Book Title: Aprakashit Prakrut Shataktraya Ek Parichaya
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: USA Federation of JAINA

View full book text
Previous | Next

Page 2
________________ डॉ. प्रेम सुमन जैन (१) भण्डारकर ओरियन्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, पूना, कलेक्शन नं० पांचवा ( १८८४-८७ ) ग्रन्थ नं०११७०। (२) लीबड़ी जैन ग्रन्थ भण्डार, पोथी नं० ५७८ । (३) जैनानन्द ग्रन्थ भण्डार, गोपीपुरा, सूरत, पोथी नं० १६४८ । भीमसी मानेक, बम्बई द्वारा 'प्रकरणरत्नाकर' के भाग चार में एक 'इन्द्रिय पराजय शतक' प्रकाशित हुआ है। यह पुस्तक देखने को नहीं मिली । हो सकता है इसका और प्राकृत इंद्रियशतक का कोई सम्बन्ध हो। रचनाकार के नाम का उल्लेख कहीं नहीं है । इन्द्रियपराजय शतक पर सं० १६६४ में गुणविनय ने एक टीका भी लिखी है।' प्राकृत इन्द्रियशतक का प्रारम्भ इस प्रकार होता हैआदि अंश ॐ नमः सिद्धेभ्यः ।। सो च व सूरो सो चेव पंडियो तं पसंसिमो निच्चं । इंदिय चोरेहि सया न लुहियं जस्स चरणघणं ॥ १ ॥ इंदिय चवला तुरगो दुग्गइ मग्गाणुधाविणो णिच्चं । भाविय भवस्स रूवो रुंभइ जिणवयणरिस्सीहिं ।। २ ।। इंदिय धुत्ताणमहो तिलंतुसमित्तंपि दिसु मा पसरो। जइ दिण्णो तो नोउं जत्थ खणो वरिस कोडि समो ॥ ३ ॥ अंतिम अंश दुक्करामे एहि कयं जेहिं समत्थेहि जुवणच्छहि । भग्गाइंदियसण्णं धिइपायारं वि लग्गेहिं ।। ९९ ॥ ते धण्णा ताणं णमो दासोऽहं ताण संजमधाराणं । अह अहच्छि पिरीओ जाण ण हियए खुडकति ॥ १० ॥ किं बहुणा जइ वच्छसि जीव तुमं सासयं सुहं अरूअं । ता पिअसु विसइविमुहो संवेगरसायणं णिच्च ।। १०१ ।। ॥ इति श्रीइंद्रियशतक समाप्तं ।। इस इंद्रिय शतक में कुल १०१ प्राकृत गाथाएँ हैं। इन गाथाओं के ऊपर पुरानी हिन्दी में टिप्पण भी लिखे हुए हैं। इनमें से कुछ उदाहरण यहाँ द्रष्टव्य हैंगाथा-१ सोइ सूरमा पुरुष सोइ पुरुष पंडित ते हवइ प्रसंस्यज्यो नित्यं । जेह इंदियरूपिया चोर सदा । __ तेहने नथी लूटाव्या चरितरूप धनु । १. वही, पृ० ४०, कान्तिविजय जी का निजी संग्रह, बड़ौदा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6