Book Title: Apbhramsa Doha Author(s): Bhuvanchandravijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ [69 ] भारी-कम्मा जीवडा, जइ बुज्झिसि तउ बुज्झ । सयल कुटंबउ खाइस्यइ, माथइ पडिस्यइ तुज्झ ॥११ लग्गइ कोह-पलेवणइ, डज्झइ गुण-रयाणाइं । उवसम-जलि जि न उल्हवई, सहई ति दुक्ख-सयाई ॥१२ धम्म न संचिउ तव न किय, नमिउ न जिणवर-देउ । जीवु जि हीडइ दुक्खियउ, तिह कम्मह फल एउ ॥१३ दान-सील-तव-भावणा, एह तरंडउ जाहं । नवकारिहिं वउलावणउं, सिद्धि घरंगणि ताहं ॥१४ संसारडइ बीहामणइ, आस कि बंधण जाइ । सुप्पइ अन्न-मणोरहें, अनेरडइ विहाइ ॥१५ जिम घर-कारणि निसि-दिवस, जह जिय सुप्पडिलग्गु । तिम जइ धम्मह दुइ घडी, ता पामइ सिव-मग्गु ॥१६ संसारडइ भमंतडा, लद्धा दुइ रयणाई । जिणवर सामि सुसाहु गुरु, चिंतामणि-तुल्लाई ॥१७ सिरि इक्केकउ पलियडउ, आविउ अग्गेवाणु । नीसरि जुव्वण-पाहुणा, जरा मलेसिइ माणु ॥१८ गिउ जुव्वण बंबलि करवि, छडा पयाणा देउ । जर थक्की मत्थइ चडवि, धवला गुड्डुर देउ ॥१९ . मोहु न मेल्हइ घर-तणउ, जउ सिरि पलिया केस । वलि वलि जिण-धम्मह तणा, को देस्यइ उवदेस ॥२० हीयडा जिणवर वंदीयइ, संपइ विरूअउ कालु । जिम मच्छहं तिम माणुसहं, पडइ अचिंतिउ जालु ॥२१ दोहा जंति वलंति नहु, जिम गिरि-निज्झरणाई । लहुया-लगि जिय धम्म करि, सूवहि निचंतउं काई ॥२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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