Book Title: Ardha Kathanak Punarvilokan
Author(s): Kailash Tiwari
Publisher: Z_Jaganmohanlal_Pandit_Sadhuwad_Granth_012026.pdf

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Page 4
________________ कविवर बनारसीदास की चतुःशती के अवसर पर विशेष लेख अद्धकथानक : पुनर्विलोकन ४१ बहुत पढ़ बामन और भाट । बनिक पुत्र तो बैठे हाट । ___ बहुत पढ़ सो मांगे भीख । मानहु पूत बड़े की सीख ॥ २३/२०० (वर्तमान सन्दर्भ में भी यह कथन आंशिक सही है) इस काल में व्यापारी लम्बी यात्राएं करते थे । पर ये यात्राएँ निरापद नहीं थी२४ । यद्यपि बादशाह यात्राओं और यात्रियों की सुरक्षा-सुविधा का ध्यान रखते थे । २५ चोर और डाकुओं का भय रहता ही था। खरगसेन लुट चुके थे और कवि स्वयं भी चोरों के गांव पहुँच गया था। 'अद्धकथानक' में आगरे में पहली बार फैले 'गाँठिका रोग' (प्लेग) की बात कही है। गांठ निकलते ही आदमी मर जाता था। भय के मारे लोग आगरा छोड़कर चले गये थे। बनारसीदास ने भी अजीजपुर गाँव में डेरा जमाया था ।२६ यह घटना संवत् १६७३ की है । तुजुक के जहाँगीरी में भी इसका जिक्र है । पर उसमें यह नहीं कहा गया है कि आगरे पर भी इसका प्रभाव हुआ था। 'अर्द्धकथानक' से पता चलता है कि बादशाहों की दृष्टि जैन सम्प्रदाय एवम् इनकी उपासना की आजादो के प्रति नरम एवम् उदार थी। दो संघ यात्राओं-हीरानन्द मुकीम, और धन्नाराय की-में जहाँगोर ओर पठान सुलतान ने सहयोग दिया था।२८ सन्दर्भ १. इस निबन्ध के लिखने में 'अर्द्धकथानक' [तृतीय संस्करण], प्रकाशक अखिल भारतीय जैन युवा फेडरेशन, जयपुर का उपयोग किया गया है। सन्दर्भ उल्लेख में पहले पृष्ठ संख्या और फिर छन्द संख्या दी गयी है। २. हिन्दी का यह प्रथम आत्मचरित है ही, पर अन्य भारतीय भाषाओं में इस प्रकार की और इतनी पुरानी पुस्तक मिलना आसान नहीं है । बनारसोदास चतुर्वेदो भूमिका पृ० २९ । ३. कविवर बनारसीदास : व्यक्तित्व और वर्तृत्व : अध्यात्म प्रभाजैन पृ० ६१ । ४. बनारसीदास, भषण, मतिराम. वेदांग राय, हरीनाथ आदि हिन्दी के विद्वान शाहजहां से संरक्षण प्राप्त किए हुए थे । मध्यकालीन भारत : एल० पी० शर्मा पृ० ५०६ । ५. हिन्दी साहित्य कोश भाग २, पृ० ३४५ । ६. मध्य देश को बोली बोल । गभित बत कडौं हिय खोल । अर्द्धकथा २/७ । ७. हिन्दी साहित्य कोश भाग २, पृ० ३४४ । ८. सो बनारसी निज कथा । कहै आप सो आप : अ० कथा० २/३ । ९. कहौं अतीत-दोष गुणवाद । वर्तमान नाई मरजाद । जैसी सुनो बिलोकी नैन । तैसी कछू कहो मुख बैन २/५ । १०. कविवर बनारसीदास का दृष्टिकोण आधुनिक आत्मचरित लेखकों के दृष्टिकोण से मिलता-जुलता था। वनारसीदास चतुर्वेदी पृ० २९ भूमिका से। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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