Book Title: Apbhramsa Evam Hindi Me Jain Vidya Vishayak Anusandhan ki Sambhavnaye
Author(s): Yogendranath Sharma
Publisher: Z_Jain_Vidya_evam_Prakrit_014026_HR.pdf

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Page 4
________________ ३२० जैनविद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन (३) लोक-कथा-साहित्य (४) व्याकरण, छन्द-शास्त्र एवं कला विषयक साहित्य उपर्युक्त आगमेतर-साहित्य का विविधमुखी वैभव शोधार्थियों के लिए अनन्त संभावनाओं से परिपूर्ण है, जो लगभग १५०० वर्षों की सुदीर्घ परम्परा को समेटे हुए है। (i) जैन-तत्त्व-चिन्तन मूलक साहित्य इस प्रकार का साहित्य अपभ्रंश और हिन्दी में उपलब्ध है, जिसमें तत्त्वज्ञान, जैनाचार, क्रिया-काण्ड, तीर्थ एवं ऐतिहासिक प्रबन्धों का विवेचन अत्यन्त व्यवस्थित रूप में श्वेताम्बरों तथा दिगम्बरों द्वारा निबद्ध किया गया है। दर्शन एवं तत्त्व निरूपण की दृष्टि से दिगम्बर-परम्परा श्वेताम्बर परम्परा से भिन्न हो गई है।' इस साहित्य में (१) सामान्य-ग्रंथ, (२) दर्शन-खण्डन-मण्डन-ग्रन्थ, (३) सिद्धान्त-ग्रन्थ, (४) कर्म-सिद्धान्त-ग्रन्थ, (५) श्रावकाचार विषयक ग्रन्थ, (६) प्रकरण ग्रन्थ, (७) समाचारी ग्रन्थ एवं (८ विधि-विधान विषयक ग्रन्थ मुख्यतः आते हैं। इस जैन-तत्त्वमूलक साहित्य में धर्म, दर्शन, आचार, कर्मकाण्ड आदि के प्रकाशन से सम्बद्ध शोध की अनन्त सम्भावनाएं निहित हैं। जैनाचार एवं श्रावकाचार आदि के तात्त्विक विश्लेषण के लिए शोध महत्त्वपूर्ण होगा। (ii) लौकिक साहित्य--अपभ्रंश तथा हिन्दी में रचा गया आगमेतर जैनलौकिक साहित्य सर्वाधिक मूल्यवान् निधि है, जिसने आधुनिक भारतीय भाषाओं के साहित्य को अनेक रूपों में प्रभावित भी किया है। ईसा की प्रथम शती से सत्रहवीं शती तक इस प्राणभूत साहित्य की अविच्छिन्न धारा प्रवाहित हुई। जैन कवियों का लौकिक साहित्य इतना है कि कई शताब्दियों तक शोधकर्ता इसका मूल्यांकन अनवरत कर सकते हैं। इस क्षेत्र में एक-एक साहित्य-विधा का विविध दिशाओं में शोधपरक अनुशीलन किया जा सकता है। मैं कतिपय प्रमुख विधाओं को ले रहा हूँ (१) कथा-साहित्य (२) पुराण-साहित्य या चरित-साहित्य (३) प्रबन्ध काव्य-(i) प्रेमाख्यानक काव्य, ( ii ) खण्ड काव्य (४) नाटक साहित्य (५) मुक्तक साहित्य । (६) रूपक-काव्य (७) स्फुट रचनाएं उपयुक्त लौकिक साहित्य में जीवन धड़कता है और सांस्कृतिक चेतना मुखर है। १. डा० हीरालाल जैन : भारतीय संस्कृति में जैन-धर्म का योगदान, पृ० ८४ परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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