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डिसेम्बर २००७
विमलसूरि ने उसे विद्याधरी मानना ही समुचित समझा है । ३. वाल्मीकि रामायण में 'केसरी' तथा जैन रामायण में 'पवनञ्जय'
वाल्मीकि कहते हैं, 'कुंजर नामक वानर की कन्या अञ्जना 'केसरी' नामक वानरयुवक की पत्नी बनी । एक बार अञ्जना सुंदर स्त्री का रूप धारण कर के गिरिविहार कर रही थी । 'वायु' ने उसे देखा । उस पर मोहित हुआ । उसने अञ्जना को आलिंगन दिया । अञ्जना संभ्रान्त होकर बोली, 'मुझ पतिव्रता का पातिव्रत्य यह कौन भ्रष्ट कर रहा है ?' वायु बोला, 'हे यशस्विनी, मैंने मानसिक उपभोग लेकर मेरा तेज तुझमें रखा है । तुझे वीर्य, धैर्य, बुद्धिसम्पन्न, तेजस्वी पुत्र होगा । वेग में तथा लंबी छलांग लगाने में वह मेरे जैसा होगा।' अञ्जना सन्तुष्ट हुई । एक गुफा में हनुमान को जन्म दिया। इस प्रकार हनुमान वायु का औरस पुत्र (Biological father) तथा केसरी का क्षेत्रज (legal father) पुत्र था ।
यह पूरा घटनाक्रम विमलसूरि को तार्किक दृष्टि से असम्भवनीय लगा। जैसे कि
(१) वानरी अञ्जना द्वारा सुन्दर स्त्री का रूप ग्रहण करना, (२) पंचमहाभूतों में से एक होनेवाले वायु ने आलिङ्गन देना, (३) मानसिक उपभोग के द्वारा अञ्जना के गर्भ का आधान करना, (४) अञ्जना ने खुद को 'पतिव्रता' कहना तथा गर्भ के आधान से
संतुष्ट होना, (५) केसरी के घर न जाकर एकान्त गुफा में प्रसूत होना, (६) केसरी ने वायु के औरस पुत्र को खुद के क्षेत्रज ज्येष्ठ पुत्र
के स्वरूप में स्वीकारना । विमलसरि ने अपने ढंग से कथा की अतार्किकता दूर करके अञ्जना और पवनञ्जय का वृत्तान्त इस प्रकार प्रस्तुत किया है ।
अञ्जना और पवनञ्जय का विवाह उनके मातापिता ने तय किया । विवाह तीन दिन के भीतर ही करना था । सौन्दर्यवती अञ्जना का विरह १०. किष्किन्धा-काण्ड, सर्ग ६६ श्लोक क्र. १०-३०
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