Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
अञ्जना : वाल्मीकि और विमलसूरि के रामायणों में वर्णित
डॉ. कौमुदी बलदोटा
प्रस्तावना
प्राकृत साहित्य के इतिहास का अध्यापन करते समय जैन महाकवि विमलसूरि का 'पउमचरियं' नाम का पहला जैन रामायण सामने आया । 'अञ्जनापवनञ्जयवृत्तान्त' सूक्ष्मता से पढा । अञ्जना के जीवन में आये हुए स्थित्यंतर देखकर मन में यह जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि वाल्मीकि रामायण में यह कथा किस प्रकार आयी होगी ? दोनों रामायणों में अञ्जना की व्यक्तिरेखा का प्रस्तुतीकरण अलग अलग दिखाई दिया । कालक्रम की दृष्टि से वाल्मीकि रामायण प्रथम है । विमलसूरि ने लगभग २००-३०० वर्ष के पश्चात जैन रामायण लिखो ऐसा इतिहासकार मानते हैं । विमलसूरि ने अञ्जना की व्यक्तिरेखा में जो बदलाव किये हैं, उसकी पृष्ठभूमि जैन तत्त्वज्ञान तथा आचार में निहित है । इसी का स्पष्टीकरण इस शोधलेख में देने का प्रयास किया
१. दोनों कथाओं का स्थान
अञ्जना की कथा किष्किन्धाकाण्ड में विस्तार से तथा उत्तरकाण्ड में अतिसंक्षेप से आयी है। किष्किन्धाकाण्ड में वान श्रेष्ठ जाम्बवान, हनुमन्त को प्रेरणा देते समय हनुमान को जन्मवृत्तान्त कहते हैं । उत्तरकाण्ड में अगस्त्य ऋषि राम को हनुमान के बचपन का वृत्तान्त कहते हैं ।
'पउमचरियं' में अनन्तवीर्य मुनि के धर्मोपदेश के अन्तर्गत अञ्जना
१. वाल्मीकिरामायण, किष्किन्धा-काण्ड, सर्ग ६६
वाल्मीकिरामायण, उत्तरकाण्ड, सर्ग ३५-३६ २. अनेकशतसाहस्री विषण्णां हरिवाहिनीम् ।।
जाम्बवान्समुदीक्ष्यैवं हनुमन्तमथाब्रवीत् ॥ किष्किन्धाकाण्ड, सर्ग ६६, श्लोक १ ३. यदि वास्ति त्वभिप्रायः संश्रोतुं तव राघव ।
समाधाय मति राम निशामय वराम्यहम् ॥ उत्तरकाण्ड, सर्ग ३५, श्लोक १८
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
डिसेम्बर २००७
का वृत्तान्त प्रस्तुत किया गया है । १५, १६, १७ तथा १८ इन चार उद्देशों में अञ्जनासुंदरी का उपकथानक लालित्यपूर्ण रीति से प्रस्तुत किया है ।
दोनों रामायणों में हनुमान के जन्म तथा बचपन का वृत्तान्त है। वाल्मीकि 'अञ्जना' को हनुमान की माता के रूप में ही वर्णित करते हैं । अञ्जना के जीवन का वृत्तान्त सविस्तर नहीं देते । विमलसूरि अञ्जना के जीवन में घटी हुई अनेक व्यामिश्र घटनाओं का बयान करते हैं । २. दोनों रामायणों में वर्णित अञ्जना का कुल, माता-पिता, जन्म तथा वरसंशोधन
वाल्मीकि रामायण के अनुसार अञ्जना पूर्वभव में 'पुञ्जिकस्थला' नाम की विख्यात अप्सरा थी । ऋषि की शापवाणी से वह इस जन्म में वानर कुल में जन्मी थी । तथापि उसमें स्वेच्छानुसार रूप धारण करने का सामर्थ्य था । अञ्जना 'कुञ्जर' नामक वानराधिपति की कन्या थी । वह अत्यंत रूपवान थी ।
विमलसूरि के अनुसार वह महेन्द्र और हृदयसुन्दरी इन विद्याधर युगल की सबसे छोटी रूपवती कन्या थी । महेन्द्र राजा के मन्त्रियों ने अञ्जना ४. अंजणासुंदरी वीवाहविहाणाहियारो, पउमचरियं, उद्देश १५
