Book Title: Apbhramsa Doha
Author(s): Bhuvanchandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपभ्रंश दोहा संपा. मुनि भुवनचन्द्र प्राचीन गुजराती अने अपभ्रंशना संधिकालना गणाय एवा आ दोहानुं एक पत्र खंभातना पार्श्वचंद्रगच्छ संघ हस्तकना ज्ञानभंडारनी प्रकीर्ण पत्रोनी पोथीमांथी मळ्यूं छे । लेखनकाळ सोळमा सैकानो पूर्वार्ध मानी शकाय । भाषाकीय अध्ययन माटेनी सामग्री तरीके उपयोगी थशे एम मानी अहीं रजू कर्यां छे । जिह जिणधम्म न जाणीयइ, नवि देवह गुरु भत्ति । तिणि तूं जीवा दंगडइ, वसिसि म एकइ रत्ति ॥१ जहि संमत्त न आलवण, संजम नवि चारित | तिह तूं जीव म रइ करिसि, छिज्जइ जेण परत्त ॥२ जे जिणसासण लीण मण, अणुदिण दढ संमत्त । तिह सिउं किज्ज‍ मित्तडी, सिज्झइ जेणि परत ॥ ३ दाण सुपत्ति न दिउ चंगं, तव नियमेण न सोसिउं अंगं । जिण न निमिउ भव-तरण - समत्थो, हा हा जम्म गयउ अकयत्थो ॥४ जिम पंथिहि पहिय निसंबलउ, दिसि पक्खा जोयइ भुक्खियउ धम्म - विहूणा जीव तूं, जिहिं जाइसि तिहिं दुक्खियउ ॥५ जिह बिहु पहरह मग्गड, तिह जिय संबंल लेइ । जिह चउरासी भव - गहण, तिह अवहेल करेइ ॥ ६ अत्थह जीविय-जुव्वणह, धम्मि न लाहउ लेइ । गुण तुट्टइ धाणुक्क जिम, परि हत्थडा मलेइ ॥७ मा रूसउ मा रोस करि, रोसिहि नासइ धम्मु । धम्म - विहूणा नरय-गय, दुलहउ माणुस - जम्मु ॥८ कोह पर देह - घर, तिन्नि विकार करेइ । अप्पणु तावइ पर तवइ, परतह हाणि करेइ ॥९ सूधा बं (वं ? ) छइ दोहडा, चितिज्जइ अप्पाणु । जीव पयाणा-धंधलिहिं, किह संजम किह दाणु ॥१० Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [69 ] भारी-कम्मा जीवडा, जइ बुज्झिसि तउ बुज्झ । सयल कुटंबउ खाइस्यइ, माथइ पडिस्यइ तुज्झ ॥११ लग्गइ कोह-पलेवणइ, डज्झइ गुण-रयाणाइं । उवसम-जलि जि न उल्हवई, सहई ति दुक्ख-सयाई ॥१२ धम्म न संचिउ तव न किय, नमिउ न जिणवर-देउ । जीवु जि हीडइ दुक्खियउ, तिह कम्मह फल एउ ॥१३ दान-सील-तव-भावणा, एह तरंडउ जाहं । नवकारिहिं वउलावणउं, सिद्धि घरंगणि ताहं ॥१४ संसारडइ बीहामणइ, आस कि बंधण जाइ । सुप्पइ अन्न-मणोरहें, अनेरडइ विहाइ ॥१५ जिम घर-कारणि निसि-दिवस, जह जिय सुप्पडिलग्गु । तिम जइ धम्मह दुइ घडी, ता पामइ सिव-मग्गु ॥१६ संसारडइ भमंतडा, लद्धा दुइ रयणाई । जिणवर सामि सुसाहु गुरु, चिंतामणि-तुल्लाई ॥१७ सिरि इक्केकउ पलियडउ, आविउ अग्गेवाणु । नीसरि जुव्वण-पाहुणा, जरा मलेसिइ माणु ॥१८ गिउ जुव्वण बंबलि करवि, छडा पयाणा देउ । जर थक्की मत्थइ चडवि, धवला गुड्डुर देउ ॥१९ . मोहु न मेल्हइ घर-तणउ, जउ सिरि पलिया केस । वलि वलि जिण-धम्मह तणा, को देस्यइ उवदेस ॥२० हीयडा जिणवर वंदीयइ, संपइ विरूअउ कालु । जिम मच्छहं तिम माणुसहं, पडइ अचिंतिउ जालु ॥२१ दोहा जंति वलंति नहु, जिम गिरि-निज्झरणाई । लहुया-लगि जिय धम्म करि, सूवहि निचंतउं काई ॥२२ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 70] [ह. भायाणी अने अगरचंद नाहटा संपादित अने एल.डी. सिरीझ क्रमांक 40 तरीके १९७५मा, 'प्राचीन गूर्जर काव्य संचय'मां संपादित, पाटणना ज्ञानभंडारनी एक प्रति (सूची पृ. २५)ने आधारे प्रकाशित, 39 क्रमांक वाळी 'दंगडु' नामक रचना-गत पहेलां पांच पद्य, पद्य क्रमांक 8(= खं, 7), 16 (= खं. 8), 17 (-- खं. 9), 23 (= खं. 10), 24 (= खं. ११)-एटला अहीं संपादित खंभातनी प्रतमां मळतां पद्यो साथे, थोडाक पाठभेदे, समान छे. बाकीनां पद्य नवां छे. उक्त 'दंगडु' रचनानां बाकीनां पद्य खंभातनी प्रतमां नथी. 'दंगडु' नाम नाहटजीए कामचलाउ आप्युं हतुं. हकीकते तो ए नाम वगरनो फुटकळ (मुख्यत्वे दोहाओनो) सुभाषितसंग्रह जणाय छे. ह. भा.)