Book Title: Anekantwad aur Syadwad Author(s): Chetanprakash Patni Publisher: Z_Sajjanshreeji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012028.pdf View full book textPage 4
________________ खण्ड 4 : धर्म, दर्शन एवं अध्यात्म चिन्तन 103 1. स्यादस्ति-प्रत्येक वस्तु अपने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा है। 2. स्याद्नास्ति-प्रत्येक वस्तु पर-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा नहीं है। 3. स्याद् अवक्तव्य-प्रत्येक तस्तु अनन्तधर्मात्मक है, उसका सम्पूर्ण स्वरूप वचनातीत है / वस्तु का परिपूर्ण स्वरूप किसी भी शब्द के द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता अतः वस्तु अवक्तव्य है / ये तीनों भंग ही शेष भंगों के आधार हैं। 4. स्यादस्ति नास्ति-यह भंग वस्तु का उभयमुखी कथन करता है कि वस्तु किस स्वरूप में है और किस रूप में नहीं है / प्रथम भंग वस्तु के केवल अस्तित्व का, द्वितीय भंग केवल नास्तित्व का कथन करता है और तीसरा भंग अवक्तव्य का कथन करता है परन्तु यह भंग अस्तित्व और नास्तित्व इन दोनों 5. स्यादस्ति अवक्तव्य-वस्तु अस्ति स्वरूप है तथापि समग्र रूप से अवक्तव्य है। 6. स्याद् नास्ति अवक्तव्य-पर-द्रव्य, क्षेत्र आदि की अपेक्षा वस्तु असत् होते हुए भी सम्पूर्ण रूप से उसका स्वरूप वचनातीत है। 7. स्यादस्ति नास्ति अवनव्य-अपने स्वरूप मे सत् और पर-रूप से असत् होने पर भी वस्तु समग्र रूप से अवक्तव्य है। उपर्युक्त भंगों को व्यावहारिक पद्धति से समझने के लिए एक उदाहरण दिया है हमने किसी व्यापारी से व्यापार सम्बन्धी वार्तालाप करते हुए पूछा कि आपके व्यापार का क्या हाल है ? इस प्रश्न का उत्तर उपर्युक्त सात विकल्पों के माध्यम से इस प्रकार दिया जा सकता है 1. व्यापार ठीक चल रहा है / (स्यादस्ति) / 2. व्यापार ठीक नहीं चल रहा है / (स्याद्नास्ति) 3. इस समय कुछ नहीं कह सकते, ठीक चल रहा है या नहीं। (स्याद् अवक्तव्य) 4. गत वर्ष से तो इस समय व्यापार अच्छा है, फिर भी हम भय से मुक्त नहीं हैं / (स्यादस्ति नास्ति) 5. यद्यपि व्यापार अभी ठीक-ठाक चल रहा है, परन्तु कह नहीं सकते आगे क्या होगा। (स्यादस्ति अवक्तव्य) 6. इस समय तो व्यापार की दशा ठीक नहीं है, फिर भी कह नहीं सकते आगे क्या होगा। (स्यानास्ति अवक्तव्य) 7. गत वर्ष की अपेक्षा तो कुछ ठीक है, पूर्णरूप से ठीक नहीं है तथापि कह नहीं सकते, आगे क्या होगा / (स्यादस्ति नास्ति अवक्तव्य) जिस प्रकार अस्ति नास्ति अवक्तव्य के सात भंग कहे हैं वैसे ही नित्य, अनित्य, एक, अनेक आदि में भी घटित कर लेने चाहिए। विश्व की विचारधाराएँ एकान्त के पंक में फंसी हैं। कोई वस्तु को एकान्तनित्य मानकर चलता है तो कोई एकान्तअनित्यता का समर्थन करता है। कोई इससे आगे बढ़कर वस्तु के नित्यानित्य स्वरूप को गड़बड़ समझकर अवक्तव्य कहता है, फिर भी ये सब अपने मन्तव्य की पूर्ण सत्यता पर बल देते हैं जिससे संघर्ष का जन्म होता है / जैनदर्शन स्याद्वाद के रूप में तत्त्वज्ञान की यथार्थ दृष्टि प्रदान करके सत्य का दिग्दर्शन कराता है तथा दार्शनिक जगत् में समन्वय के लिए सुन्दर आधार तैयार करता है। स्याद्वाद और अनेकान्त में परस्पर वाच्यवाचक सम्बन्ध है / स्याद्वाद अनेक धर्मात्मक वस्तु का वाचक है और अनेक धर्मात्मक वस्तु वाच्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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