Book Title: Anuttaraupapatik Dasha Sutra
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 1
________________ अनुत्तर्रोपपातिकदशा सूत्र सुश्री श्वेता जैन अनुत्तरोपपालिक अंग आगम में भगवान महावीर कालीन उन ३३ साधकों का वर्णन है जो काल करके अनुत्तरविमान नामक श्रेष्ठ देवयोनि में उत्पन्न हुए हैं वहाँ से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र से ये सभी सिद्ध, बुद्ध एवं मुक्त होंगे। जैनदर्शन की शोधछात्रा सुश्री श्वेता जैन ने इस सूत्र का समीक्षात्मक परिचय दिया है। सम्पादक सर्वज्ञ की वाणी का ग्रथित रूप 'आगम' है। स्मृति दोष से लुप्त होते आगमज्ञान को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से गणधरों ने इसे ग्रथित किया तथा कालान्तर में इसे लिखित रूप दिया गया। 'अत्थं गाराइ अरहा सुत्तं गंथति गणहरा निउणं' अरिहंतों सर्वज्ञों द्वारा अर्थ और सूत्र रूप में कहे गये वाक्यों को गणधरों द्वारा निपुणता से गूंथ कर व्यवस्थित आगम या शास्त्र का स्वरूप प्रदान किया जाता है। ग्यारह अंगों की श्रृंखला में 'अनुनरौपपातिकदशा' नामक अंग का नवम स्थान है। इस अंग में भगवान महावीर के काल में हुए उन महापुरुषों के कथानक वर्णित है, जिन्होंने उत्कृष्ट संयम साधनामय जीवन पूर्ण कर अनुत्तर विमान में जन्म लिया। इन विमानों से कोई उत्तर (बढ़कर) विमान न होने के कारण इनको अनुत्तर विमान कहते हैं और जो साधक अपने तपोमय जीवन से इनमें उपपात (जन्म) धारण करते हैं, उनको अनुत्तरोपपातिक कहते हैं । अनुत्तरोपपानिकों की विभिन्न दशाओं का वर्णन इस सूत्र में होने से इसका नाम 'अनुत्तरोपणतिकदशा' रखा गया। दशा शब्द 'दस' अर्थ को भी प्रकट करता है। प्रथम वर्ग में दस अध्ययन होने से भी इसे अनुत्तरोपपातिकदशा' कहा जाता है ऐसा अभयदेव की वृत्ति में उल्लेख प्राप्त होता है "तत्रानुत्तरेषु विमानविशेषेषूपपातो- जन्म अनुत्तरोपपातः । स विद्यते येषां तेऽनुत्तरौ पपातिकास्तत्प्रतिपादिका दशाः- दशाध्ययनप्रतिबद्धप्रथमवर्ग योगाद्दशाः ग्रन्थविशेषोऽनुत्तरौपपातिकदशास्तासां च सम्बन्धसूत्रं । इसमें अनुतरौपपातिकों के नगर, उद्यान, नैत्य, वनखण्ड, समवसरण, माता पिता, धर्मगुरु, धर्माचार्य, धर्मकथा, संसार की ऋद्धि, भोग उपभोग का तथा तप, त्याग, प्रव्रज्या, उत्सर्ग, संलेखना दीक्षा पर्याय, अंतिम समय के पाठोपगमन (संथारा) आदि, अनुत्तर विमान में उपपात, वहाँ से श्रेष्ठ कुल में जन्म, बोधिलाभ तथा मोक्षगमन आदि का वर्णन किया गया है। यह आगम वर्तमान में ३ वर्गों में विभक्त है, जिनमें क्रमश: १०.१३ और १० अध्ययन हैं। इस प्रकार ३३ अध्ययनों में ३३ महान् आत्माओं के भव्य जीवन का सुन्दर एवं प्रेरक वर्णन किया गया है। इसमें श्रेणिक के २३ और भद्रा सार्थवाही के १० पुत्रों का कथन हैं। इन दोनों के एक एक पुत्र के जीवनवृत्त का निरूपण विस्तार से करके शेष पुत्रों का उनके समान कहकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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