पवणंजयअंजणासुन्दरीभोगविहाणाहियारो, पउमचरियं, उद्देश १६ अंजणाणिव्यासण-हणुउप्पत्तिअहियारो, पउमचरियं, उद्देश १७ पवणंजय-अंजणासुंदरीसमागमविहाणं, पउमचरियं, उद्देश १८ अप्सराप्सरसां श्रेष्ठा विख्यातपुञ्जिकस्थला । अञ्जनेतिपरिख्याता पत्री केसरिणो हरेः ॥ विख्याता त्रिषु लोकेषु रुपेणाप्रतिमा भुवि । अभिशापादभूत्तात कपित्वे कामरूपिणी ॥ दुहिता वानरेन्द्रस्य कुञ्जरस्य महात्मनः । किष्किन्धा-काण्ड, सर्ग ६६, श्लोक क्र. ८, ९, १० को पहली पंक्ति अह हिययसुंदरीए, महिन्दभज्जाएँ पवरपुत्ताणं । जायं सयं कमेणं, अरिन्दमाई सुरूवाणं । भइणी ताण कणिट्ठा, वरअञ्जणसुन्दरि ति नामेणं । रूवाणि रूविणीणं, होऊण व होज्ज निम्मविया ॥ पउमचरियं, उद्देश १५, गाथा क्र. ११-१२
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
६६
अनुसन्धान ४२
के विवाह के विविध प्रस्ताव रखें । यद्यपि महेन्द्र विद्याधर रावण का सामन्त था, तथापि रावण तथा उसके पुत्र अनेक युवतियों के स्वामी होने के कारण उसने यह प्रस्ताव ठुकराया । विद्युत्प्रभ-कुमार विद्याधर थे । तथापि उनकी सांसारिक विरक्ति के कारण महेन्द्र ने यह प्रस्ताव भी नहीं स्वीकारा । प्रल्हाद और कीर्तिमती इस विद्याधर-युगल का पुत्र ‘पवनञ्जय' राजा महेन्द्र को अञ्जना के लिए अनुरूप लगा । विवाह का प्रस्ताव मान्य हुआ ।
वाल्मीकि तथा विमलसूरि दोनों ने अञ्जना के अनुपमेय सौंदर्य का उल्लेख किया है।
विमलसूरि ने उसे 'शापित कन्या' नहीं कहा है ! कथानक रसपूर्ण होने के लिए अञ्जना के मातापिता, वरसंशोधन आदि के बारे में विस्तार से कहा है । अञ्जना को 'वानरी' न मानकर वानरवंश की विद्याधर कन्या कहा है। विमलसूरि के अनुसार रामायण के वानर पूँछवाले वानर प्राणी नहीं है। 'वानर' उनके वंश का नाम है और उनके ध्वजपर 'वानर' का चिन्ह' है। हनुमान के वानरवंश की समीक्षा करते हुए पं. श्री. दा. सातवलेकरजी ने भी अपनी किताब में विमलसरि के इस मत की पष्टि की है। यद्यपि वाल्मीकि ने 'अञ्जना' को रूपपरिवर्तनविद्या की धारिणी माना है तथापि
७. पउमचरियं, उद्देश १५, गाथा क्र. १५-२७ ८. जं जस्स हवइ निययं नरस्स लोगम्मि लक्खणावयवं ।
तं तस्स होइ नामं, गुणेहि गुणपच्चयनिमित्तं ।। इक्खूण य इक्खागो, जाओ विज्जाहराण विज्जाए । तह वाणराण वंसो,वाणरचिंधेण निव्वडिओ ॥ वाणरचिंधेण इमे, छत्ताइनिवेसिया कई जेण । विज्जाहरा जणेणं, वुच्चंति उ वाणरा तेण ॥ पउमचरियं, ६.८६, ८९-९० वानरजाति का बन्दरों जैसा वेष था । हनुमान जब रामलक्ष्मण से मिलने के लिए ऋष्यमूक पर्वत से नीचे उतरा तब उसने तपस्वी का वेष धारण किया । बाद में पुन: भिक्षु रूप छोड़कर वानर रूप धारण कर लिया । पृ. ४०४, श्रीरामायण महाकाव्य (पंचमभाग), किष्किन्धा-काण्ड, पं. श्रीपाद दामोदर सातवलेकर, सन् १९५२
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
डिसेम्बर २००७
विमलसूरि ने उसे विद्याधरी मानना ही समुचित समझा है । ३. वाल्मीकि रामायण में 'केसरी' तथा जैन रामायण में 'पवनञ्जय'
