Book Title: Apbhramsa Sahitya
Author(s): Devendra Kumar Jain
Publisher: Z_Mahavir_Jain_Vidyalay_Suvarna_Mahotsav_Granth_Part_1_012002.pdf and Mahavir_Jain_Vidyalay_Suvarna_
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपभ्रंश-साहित्य देवेन्द्रकुमार जैन यद्यपि महाकवि कालिदास के “विक्रमोर्वशीय" नाटक(ई. लगमग प्रथम शताब्दी) के चतुर्थ अंकमें, ' कवि शूद्रक विरचित " मुद्राराक्षस" नाटकके (लगभग दूसरी शताब्दी) दूसरे अंकों और शैवागम तथा चर्यापदोंमें अपभ्रंशकी बिखरी हुई सामग्री मिलती है, जिससे यह पता चलता है कि भाषाके रूपमें यह ई० पू० प्रथम शताब्दीसे ही प्रचलित रही होगी परन्तु साहित्यके पद पर लगभग पांचवी शताब्दीमें प्रतिष्ठित हुई होगी। क्योंकि छठी शताब्दीके भामह संस्कृत और प्राकृतकी भांति अपभ्रंश काव्यका भी उल्लेख करते हुए तीन प्रकारकी भाषाओमें काव्य लिखे जानेका अभिधान करते हैं। यही नहीं, अपभ्रंशमें उस युगमें मुख्य रूपसे कथाएं लिखी जाती थीं जो स्वाभाविक भी है। देशी भाषा और साहित्यके प्रतिष्ठित होनेमें दो-चार युगोंका नहीं, शताब्दियोंका समय लगा होगा। आठवीं शताब्दीमें अपभ्रंशमें इतने सुन्दर और कलासम्पन्न महाकाव्य लिखे जाने लगे थे कि उनको देख कर सहजमें ही दो सौ वर्ष पूर्वकी स्थितिका अनुमान हो जाता है जब लोककवियोंने अपभ्रंशके प्रबन्ध काव्योंकी रचना प्रारम्भ कर दी थी। महाकवि स्वयम्भू (नवम शताब्दीका प्रारम्भ) ने "स्वयम्भूछन्द" तथा "रिट्ठणेमिचरिउ "में गोविन्द, चतुर्मुख, महट्ट, सिद्धप्रभ आदि कई अपभ्रंश कवियोंका उल्लेख किया है जिससे प्रबन्धकाव्योंकी परम्पराकी प्राचीनता तथा अपभ्रंश काव्य एवं कवियोंका पता चलता है। चतुर्मुखके द्वारा लिखित पउमचरिउ, रिठ्ठणेमीचरिउ और पंचमीकहाका उल्लेख मिलता है पर रचनाएं अभी तक उपलब्ध नहीं हो सकी। इन उल्लेखोसे यह निश्चय हो जाता है कि लगभग छठी शताब्दीसे अपभ्रंश प्रबन्धकाव्योंकी रचना होने लगी थी। १ शब्दार्थो सहितौ काव्यं गद्यं पद्यञ्च तद्विधा । संस्कृतं प्राकृतं चान्यदपभ्रंश इति त्रिधा ॥ काव्यालंकार, १,१६ २ न वक्त्रापरवक्त्राभ्यां युक्ता नोच्छ्वासवत्यपि । संस्कृतं संस्कृता चेष्टा कथापभ्रंशभाक्तथा ।। वही, १,२८ ३ जैन ग्रंथ प्रशस्ति संग्रह, पृ० ३६ । Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ : श्री महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ लगभग एक सहस्र वर्षोंके दीर्घ काल-परिमाणमें अपभ्रंश साहित्यकी रचना होती रही है। उपलब्ध साहित्य नौवीं शताब्दीसे अठारहवीं शताब्दी तकका है। अधिकांश साहित्य पद्यबद्ध है। स्वतन्त्र रूपसे कोई गद्य-रचना नहीं मिलती। यहां तक कि श्रुतकीर्ति विरचित "योगशास्त्र" और वैद्यक ग्रन्थ "जगत्सुन्दरी प्रयोगमाला" पद्यबद्ध ही हैं। मुख्य रूपसे उद्योतनसूरिकृत "कुवलयमालाकथा" (वि० सं० ८३५) और दामोदर रचित "उक्तिव्यक्ति प्रकरण "(११-१२वीं शताब्दी)में अपभ्रंश गद्यके नमूने मिलते हैं। साधु सुन्दरगणिकृत "उक्तिरत्नाकर"में भी देशी शब्द तथा भाषाके उदाहरण मिलते हैं। तन्त्रसारमें अपभ्रंशके केबल कुछ पद्य ही प्राप्त होते हैं। इस प्रकार फटकर तथा मुक्तक रूपमें मध्ययुगीन अन्य भारतीय भाषाओंमें लिखित साहित्यमें भी अपभ्रं भाषाके नाम-रूपोंकी छाप देखी जा सकती है। उपलब्ध अपभ्रंश-साहित्यकी तालिका इस प्रकार हैअम्बदेव सूरि समरारास (रचना सं० १३७१)-प्रकाशित अब्दुल रहमान सन्देशरासक (१२ वीं शताब्दी ?), अभयगणि सुभद्राचरित (रचना सं० ११६१) अभयदेवसूरि जयतिहुअणस्तोत्र (रचना सं० १११९)-प्रकाशित अमरकीर्तिगणि णेमिणाथचरिउ (र० सं० १२४४), छक्कम्मोवएस-(र० सं० १२४७), पुरंदरविहाणकहा (र० स० १२७५), महावीरचरिउ, जसहरचरिउ, झाणपईव (अनुपलब्ध)। अमरमुनि छन्दोरत्नावली असवाल पासणाहचरिउ (र० सं० १४७९) आसिग जीवदयारास (वि० सं० १२५७) ईश्वरगणि शीलसन्धि ऋषभदास रत्नत्रयपूजा कनककीर्ति नन्दीश्वर जयमाला कनकामर करकण्डचरिउ (११ वीं शताब्दी)-प्रकाशित गुणभद्र भट्टारक अणंतवयकहा, सवणवारसिविहाणकहा, पखवइकहा, णहपंचमी, चंदायण, चंदणछट्टी, णरयउतारी दुद्धारस, णि दुहसत्तमी, मउडसत्तमी, पुष्फंजलिवय, रोहिणीविहाण, रयणत्तय विहाण, दहलक्खणवय, लद्ध विहाण, सोलहकारणवयविहि, सुयंधदहमीकहा। जयदेव भावनासंधि (र० सं० १६०६) . जयमित्रहल श्रीपालचरित्र, वर्द्धमानकथा, मलिनाथकाव्य । जल्हिग अनुप्रेक्षारास १ जद्द जह जस्सु जहिं , चिव पफुरइ अज्जवसाउ । तह तह तस्सु तहिं, चिव तारिसु होइ पहाउ ॥ तंत्रसार (अभिनवगुप्त), ४,१ यह तालिका अधिकतर उपलब्ध ग्रन्थोंके आधार पर प्रामाणिक रूपसे तैयार की गई है। यद्यपि 'जिनरत्नकोश'. (खण्ड १)में इस सूची में अनुल्लिखित ग्रन्थोंका अपभ्रंश-ग्रन्थोंके नामसे उल्लेख मिलता है, किन्तु वे अप्राप्य होनेसे या प्राकृत भाषामें लिखित होनेसे इस तालिकामें सम्मिलित नहीं किये गये हैं। Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपभ्रंश-साहित्य : ६७ जिनदत्तसूरि जिनपद्मसूरि जिनप्रभसूरि जिनप्रभसूरि जिनप्रभसूरि जिनभद्र जिनवरदेव छत्रसेन कवि ठकुरसी कवि ठाकुर तेजपाल पं० दर्शन विजय दामोदर दामोदर (जिनदेव के पुत्र) देवचन्द देवदत्त देवसेन कवि देवदत्त देवनन्दी देवसूरि देवसेनगणि देल्हण धनपाल धनपाल धर्मसूरि धवल कवि धाहिल नयनन्दी नरसेन नेमचन्द पद्मकीर्ति पुष्पदन्त उपदेशरसायनरास (सं० ११३२-१२१०), चर्चरी रास । स्थूलभद्र फाग (सं० १३९० के लगभग) अनाथसन्धि, अन्तरंगरास, अन्तरंगविवाह । आत्मसम्बोध कुलक, मोहराजविजय, सावयविहि, जिनजन्ममह, नेमिनाथरास। वज्रसामिचरिउ (सं० १३१६) सुभाषितकुलक बुद्धिरसायण रुक्मिणीविधान मेघमालाकथा (र० सं० १५८०) सांतिणाहचरिउ (र० सं० १६५२), महापुराण कलिका (र० सं० १६५०) संभवणाहचरिउ (प्रतिलिपि सं० १५८३), वरांगचरिउ-(२० सं० १५०७), पारसणाहपुराणु (१६ वीं