Book Title: Angchulika Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 5
________________ अत्तरिया वसंयजित्ताविहरामि श्यतिशिवारे-नवे सम्बंदितासा सोनई इकार तुम्हे पंचम छ्याई राई जो यएवेरमण बाई सहिय या वसंजिताएं विहरामि इच्छा इवमा समलो पुपया हि समवसर ऐकायचा तसा प्राय रियनवज्ञान विहो दिसावंधो कारई मुगगणे मुगसाहा मुकुलं मुगायरिया मुगनवाया श्रमुनि महत्तरासान सिरिसुम्मस्स सामियान मुगारिय परंपरा ९॥ जहादसा सु यरकंधे श्रमय खेराव लावुया तहातमा सी गोवा वियचो जहा जंगमपरंपराए कोडगऐवश्य सादा चंदकु विसंति एवं एनिहाए कि पंचमदायर एक देस दिति गुरु वशिया निगिया रश्कि या रोहिली पंच सालि रक एवं जाएगायाममा कहाए ९साचाराविह जंममं पुरो समरों भगवयामावारे वियाहिया स्याए विही ९ इंद नईयारका चन्दम सादस्सिय पचावियाजासह पचाविया ततुमपि १९१वा दिन ताममिं पन्चासे विप्रायरियन साया सीस सिप पाइति जाब पुष्प सहरावि एवं पचास एसा परंपरा सुझाएयाएप छवि का रसाइदो से जल मे हा बुझाए मायं सेवमाणाविषुइं जिएमयं पचासयंता सोया क या एविहारदिकिवा जिएमयं लिएहवंता बंद लिज्ञा जंबू जेजिस समयं सुजाति अप्पणोपमाये संता ते सावयमा विद्याएं बंदलियासकार शिक्षा सम्मा शिक्षा पहिं केवल पाय पुं न सहनेसणं असा एखाइ साइमे पाठकलासंधारणं पडिला णिक्षा एवंविहा९पडि लाजिया विसाल जाए सावयसानिया नति एलीजाक परो जंबूएसा पचावल विफलं परंजे पहावरा वि एव दिया जेके सातिलासिरहिं पास या परंपरा गया नऊ यरे पमायर दहुल सयमेव पचे इति सयमेवमुंद्रावि सति सयमेव Jain Education International For Personal & Private Use Only Doctor Best Institute Viiay Valu Dad, P.O. Alpu www.janelibrary.orgPage Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32