वाल्मीकि कहते हैं, 'कुंजर नामक वानर की कन्या अञ्जना 'केसरी' नामक वानरयुवक की पत्नी बनी । एक बार अञ्जना सुंदर स्त्री का रूप धारण कर के गिरिविहार कर रही थी । 'वायु' ने उसे देखा । उस पर मोहित हुआ । उसने अञ्जना को आलिंगन दिया । अञ्जना संभ्रान्त होकर बोली, 'मुझ पतिव्रता का पातिव्रत्य यह कौन भ्रष्ट कर रहा है ?' वायु बोला, 'हे यशस्विनी, मैंने मानसिक उपभोग लेकर मेरा तेज तुझमें रखा है । तुझे वीर्य, धैर्य, बुद्धिसम्पन्न, तेजस्वी पुत्र होगा । वेग में तथा लंबी छलांग लगाने में वह मेरे जैसा होगा।' अञ्जना सन्तुष्ट हुई । एक गुफा में हनुमान को जन्म दिया। इस प्रकार हनुमान वायु का औरस पुत्र (Biological father) तथा केसरी का क्षेत्रज (legal father) पुत्र था ।
यह पूरा घटनाक्रम विमलसूरि को तार्किक दृष्टि से असम्भवनीय लगा। जैसे कि
(१) वानरी अञ्जना द्वारा सुन्दर स्त्री का रूप ग्रहण करना, (२) पंचमहाभूतों में से एक होनेवाले वायु ने आलिङ्गन देना, (३) मानसिक उपभोग के द्वारा अञ्जना के गर्भ का आधान करना, (४) अञ्जना ने खुद को 'पतिव्रता' कहना तथा गर्भ के आधान से
संतुष्ट होना, (५) केसरी के घर न जाकर एकान्त गुफा में प्रसूत होना, (६) केसरी ने वायु के औरस पुत्र को खुद के क्षेत्रज ज्येष्ठ पुत्र
के स्वरूप में स्वीकारना । विमलसरि ने अपने ढंग से कथा की अतार्किकता दूर करके अञ्जना और पवनञ्जय का वृत्तान्त इस प्रकार प्रस्तुत किया है ।
अञ्जना और पवनञ्जय का विवाह उनके मातापिता ने तय किया । विवाह तीन दिन के भीतर ही करना था । सौन्दर्यवती अञ्जना का विरह १०. किष्किन्धा-काण्ड, सर्ग ६६ श्लोक क्र. १०-३०
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
६८
अनुसन्धान ४२
पवनञ्जय को सहन नहीं हुआ। वह उसको मिलने गया । वहाँ अञ्जना और सखियों में विद्युत्प्रभकुमार की बातें चली थी। अञ्जना ने प्रतिवाद न करने के कारण चंचल वृत्ति का पवनञ्जय क्रोधित हुआ रूठ कर सैन्यसहित कूच करने लगा । मातापिता ने समझा-बुझाकर विवाह रचाया । पहली ही रात में वह अञ्जना का तिरस्कार करके चला गया। बाईस साल तक अञ्जना शीलपालन करती हुई उसकी राह देखती रही । किसी कारणवश अचानक विरहव्यथा से व्याकुल पवनञ्जय सिर्फ एक रात के लिए अञ्जना के पास आया । उनका मिलन हुआ। किसी को सूचित किये बिना पवनञ्जय चला गया। गर्भवती अञ्जना पर पवनञ्जय के किसी स्वजन ने विश्वास नहीं किया । चारित्रहीनता का आरोप लगाकर उसे घर से निकाल दिया । अञ्जना के मातापिता ने भी धिक्कारा । अपनी प्रिय सखी के साथ घूमती हुई अञ्जना ने एक गुफा में बालक को जन्म दिया। गुफा में पधारे अमितगति मुनि के साथ अञ्जना ने बातचीत की। अपना दुःख बताया । मुनि ने पूर्वजन्म के बारे में कहकर सान्त्वना दी । अञ्जना के मामा अञ्जना की खोज करते हुए वहाँ पहुँचे । मामा उन तीनों को अपने हनुरुहपुर नामक नगर में ले गये । पवनञ्जय भी फिर से अञ्जना की विरह व्यथा से व्याकुल होकर उसे ढूँढने - खोजने लगा । पवनजंय की खोज में निकले हुए मामा ने उसे देखा । दोनों हनुरुहपुर वापस गये । अञ्जना और पवनञ्जय का मिलन हुआ । १
अञ्जनापवनञ्जयवृत्तान्त का प्रस्तुतीकरण करते समय विमलसूरि ने निम्नलिखित बातें ध्यान में रखीं होगीं
*
११.