शताब्दी)। विजयतिलकसूरिरास (सं० १६७९)-प्रकाशित णेमिणाहचरिउ (र० सं० १२८७) सिरिपालचरिउ, णेमिणाहचरिउ, चंदप्पहचरिउ। पासणाहचरिउ (लिपि सं० १४९४) वरांगचरित, शान्तिनाथपुराण, अंबादेवीरास-(अनुपलब्ध) सावयधम्मदोहा-प्रकाशित । पासणाहचरिउ (र० सं० १२७५) रोहणीवयकहा उपदेशकुलक सुलोयणाचरिउ गयसुकुमालरास (वि० सं० १३०० के लगभग) भविसयत्तकहा (र० सं० १३९३) बाहुबलिचरिउ (र० सं० १४५४) जम्बूसामिरास (र० सं० १२६६) हरिवंसपुराण (१२ वीं शताब्दी के लगभग) पउमसिरिचरिउ (१० वीं शताब्दी के लगभग)-प्रकाशित सुदंसणचरिउ, सयलविहि विहाणकव्व (र० सं० ११०० के लगभग) सिद्धचक्ककहा, जिणरत्तिविहाणकहा (१४ वीं शताब्दी के लगभग) रविवउकहा, अणंतवयकहा पासणाहचरिउ (वि० सं० ९९९) महापुराण (वि० सं० १०१६-१०२२), नागकुमारचरित, यशोधरचरित-प्रकाशित । सुकुमालचरिउ कलिरास (वि० सं० १३६३) पूर्णभद्रमुनि प्रज्ञातिलक Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ : श्री महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ बालचन्द्रमुनि बूचिराज (वल्ह) ब्र० उंदू ब्रह्म सावारण भगवतीदास महणसिंह महीचन्द महीराज महेश्वरसूरि माणिक्कचंद माणिक्कराज कवि मुनि कुमुदचंद मुनि चारितसेन मुनि यशःकीर्ति यशःकीर्ति यशःकीर्ति निरयदुहसत्तमीकहा, रविवउकहा, णरयउतारी, दुद्धारसकहा। मयणजुज्झ (वि० सं० १५८९) चैतिरासा कोकिलापंचमीकहा, मुकुटसप्तमीकथा, दुधारसीकथा, आदित्यवार, तीनचउबीसी, पुष्पांजलि, निर्दुःखसप्तमी, निर्झरपंचमीकथा । मिगांकलेहाचरिउ (वि० सं० १७००), मउहसत्तभीकहा, सुयंधदहमीकहा। त्रिंशत् जिनचउबीसी शान्तिनाथपुराण (र० सं० १५८७) नलदवदंतीरास (सं० १५३९) संजममंजरी तथा आ० हेमचन्द्रसूरिकृत "संजममंजरी" की स्वोपज्ञ विवृति एवं टीका' सत्तवसणकहा (र० सं० १६३४) अमरसेनचरिउ (वि० सं० १५७७), णायकुमारचरिउ (सं० १५७६) नेमिनाथरास समाधिरास जगसुन्दरीप्रयोगमाला (आयुर्वेद) चंदप्पहचरिउ (१२-१३ वीं शताब्दी के लगभग) पाण्डवपुराण (र० स० १४९७), हरिवर्स पुराण (र० सं० १५००) जिनरत्तिविहाणकहा, रविवउकहा। परमप्पयासु, जोयसार । पउमचरिउ, हरिवंसपुराण, आदिपुराण (अनुपलब्ध), पासपुराण, सम्मत्तगुणनिधान, मेहेसरचरिउ, जीवंधरचरिउ, जसहरचरिउ, पुण्णासवकहाकोस, धनकुमारचरिउ, सुकोसलचरिउ, सम्महजिनचरिउ, सिद्धचक्कवयविहि, वृत्तसार, सिद्धान्तार्थसार, आत्मसम्बोहकब, अणथमीकहा, सम्मत्तक उमुदी, करकण्डु-सुदंसणचरिउ (अनुपलब्ध), दशलक्षण जयमाला, षोडशकारण जयमाला, सम्यक्त्वभावना सोहंथुदि (अनेकान्त में प्रकाशित)। जिनदत्तचाई (र० सं० १३५३) प्रद्युम्नकथा नेमिनाथफाग (सं० १४०५ के लंगभग) पाहुडदोहा (विक्रम की दसवीं शताब्दी के लगभग) अंतरंगसंधि (वि० सं० १३६२) योगीन्द्रदेव पं० रइधू मदनकया रल्ह कवि रल्हण राजशेखरसूरि रामसिंह मुनि रत्नप्रभसूरि १ अन्य टीका-ग्रन्थोंके रूपोंमें अपभ्रंश भाषामें लिखित देवेन्द्रसूरिकृत " उत्तराध्ययनसूत्र वृत्ति", रत्नप्रभसूरिकृत " उपदेशमाग दोधरी वृत्ति", मूलशुद्धप्रकरण वृत्ति, आख्यातमणिकोष वृत्ति तथा भवभावनाप्रकरण वृत्ति उल्लेखनीय हैं। 