Book Title: Anekantwad aur Syadwad Author(s): Chetanprakash Patni Publisher: Z_Sajjanshreeji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012028.pdf View full book textPage 2
________________ खण्ड ४ : धर्म, दर्शन एवं अध्यात्म-चिन्तन उच्चारण करने से गाय के अस्तित्व का तथा गाय से भिन्न समस्त पदार्थों के नास्तित्व का ज्ञान होता है अर्थात् गाय आने द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा है और भैंस, हरिण आदि पर-द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा नहीं है । इस प्रकार प्रत्येक पदार्थ अस्ति-नास्ति दोनों रूप है। ___ 'गाय' का पूर्ण स्वरूप समझने हेतु उसके सद्भाव (रूप, रस, गन्ध, स्पर्श आदि स्थूल इन्द्रियों से प्रतीत होने वाले गुण तथा इन्द्रियों से नहीं प्रतीत होने वाले सूक्ष्म अनन्त गुण) तथा असद्भाव रूप (भैंस आदि अभाव रूप गुण) अनन्त धर्मों को जानना परमावश्यक है क्योंकि अनन्त धर्मों के ज्ञान बिना वस्तु का स्वरूप पूर्ण रूप से जाना नहीं जा सकता । वस्तु के अस्ति-नास्ति आदि गुण परस्पर विरोधी प्रतीत होते हैं परन्तु अनेकान्तवाद/दर्शन/सिद्धान्त उन सबके विरोध को दूर कर देता है । जैसे-एक मनुष्य किसी का पिता, किसी का पुत्र, किसी का भाई, किसी का पति, श्वसुर, देवर, जेठ, मामा, दादा, पोता आदि अनेक नामधारी है तथा ये सम्बन्ध परस्पर विरोधी भी प्रतीत होते हैं कि जो पिता है वह पुत्र/पौत्र कैसे हो सकता है परन्तु अपेक्षाभेद उस विरोध का शमन कर देता है। इसी प्रकार अनेकान्त नित्य, अनित्य, एकत्व, अनेकत्व आदि विरोधी धर्मों का परिहार करता है। जिस प्रकार एक पुरुष में परस्पर विरुद्ध से प्रतीत होने वाले पितृत्व/पुत्रत्व और पौत्रत्व आदि धर्म विविध अपेक्षाओं से सुसंगत होते हैं, उसी प्रकार प्रत्येक पदार्थ में सत्ता, असत्ता, नित्यता, अनित्यता, एकता, अनेकता आदि धर्म भी विभिन्न नय-विवक्षा से सुसंगत हो जाते हैं । यथा--द्रव्याथिक नय की मुख्यता और पर्यायाथिक नय की गौणता से द्रव्य नित्य है तथा द्रव्याथिक नय की गौणता और पर्यायार्थिक नय की मुख्यता से समस्त पदार्थ अनित्य हैं तथा महासत्ता की अपेक्षा समस्त पदार्थ एक हैं। 'सद्रव्यलक्षणम्' द्रव्य का लक्षण सत् है, इसकी अपेक्षा जीवादि समस्त पदार्थ एक हैं तथा महासत्ता की अपेक्षा वर्णन किया जाये तो एक पदार्थ में दूसरे पदार्थ का सत्त्व न होने से असत् भी हैं। ऐसा कौन होगा जो प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होने वाले पदार्थों के नानापने को स्वीकार नहीं करेगा। आम का फल अपने जीवनकाल में अनेक रूप पलटता रहता है। कभी कच्चा, कभी पक्का, कभी हरा, कभी पीला, कभी खट्टा, कभी मीठा, कभी कठोर, कभी नरम आदि, ये सब आम की स्थूल अवस्थाएँ हैं । एक अवस्था नष्ट होकर दूसरी की उत्पत्ति में दीर्घकाल की अपेक्षा होती है परन्तु क्या वह आम उस दीर्घ अवधि में ज्यों का त्यों बना रहता है तथा अचानक किसो क्षण हरे से पीला, और खट्ट से मीठा बन जाता है । नहीं, आम प्रतिक्षण अपनी अवस्थाएँ परिवर्तित करता रहता है परन्तु वे क्षण-क्षण में होने वाली अवस्थाएँ इतने सूक्ष्म अन्तर को लिए हुए होती हैं कि हमारी बुद्धि में नहीं आती, जब यह अन्तर स्थूल हो जाता है तब ही वह बुद्धिग्राह्य बनता है। इस प्रकार असंख्य क्षणों में असंख्य अवस्थाओं को धारण करने वाला आम आखिर तक आम ही बना रहता है, उसी प्रकार पदार्थों की मूल सत्ता एक होने पर भी अनेक रूप धारण करती है। पदार्थ का मूल रूप द्रव्य है और प्रति समय पलटने वाली उसकी अवस्थाएँ पर्याय हैं इसलिए पदार्थ द्रव्य की अपेक्षा नित्य है और पर्याय की अपेक्षा अनित्य । द्रव्य परस्पर विरुद्ध अनन्त धर्मों का समन्वित पिण्ड है, चाहे अचेतन द्रव्य हो, चाहे चेतन द्रव्य हो, सूक्ष्म हो या स्थूल हो, मूर्तिक हो या अमूर्तिक हो, उसमें विरोधी धर्मों का अद्भुत सामंजस्य है। इसी सामंजस्य पर पदार्थ का अस्तित्व स्थिर है अतः वस्तु के किसी एक धर्म को स्वीकार कर दूसरे धर्म का परित्याग करके उसके वास्तविक स्वरूप को आँकने का प्रयत्न करना हास्यापद है तथा अपूर्णता में पूर्णता मानकर सन्तोष कर लेना प्रवंचना मात्र है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4