Book Title: Apbhramsa ke Khand aur Muktak Kavyo ki Visheshtaye Author(s): Aditya Prachandiya Publisher: Z_Jaganmohanlal_Pandit_Sadhuwad_Granth_012026.pdf View full book textPage 3
________________ अपभ्रंश के खण्ड और मुक्तक काव्यों की विशेषताएँ ४२९ जैनधर्म पर आधारित मुक्तक काव्यों जा जहाँ तक प्रश्न है पहिले यहाँ आध्यात्मिक काव्यों की चर्चा करेंगे। आध्यात्मिक रचना करने वाले कवि प्रायः जैन धर्मावलम्बी ही हैं। इस प्रकार के काव्यों में जैनधर्म की जो अभिव्यञ्जना हुई है, उसमें धार्मिक संकीर्णता, कट्टरता और अन्य धर्मों के प्रति विद्वेष भावना के अभिदर्शन नहीं होते। इन कवियों का लक्ष्य मनुष्य को सदाचारी बनाकर उसके जीवन स्तर को ऊंचा ऊठाकर श्रेयस्कर बनाना था। इनमें बाह्य आचार, कम-कलाप, तीर्थयात्रा व्रत आदि की उपेक्षा जीवन में सदाचार एवं आन्तरिक शुद्धि के किए प्रेरित किया है। इन्होंने बताया कि परमतत्व इसी शरीर-मंदिर में सम्भव है और उसी की उपासना से मानव शाश्वत सुख को प्राप्त कर सकता है। अपभ्रंश के इन कवियों का जीवन धार्मिक था। ये पहले सन्त थे पीछे कवि । इनके काव्य में भावों की प्रधानता रही है और कलापक्ष वस्तुतः गौण है। कविवर योगीन्द्र कृत 'परमात्म-प्रकाश' तथा 'योगसार' नामक काव्य विख्यात हैं। इन काव्यों में कवि ने बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा के स्वरूप का विवेचन किया है साथ ही परमात्मा के ध्यान पर बल दिया है। सांसारिक बन्धनों तथा पाप-तुण्यों को त्याग कर आत्मध्यान लीन ही मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। मुनि रामसिंह रचित 'दोहापाहुड' जिसमें अध्ययन चिन्तन है, अपभ्रंश का आध्यात्मिक काव्य है । कवि ने इस विख्यात रचना में आत्मानुभूति और सदाचरण के विना कर्मकाण्ड की निस्सारता का प्रतिपादन किया है। सच्चासुख, इन्द्रियनिग्रह आत्मध्यान में विद्यमान है । इसके अतिरिक्त सुप्रभाचार्य कृत "वैराग्यसार" आदि उल्लेखनीय मुक्तक काव्य उपलब्ध है। द्वितोय कोटि में आधिभौतिक रचनाएँ परिगणित की जा सकती है, जिनमें सर्वसाधारण के लिए नीति, सदाचार सम्बन्धी धर्मोपदेशों का प्रतिपादन किया गया है। इस दृष्टि से देवसेन कृत 'सावयधम्मदोहा' जिसमें आध्यात्म विवेचन के साथ श्रावकों, गृहस्थों के लिए आचार संहिता का प्रतिपादन हुआ है । ग्रंथारम्भ में मंगलाचरण है साथ ही खलवंदना भी है । इसका अपरनाम 'श्रावकाचार दोहक' भी है। जिनदत्तसूरि कृत 'उपदेस रसायनरास' महत्त्वपूर्ण कृति है जिनमें कवि ने आत्मोद्धार से मनुष्य जन्म सफल होने की बात कही है। सोमप्रभाचार्य कृत 'द्वादशभावना' नामक काव्य ग्रंथ में सांसारिक अनित्यता और क्षणभंगुरता का सम्यक् विवेचन हुआ है । 'संयममंजरी' महेश्वर सूरि विरचित ३५ दोहों की छोटो कृति उल्लेखनीय है । इसके अतिरिक्त ३१ पद्यों की लघु रचना 'चूनडी' भट्टारक विनयचन्द्र मुनि रचित है। इसमें कवि ने धार्मिक भावनाओं और सदाचारों से रंगी हुई चूनड़ी ओढ़ने का संकेत दिया है। ___ जैन कवियों की भाँति बुद्ध, सिद्धों द्वारा भी अपभ्रंश में मुक्तक काव्यों की रचना हुई है । सिद्धों के अनेक दोहों और गीतों का संग्रह राहुल जी द्वारा सम्पादित 'हिन्दी काव्यधारा' में प्राप्त है । विषय की दृष्टि से उसे दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-यथा (i) सिद्धान्त प्रतिपादनवाली रचनाएं। (ii) कर्मकाण्ड का खण्डन करने वाली रचनाएँ। काव्यकला की दृष्टि से सिद्ध कवियों की रचनाएँ चाहे अधिक महत्त्व की न हो तथापि उनक कथ्य अपना स्थाई महत्त्व रखता है ऐसी रचनाओं के द्वारा चाहे प्राणी में आनन्दोद्रेक न होता हो तथापि जागतिक उन्मार्ग से सन्मार्ग की ओर सम्यक् प्रेरणा होती । सरहपा, लुईया, काण्हपा तथा सान्तिपा नामक सिद्ध कवियों द्वारा अनेक मुक्तक काव्यों की रचना हुई है। अपभ्रंश वाङ्मय में विविध साहित्यिक मुक्तक काव्यों की रचना भी द्रष्टव्य है। ऐसे मुक्तक काव्यों का कथ्य साधारण जीवन की घटनाओं और चर्याओं पर आधारित है। ये मुक्तक प्रबन्ध काव्यों में चारण, गौप आदि पात्रों द्वारा सुभाषितों और सूक्तियों के रूप में व्यवहृत है । जहाँ तक सुभाषित रूप में प्राप्त मुक्तक पद्यों का प्रश्न है उनके अघिदानि निम्न रचनाओं में सहज हो जाते हैं-यथा , Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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