'संजममंजरी'की टीका बृहत् हैं। पुस्तकाकार लगभग तीनसी पृष्ठोंकी है, जो अभीतक अप्रकाशित है। लेखक इस ग्रन्थका संस्करण तैयार कर है। Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपभ्रंश-साहित्य : ६९ ललितकीर्ति भट्टारक लाखू (लक्ष्मण) लक्ष्मण लखमीचंद वज्रसेनसूरि वरदत्त बर्द्धमानसूरि विजयसिंह विजयसेनसूरि विद्यापति विनयचंद विनयचन्द्रसूरि विनयप्रभ विमलकीर्ति वीर कवि वीर कवि विबुध श्रीधर जिनरात्रिकथा, ज्येष्ठजिनवरकथा, दशलक्षणीकथा, धनकलशकथा, कंजिकाव्रतकथा, कर्मनिर्जराचर्तुदशी कथा। जिणदत्तकहा (र०सं० १२७५), अणुवयरयणपईव (वि० सं० १३१३), चंदणछटीकहा। णेमिणाहचरिउ (१४ वीं शताब्दी के लगभग) दोहाणुप्रेक्षारास भरतेश्वर-बाहुबलिघोररास वज्रस्वामीचरित्र वीर जिनपारणक अजितनाथपुराण (वि० सं० १५०५) रेवंतगिरिरास (वि० सं० १२८७),-प्रकाशित कीर्तिलता (१५ वीं शताब्दी)-प्रकाशित चनडीरास, निजफरपंचमीविहाणकहा, कल्याणकरास, दुद्धारस कहा। नेमिनाथ च उपई (वि० सं० १२५७) गौतमस्वामीरास (वि० सं० १४१२) सोखवइविहाणकहा, सुयंवंदसमीकहा, चंदायणव उकहा। जम्बूसामिचरिउ (र० सं० १०७६) णाणसार की पाथडी पासपुराण (र० सं० ११८९), वड्ढमाणचरिउ (र० सं० ११९०), चंदप्पहचरिउ (अनुपलब्ध) पंचपण्डवचरितरास (वि. सं. १४१०) भरतेश्वरबाहुबलिरास (वि० सं० १२४१), बुद्धिरास,-प्रकाशित सांतिणाहचरिउ कहाकोसु, रयणकरण्डसावयायार (र० सं० ११२०) चंदप्पहचरिउ (वि० सं० १७९३) सुकुमालचरिउ (र० स० १२०८) भविसयत्तकहा (र० सं० १२३०) वसुधीरचरिय (१) हरिवंसपुराण (वि० सं० १५५२), परमेष्ठीप्रकाशसार, धर्मपरीक्षा, योगसार (१६ वीं शताब्दी)। सम्यक्त्वकौमुदी जिनपद्मसूरि पट्टाभिषेकरास (१७ वी शताब्दी के लगभग)। जम्बूसामिचरिउ (वि० स० १०६०) विलासवईकहा (र० सं० ११२३) पज्जुण्णचरिउ (१२ वीं शताब्दी के लगभग) सुप्पयदोहा (वैराग्यसार) नेमिनाथरास (लगभग १३ वीं शताब्दी) कुमारपाल प्रतिबोध (वि० सं० १२४१)-प्रकाशित शालिभद्रसूरि शालिभद्रसूरि शुभकीर्ति श्रीचंद श्रीचंद श्रीधर श्रीवर श्रीभूषण श्रुतकीर्ति सहणपाल कवि सारमूर्ति सागरदत्तसूरि साधारण सिद्धसेन सिद्ध-सिंह कवि सुप्रभाचार्य सुमतिगणि सोमप्रभसूरि Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 70 : श्री महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ स्वयंभू, त्रिभुवन स्वयंभू पउमचरिउ, हरिवंसपुराण, स्वयम्भूछन्द, पंचमीकहा, स्वयम्भू व्याकरण (अनुपलब्ध)। हरिचंद अणथमीकहा, दशलक्षणकथा, नारिकेरकथा। हरिदेव मयणपराजयचरिउ (15 वीं शताब्दी के लगभग) हरिभद्रसूरि सनत्कुमारचरित (वि० सं० 1216) प्रकाशित-रिहणेमिचरिउ हरिभद्र णेमिकुमारचरिउ-प्रकाशित हरिषेण धम्मपरिक्खा (वि० सं० 1044) हरिसिंह साधु सम्यक्त्वकौमुदी (प्रकाशित, अनेकान्त, 11, 2) हेमचन्द्रसूरि सिद्धहेमशब्दानुशासन, देशीनाममाला (13 वीं शताब्दी)-प्रकाशित हेमचन्द्र ब्रह्म श्रुतस्कन्ध इनके अतिरिक्त पाटनके भण्डारमें जिनप्रभसूरिके नामसे मृगापुत्र कुलक, सुभाषित कुलक, विवेक कुलक, धर्माधर्म विचार कुलक, मल्लिनाथचरित्र, भव्यचरित्र, भव्यकुटुम्बचरित्र, महावीरचरित्र, जिनजन्ममह, श्रावकविधि, अन्तरंगविवाह, चैत्यपरिपाटी, साधार्मिक वासत्य कुलक, वज्रस्वामीचरित्र (वि० सं० 1316), मोहराजविजय, नर्मदासुन्दरीसन्धि (वि० सं० 1328), अंतरंगसंधि, अनाथसंधि, मदनरेखासंधि, जीवानुशास्तिसंधि, ऋषभचरितस्तवन, नेमिरास (वि० सं०१२९७), गौतमचरित्र कुलक, जिनागमवचनस्तवन, भावना कुलक, भावनासार, युगादिजिनचरित्र कुलक, मुनिसुवृतस्वामीस्तोत्र, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ-मुनिसुव्रतजिनजन्माभिषेक तथा जिनजन्मोत्सवस्तवन आदि अनेक रचनाएं मिलती हैं। इसी प्रकार आ० जिनदत्तसूरि विरचित उपदेशरसायनरस, कालस्वरूप कुलक, अवस्था कुलक, चर्चरी, आ० जिनबल्लभसूरिकी स्तुति, स्तवन आदि कई रचनाओंका उल्लेख मिलता है। अपभ्रंशमें ऐसी अनेक छोटी-बडी रचनाएं रास, सन्धि, कुलक, चर्चरी आदि रूपमें उपलब्ध होती हैं जिनके लेखकों के संबंधमें कुछ भी ठीक रूपसे ज्ञात नहीं हो सका है। ऐसी रचनाओंमें कुछ निम्नलिखित हैं बाहुबलपाथड़ी, वसन्तविलास फाग (सं० 1400-1425), जिनचंदसूरि फाग (सं० 1341 के लगभग), आबूरास (१३वीं शताब्दी), चर्चरिका, शालिभद्रमातृका, संवेगमातृका, जम्बूचरित्र, मदनरेखाचरित्र, मृगपुत्र महर्षिचरित्र, चतुरंगसन्धि, चतुर्विंशतिजिनकल्याणक, कथाएं, स्तुतिस्तवन आदि / इस प्रकार अपभ्रंश-साहित्य कई रूपोंमें तथा विधाओंमें विकसित मिलता हैं। यद्यपि अभी तक इसका सम्पूर्ण साहित्य उपलब्ध नहीं हो सका है परन्तु जो प्रबन्ध रचनाएं मिलती हैं वे कई बातोंमें मध्ययुगीन भारतीय साहित्यमें अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं। और उन्हींकी परम्परा तथा शैली पर परवर्ती हिन्दी साहित्य तथा अन्य भारतीय आर्य भाषाओंका साहित्य लिखा गया। भाषा और साहित्य दोन ही रूपोंमें नव्य भारतीय आर्यभाषाभोंका वाङ्मय अपभ्रंशसे पुरस्कृत हुआ है। और इसीलिए परिणामकी दृष्टिसे नहीं, मूल्यांकनकी दृष्टिसे यह साहित्य प्राचीन भारतीय आर्य साहित्य और आधुनिक भारतीय साहित्यकी मध्यवर्ती कड़ी है जो जन-जनकी चेतनाको आज भी अपनी सहज वाणीमें सुरक्षित बनाये हुए है। ऐतिहासिक और काव्यात्मक दोनों ही दृष्टियोंसे आज इस साहित्यका विशेष महत्व बढ़ गया है। परंतु जब तक इसका ठीकसे मूल्यांकन नहीं होता है तब तक मध्ययुगीन भारतीय साहित्यका यथार्थ चित्र अस्पष्ट ही रहेगा। आशा है, भविष्यकी स्पष्ट भावभरी उज्ज्वल रेखाओंमें इसका यथार्थ रूप शीघ्र ही प्रकाशित हो सकेगा। और तभी हिन्दी भाषा तथा साहित्य के उदय तथा विकासकी वास्तविक परम्पराका बोध हो सकेगा।