Book Title: Apbhramsa Sahitya Author(s): Devendra Kumar Jain Publisher: Z_Mahavir_Jain_Vidyalay_Suvarna_Mahotsav_Granth_Part_1_012002.pdf and Mahavir_Jain_Vidyalay_Suvarna_ View full book textPage 2
________________ ६६ : श्री महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ लगभग एक सहस्र वर्षोंके दीर्घ काल-परिमाणमें अपभ्रंश साहित्यकी रचना होती रही है। उपलब्ध साहित्य नौवीं शताब्दीसे अठारहवीं शताब्दी तकका है। अधिकांश साहित्य पद्यबद्ध है। स्वतन्त्र रूपसे कोई गद्य-रचना नहीं मिलती। यहां तक कि श्रुतकीर्ति विरचित "योगशास्त्र" और वैद्यक ग्रन्थ "जगत्सुन्दरी प्रयोगमाला" पद्यबद्ध ही हैं। मुख्य रूपसे उद्योतनसूरिकृत "कुवलयमालाकथा" (वि० सं० ८३५) और दामोदर रचित "उक्तिव्यक्ति प्रकरण "(११-१२वीं शताब्दी)में अपभ्रंश गद्यके नमूने मिलते हैं। साधु सुन्दरगणिकृत "उक्तिरत्नाकर"में भी देशी शब्द तथा भाषाके उदाहरण मिलते हैं। तन्त्रसारमें अपभ्रंशके केबल कुछ पद्य ही प्राप्त होते हैं। इस प्रकार फटकर तथा मुक्तक रूपमें मध्ययुगीन अन्य भारतीय भाषाओंमें लिखित साहित्यमें भी अपभ्रं भाषाके नाम-रूपोंकी छाप देखी जा सकती है। उपलब्ध अपभ्रंश-साहित्यकी तालिका इस प्रकार हैअम्बदेव सूरि समरारास (रचना सं० १३७१)-प्रकाशित अब्दुल रहमान सन्देशरासक (१२ वीं शताब्दी ?), अभयगणि सुभद्राचरित (रचना सं० ११६१) अभयदेवसूरि जयतिहुअणस्तोत्र (रचना सं० १११९)-प्रकाशित अमरकीर्तिगणि णेमिणाथचरिउ (र० सं० १२४४), छक्कम्मोवएस-(र० सं० १२४७), पुरंदरविहाणकहा (र० स० १२७५), महावीरचरिउ, जसहरचरिउ, झाणपईव (अनुपलब्ध)। अमरमुनि छन्दोरत्नावली असवाल पासणाहचरिउ (र० सं० १४७९) आसिग जीवदयारास (वि० सं० १२५७) ईश्वरगणि शीलसन्धि ऋषभदास रत्नत्रयपूजा कनककीर्ति नन्दीश्वर जयमाला कनकामर करकण्डचरिउ (११ वीं शताब्दी)-प्रकाशित गुणभद्र भट्टारक अणंतवयकहा, सवणवारसिविहाणकहा, पखवइकहा, णहपंचमी, चंदायण, चंदणछट्टी, णरयउतारी दुद्धारस, णि दुहसत्तमी, मउडसत्तमी, पुष्फंजलिवय, रोहिणीविहाण, रयणत्तय विहाण, दहलक्खणवय, लद्ध विहाण, सोलहकारणवयविहि, सुयंधदहमीकहा। जयदेव भावनासंधि (र० सं० १६०६) . जयमित्रहल श्रीपालचरित्र, वर्द्धमानकथा, मलिनाथकाव्य । जल्हिग अनुप्रेक्षारास १ जद्द जह जस्सु जहिं , चिव पफुरइ अज्जवसाउ । तह तह तस्सु तहिं, चिव तारिसु होइ पहाउ ॥ तंत्रसार (अभिनवगुप्त), ४,१ यह तालिका अधिकतर उपलब्ध ग्रन्थोंके आधार पर प्रामाणिक रूपसे तैयार की गई है। यद्यपि 'जिनरत्नकोश'. (खण्ड १)में इस सूची में अनुल्लिखित ग्रन्थोंका अपभ्रंश-ग्रन्थोंके नामसे उल्लेख मिलता है, किन्तु वे अप्राप्य होनेसे या प्राकृत भाषामें लिखित होनेसे इस तालिकामें सम्मिलित नहीं किये गये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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