Book Title: Ardha Kathanak Punarvilokan Author(s): Kailash Tiwari Publisher: Z_Jaganmohanlal_Pandit_Sadhuwad_Granth_012026.pdf View full book textPage 3
________________ ४४० पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ [खण्ड कोड़े लगवाए । व्यापारी भाग निकले। खरगसेन सइजादपुर चले गए। किलीच खां के आगरे चले जाने पर वे (संवत् १६५६) जौनपुर आए । बनारसीदास ने इसी वर्ष कौड़ी बेचकर व्यापार का शुभारम्भ किया था। १४ वर्ष की अवस्था तक बनारसीदास ने नाममाला, अनेकार्थ, ज्योतिष और कोकशास्त्र पढ़ डाले और व्यापार छोड़ 'आशिकी' करने लगे। परिणाम-उपदेश । किसी प्रकार रोगमुक्त हुए फिर धर्म आस्था (जैनी) से जुड़े व्यापार से जुड़े। संवत् १६६४-६७ तक व्यवसाय में घाटा उठाया। पर विभिन्न व्यवसायों से जुड़े रहे। व्यापार के सन्दर्भ में पटना/आगरा की यात्राएं की। संवत् १६७३ में पिता की मृत्यु के बाद कपड़े का व्यापार किया। अपना हिसाब चुकाने आगरा गए, रास्ते में मुसीबतें झेली। यह उनकी अन्तिम यात्रा थी। बनारसीदास के 'अर्द्धकथानक' से उस काल की कुछ सूचनाएं मिलती है । अध्यात्मिक गोष्ठियां आगरा में उन दिनों आध्यात्मिक गोष्ठियाँ हुआ करती थीं। बनारसीदास भी ऐसी गोष्ठियों में शामिल होते थे। ये गोष्ठियाँ मुगल दरबार परम्परा की अंग थी। इन गोष्ठियों से अध्यात्म के प्रति रुझान उत्पन्न होता था। ये साधना को सही दिशा देने में असमर्थ रहती थी। बनारसीदास भी भटकाव में उलझे थे।" संवत् १६८२ में सही पथ-प्रदर्शक रूपचन्द पाण्डे के कारण उन्हें सही ज्ञान मिला । इतिहास और समाज ____ अद्धकथानक में ऐतिहासिक सूचनाएं भी हैं जैसे-अकबर की मृत्यु, जहाँगीर का सिंहासनारूढ़ होना और उसकी मृत्यु; और शाहजहाँ का बादशाह होना ये सभी सूचनाएँ ऐतिहासिक तिथियों की पुष्टि करती हैं । इसमें अनेक नगरों के नाम है पर जौनपुर नगर का विशेष परिचय दिया गया है। मध्यकाल में यह समृद्ध नगर था। बनारसीदास ने जोनासाइ को इस नगर को बसाने वाला कहा । १८ इतिहास के अनुसार सन् १३८९ में इसे फिरोज तुगलक के पुत्र सुल्तान मुहम्मद के दास ने इसे बसाया था। यह दास ही जौनाशाह हो सकता है। 'अद्धंकथानक' में इसकी भव्यता की सूचना है। यहाँ सतमंजिले मकान, बावन सराय, ५२ परगने; ५२ बाजार और बावन मंडियां थीं। नगर में चारों वर्ग के लोग थे । शूद्र छत्तीस प्रकार के थे। _ 'अर्द्धकथानक' के माध्यम से समाज की हल्की सी झलक मिलती है। जौनपुर नगर-वर्णन में विभिन्न कारीगरजातियों का जो ब्यौरा है, उससे यही लगता है कि वार्षिक वृत्तियों में लगे लोगों को समाज में नीचा दर्जा दिया गया था-इन्हें शूद्र कहा जाता था। यहां तक कि चित्रकार, हलवाई और किसान भी शूद्रों की श्रेणी में आते थे। बनारसीदास ने शूद्रों को जौनपुर में उपस्थित कुछ जातियों (वर्गो) का उल्लेख किया है । बनारसीदास ने मुगल-शासन-व्यवस्था के दो प्रसंग रखे है-किलीच खां" द्वारा उगाही और यात्रा के समय मुसीबत में पड़ने पर हाकिमों द्वारा रिश्वत लेना। किलीच खां जब जौनपुर का हाकिम बना, तो मनचाही भेंट न मिलने पर जौहरियों को अकारण दण्डित किया ।२ इन दिनों हाकिमों की मनमानी और स्व-इच्छा प्रमुख थी। जौनपुर से आगरा की यात्रा में नकली सिक्कों के चलाने के अभियोग में बनारसीदास के साथियों को पकड़ा गया। रिश्वत देकर ही उन्हें और उनके साथियों को इस झूठे अभियोग से त्राण मिला था।२३ समाज में शिक्षा-व्यवस्था परम्परागत ढंग से की जाती थो । व्यापारियों के लिए अधिक पढ़ना-लिखना ठीक नहीं माना जाता था। पढ़ने-लिखने का काम ब्राह्मणों ओर भादों के जिम्मे था। व्यापारो का अधिक पढ़ने का अर्थ था भीख मांगना : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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