Book Title: Aradhana Sara
Author(s): Kanakvijay
Publisher: Vijaysiddhisuri Granthmala

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Page 165
________________ १४८] :: :: :: :: श्री सा२।५रि॥ ५यना आसी गयसुकुमालो अल्लयचम्मं व कीलयसएहिं। धरणीअले उचिद्धो तेणवि आराहि मरणं ॥८७॥ मंखलिणावि य अरहओ सीसा तेअस्स उवगया दड्डा ते तहवि डज्झमाणा पडिवन्ना उत्तम अटुं॥८८॥ परिजाणई तिगुत्तो जावजीवाइ सव्वमाहारं । संघसमवायमज्झे सागारं गुरुनिओगेणं ॥८९॥ अहवा समाहिहेउं करेइ सो पाणगस्स आहारं । तो पाणगंपि पच्छा वोसिरइ मुणी जहाकालं ॥१०॥ खामेमि सव्वसंघं संवेग सेसगाण कुणमाणो । मणवइजोगेहिं पुरा कयकारिअअणुमए वावि ॥११॥

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