Book Title: Anjana Valmiki aur Vimalsuri ke Ramayano me Varnit Author(s): Kaumudi Baldota Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 6
________________ डिसेम्बर २००७ स्थायीभाव माना । पवनञ्जय के लिए 'पवनगति' तथा 'पवनवेग' इन दोनों नामों का भी प्रयोग किया है। पुरुषों के चंचल स्वभाव के कारण स्त्रियों को जो भुगतना पड़ता है, उसे मानों प्रतीकस्वरूप ही 'अञ्जना' का आयुष्य चित्रित किया है । अञ्जना को 'पतिव्रता' मानना और उसने वायु के द्वारा पुत्र होने पर संतुष्ट होना, ये दोनों घटनायें अञ्जना के चारित्र्य के बारे में प्रश्न उपस्थित करते हैं । पति के रूप में सिर्फ 'पवनञ्जय' को प्रस्तुत करके विमलसूरि ने अञ्जना का कलंक दूर किया है। * पति के द्वारा परित्यक्ता स्त्री की निराधार अवस्था को भी उन्होंने तत्कालीन सामाजिकता से अधोरेखित किया है । निरपराध अञ्जना के दुःख का स्पष्टीकरण पूर्वकर्म तथा कर्मसिद्धांत के द्वारा किया है। * 'मामा' के रूप में मानवीय स्वभाव के अच्छे अंश पर भी प्रकाश डाला वाल्मीकि ने हनुमान को वायु का 'औरस' तथा केसरी का क्षेत्रज' पुत्र मानकर यह बात वहीं छोड दी । उसका कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया। विमलसूरि ने 'केसरी' और 'वायु' दोनों अलग व्यक्तिरेखायें न मानकर इस कलंक को हटाने का प्रयास किया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि विमलसूरि का स्त्रियों के प्रति दृष्टिकोण मानवीय तथा सहृदयता का था। * वाल्मीकि रामायण में केसरी और अञ्जना के जीवनवृत्तान्त के सब छूटे हुए कच्चे धागे एकत्रित करके विमलसूरि ने एक उपकथानक ठीक तरह से प्रस्तुत किया । इस कथा से विमलसूरि ने अञ्जना का सतीत्व उजागर किया । ___ अपभ्रंश में कवि स्वयम्भूद्वारा विरचित 'पउमचरिउ' में अंजनाकथा के प्रस्तुतीकरण में प्राय: विमलसूरि का ही अनुकरण किया है । कवि स्वयम्भूदेव का काल दसवीं शताब्दी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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