'वायु और 'केसरी' इन दोनों व्यक्तिरेखाओं के स्वभावविशेष एकत्रित करके विमलसूरि ने 'पवनञ्जय' का व्यक्तिचित्रण किया है । अञ्जना पर मोहित होना, अचानक उसके कक्ष में पधारना, बातें सुनकर क्रोधित होकर निकल जाना, विवाह कर के तत्काल परित्याग करना, बाईस साल दूर रहना, सिर्फ एक रात के लिए वापस आना, उसकी विरहव्यथा से व्याकुल होकर अन्नत्याग करना । इन सब घटनाओं की उत्पत्ति लगाने के लिए विमलसूरिने 'चंचलता' को पवनञ्जय के स्वभाव का
पउमचरियं, उद्देश १५, १६, १७, १८
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
डिसेम्बर २००७
स्थायीभाव माना । पवनञ्जय के लिए 'पवनगति' तथा 'पवनवेग' इन दोनों नामों का भी प्रयोग किया है। पुरुषों के चंचल स्वभाव के कारण स्त्रियों को जो भुगतना पड़ता है, उसे मानों प्रतीकस्वरूप ही 'अञ्जना' का आयुष्य चित्रित किया है । अञ्जना को 'पतिव्रता' मानना और उसने वायु के द्वारा पुत्र होने पर संतुष्ट होना, ये दोनों घटनायें अञ्जना के चारित्र्य के बारे में प्रश्न उपस्थित करते हैं । पति के रूप में सिर्फ 'पवनञ्जय' को प्रस्तुत करके
विमलसूरि ने अञ्जना का कलंक दूर किया है। * पति के द्वारा परित्यक्ता स्त्री की निराधार अवस्था को भी उन्होंने
तत्कालीन सामाजिकता से अधोरेखित किया है । निरपराध अञ्जना के दुःख का स्पष्टीकरण पूर्वकर्म तथा कर्मसिद्धांत के
द्वारा किया है। * 'मामा' के रूप में मानवीय स्वभाव के अच्छे अंश पर भी प्रकाश डाला
वाल्मीकि ने हनुमान को वायु का 'औरस' तथा केसरी का क्षेत्रज' पुत्र मानकर यह बात वहीं छोड दी । उसका कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया। विमलसूरि ने 'केसरी' और 'वायु' दोनों अलग व्यक्तिरेखायें न मानकर इस कलंक को हटाने का प्रयास किया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि विमलसूरि का स्त्रियों के प्रति दृष्टिकोण मानवीय तथा सहृदयता का
था। * वाल्मीकि रामायण में केसरी और अञ्जना के जीवनवृत्तान्त के सब छूटे
हुए कच्चे धागे एकत्रित करके विमलसूरि ने एक उपकथानक ठीक तरह से प्रस्तुत किया । इस कथा से विमलसूरि ने अञ्जना का सतीत्व उजागर किया ।
___ अपभ्रंश में कवि स्वयम्भूद्वारा विरचित 'पउमचरिउ' में अंजनाकथा के प्रस्तुतीकरण
में प्राय: विमलसूरि का ही अनुकरण किया है । कवि स्वयम्भूदेव का काल दसवीं शताब्दी है।
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________ 70 अनुसन्धान 42 उपसंहार वाल्मिकी रामायण में उपस्थित असम्भाव्य घटनायें तथा अद्भुत और अतार्किक अंशों को दूर करके तार्किक आधार पर उसकी प्रतिष्ठा करना यही विमलसूरिकृत जैन रामायण का उद्दिष्ट है / इसी उद्दिष्ट का अनुसरण करके विमलसूरि ने अञ्जना की कथा प्रस्तुत की है / विमलसूरि के अञ्जनापवनञ्जयवृत्तान्त की विशेषताएँ इस प्रकार हैं* किसी अद्भुत वर या शाप का आधार न लेना / * कथानक प्रवाहित होने के लिए कृत्रिमता का आधार न लेकर मानवीय स्वभाव के विशेषों का उपयोजन करना / सती अञ्जना का चरित्र निष्कलङ्कता से प्रस्तुत करना / * निरपराध अञ्जना के दुःखों का कर्मसिद्धान्त के आधार से स्पष्टीकरण देना / * स्त्रियों के प्रति मानवीय तथा सहृदय दृष्टिकोण अपनाना / * प्रसंगोपात्त सामाजिक तथ्यों पर प्रकाश डालना / उपर्युक्त बातों का आधार लेकर विमलसूरि ने वाल्मीकि द्वारा प्रस्तुत संक्षिप्त एवं त्रुटित, अञ्जनाकथा को एक परिपूर्ण उपकथानक के रूप में प्रस्तुत किया है। सन्दर्भ ग्रन्थ 1. पउमचरियं, विमलसूरि, प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, अहमदाबाद 2. श्रीमद्वाल्मीकोयरामायणम्, गीताप्रेस, गोरखपुर 3. श्रीरामायण महाकाव्य, किष्किन्धा-काण्ड, पं. श्रीपाद दामोदर सातवलेकर पारडी (जि. सूरत), 1952 4. भारतीय संस्कृति-कोश Research Assistant, Sanmati-Teerth, Research Institute of Prakrit & Jainology, Recognised by Pune University, Firodiya Hostel, BMCC Road, Pune-4.