Book Title: Anekant darshan ki Prushtha bhumi
Author(s): 
Publisher: Z_Mahendrakumar_Jain_Nyayacharya_Smruti_Granth_012005.pdf

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Page 1
________________ अनेकान्त दर्शन की पृष्ठभूमि ज्ञान सदाचारको जन्म दे सकता है यदि उसका उचित दिशामें उपयोग हो, अतः ज्ञान मात्र ज्ञान होनेसे ही सदाचार और शान्तिवाहकके पदपर नहीं पहुँच सकता। हाँ, जो ज्ञान-जीवन साधनासे फलित होता है उस स्वानुभवका तत्त्वज्ञानत्व और जीवनोन्नायक सर्वोदयी स्वरूप निर्विवाद रूपसे स्वतःसिद्ध है । पर प्रश्न यह है कि-तत्त्वज्ञानके बिना क्या केवल आचरणमात्रसे जीवनशुद्धि हो सकती है ? क्या कोई भी धर्म या पन्थ समाज या संघमें बिना तत्त्वज्ञानके सदाचारमात्रसे, जो कि प्रायः सामान्य रूपसे सभी धर्मों में स्वीकृत है, अपनी उपयोगिता और विशेषता बता सकता है और अपने अनुयायियोंकी श्रद्धाको जीवित रख सकता है ? बुद्धका अव्याकृतवाद बद्ध और महावीर समकालीन समदेश और सम संस्कृतिके प्रतिनिधि थे । दार्शनिक प्रश्नों के सम्बन्धमें बुद्धका दृष्टिकोण था कि आत्मा लोक-परलोक आदिके शाश्वत-अशाश्वत आदि विवाद निरर्थक हैं। वे न तो ब्रह्मचर्यके लिए उपयोगी है और न निर्वेद उपशम अभिज्ञा सम्बोध या निर्वाणके लिए ही। मज्झिमनिकाय ( २।२।३ ) के चलमालंक्य सूत्रका संवाद इस प्रकार है "एक बार मालुंक्यपुत्तके चित्तमें यह वितर्क उत्पन्न हुआ कि भगवान्ने इन दृष्टियोंको अव्याकृत ( अकथनीय ) स्थापित ( जिनका उत्तर रोक दिया जाय ) प्रतिक्षिप्त ( जिनका उत्तर देना अस्वीकृत हो गया) कर दिया है-१-लोक शाश्वत है ? २-लोक अशाश्वत है ? ३-लोक अन्तवान् है ? ४-लोक अनन्त है ? ५-जीव और शरीर एक है ? ६-जीव दूसरा और शरीर दूसरा है ? ७-मरनेके बाद तथागत होते हैं ? ८-मरनेके बाद तथागत नहीं होते ? ९-मरने के बाद तथागत होते भी हैं नहीं भी होते हैं ? १०-मरनेके बाद तथागत न होते हैं और न नहीं होते ? इन दृष्टियोंको भगवान् मुझे नहीं बतलाते, यह मुझे नहीं रुचता-मुझे नहीं खभता। सो मैं भगवान्के पास जाकर इस बातको पूर्छ । यदि मुझे भगवान् कहेंगे तो मैं भगवान्के पास ब्रह्मचर्यवास करूंगा। यदि मुझे भगवान् न बतलाएँगे तो मैं भिक्षुशिक्षाका प्रत्याख्यान कर हीन ( गृहस्थाश्रम ) में लोट जाऊँगा। ___मालुक्यपुत्तने बुद्धसे कहा कि यदि भगवान् उक्त दृष्टियोंको जानते हैं, तो मुझे बताएँ। यदि नहीं जानते तो न जानने समझनेके लिए यही सीधी ( बात ) है कि वह ( साफ कह दें) मैं नहीं जानता । मुझे नहीं मालम । बुद्धने कहा "क्या मालुक्यपुत्त, मैंने तुझसे यह कहा था कि-आ मालुक्यपुत्त, मेरे पास ब्रह्मचर्यवास कर, मैं तुझे बतलाऊँगा लोक शाश्वत है आदि ।" "नहीं भन्ते" मालुक्यपुत्तने कहा ।। "क्या तूने मुझसे यह कहा था-मैं भन्ते, भगवान के पास ब्रह्मचर्यवास करूँगा, भगवान् मुझे बतलायें लोक शाश्वत है आदि" "नहीं भन्ते"। __ "इस प्रकार मालुक्यपुत्त, न मैंने तुझसे कहा था कि आ "न तूने मुझसे कहा था कि भंते"। फिर मोघ पुरुष ( फजलके आदमी ) तू क्या होकर किसका प्रत्याख्यान करेगा? मालुक्यपुत्त, जो ऐसा कहे-मैं तब तक भगवान्के पास ब्रह्मचर्यवास न करूंगा जबतक भगवान् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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