मं विणा। (कथा.९६) ३७) संसारे रे सुहं कत्तो। (अगड.३२८) ३८) कण्णकडुयं पि सच्चं हियं परिणामसुंदरं भासियव्वं। (कथा.पृ.१६३) ३९) नियहिययनिम्मलाई सुयणा पेच्छंति सव्वहिययाई। (जिना.पृ.२०) ४०) सप्पुरिससंगाउ णरो इह परलोए य लहइ कल्लाणं। (धर्मो.पृ.६६)

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