Book Title: Angavijja ma Nirdishta Bharatiya Greek Kalin ane Kshatrap kalin Sikka
Author(s): H C Bhayani
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 7
________________ [ 89] मंगळपात्र, विरहोत्कंठा अदृश्य थई ते उतारीने फेंकेलं लूण, सखीओनी (आनंद)अश्रुधारा ते जळनो अभिषेक, विरहानल बुझायो ते आरती-आ रोते प्रियतमना आगमने मुग्धाए मंगळविधि संपन्न कर्यो । (वी. एम. कुलकर्णी संपादित Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poctics. भाग १, परिशिष्ट १, पृ. ३४) 1 आनो ज जाणे के पडयो सोमप्रभे 'कुमारपालप्रतिबोध'मां पाड्यो छे. कोशा गणिकाए स्थूलभद्रने पोताने त्यां आवतो जोई कई रोते तेनुं पोतानां अंगो वगैरेथी प्रेमभावे स्वागत कर्यु ते वर्णवतां कवि कहे छे : कलिउ दप्पणु वयण- पउमेण रोलंब-कुल-संवलिय, कुसुम-बुट्टि दिट्ठिहिं पयासिय । । पल्हत्थ-उवरिल्ल थण, कणय-कलस-मंगल्ल-दरिसिय ।। चंदणु देसिउ हसिय-मिसि, इय कोसहि असमाणु । घर पविसंतह तासु किउ, निय-अंगिहिं संमाणु ।। (१९९५नुं पुनर्मुद्रण, पृ. ५०६, पद्यांक १४) 'वदनरूपी दर्पण धर्यु, दृष्टिपातो वडे भ्रमर-मंडित कुसुमवृष्टि करी, उत्तरीय खसी जतां प्रगट बनेल स्तनो वडे मांगलिक कनककलश दर्शाव्या, हास्यवडे चंदन .. एम घरमा प्रवेश करता स्थूलभद्रनु कोशाए पोतानां अंगो वडे अनुपम संमान कयुं.' छेवटे विश्वनाथना 'साहित्यदर्पण'मांथी : अत्युन्नत-स्तन-युगा तरलायताक्षी, द्वारि स्थिता तदुपयान-महोत्सवाय । सा पूर्ण-कुंभ-नव-नोरज-तोरण स्रक्-संभार-मंगलमयत्न-कृतं विधत्ते ॥ 'जेनुं स्तनयुगल अति उन्नत छे, अने नेत्रो चंचळ तथा दीर्घ छे एवी ते तरुणी प्रियतमना आगमननो उत्सव मनाववा द्वारप्रदेशमां ऊभी छे. तेथी पूर्णकुंभ, नीलकमळ अने तोरणमाळानी मंगळसामग्री कशा ज यत्न वगर उपस्थित थई गई छे.' आम, मूळे बीज रूपे जोवा मळतुं एक काव्यात्मक भावनुं वर्णन उत्तरोत्तर परंपरामां कविओ द्वारा केवु विस्तरण पामतुं जाय छे तेनुं आ एक सरस उदाहरण छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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