Book Title: Anekant Darshan
Author(s): U B Kothari
Publisher: Z_Munidway_Abhinandan_Granth_012006.pdf

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Page 3
________________ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ पादक सम्बन्ध है। अनेकान्तात्मक वस्तु का जांच-पड़ताल के आधार पर जो स्वरूप सामने आवे उसको भाषा द्वारा प्रतिपादित करने वाला सिद्धान्त स्यादवाद कहलाता है। स्यादवाद पद्धति से संसार की किसी भी वस्तु के स्वरूप कथन में सात प्रकार के वचनों का प्रयोग किया जाता है। यही सप्तभंगी है। ये वचन सात ही प्रकार के हो सकते है। (१) अस्तित्व है । (२) अस्तित्व नहीं है। (३) अस्तित्व अवक्तव्यम् है। ऐसे तीन मूल वचन अस्तित्व के सन्दर्भ में होंगे । गणित-शास्त्र के अनुसार भी तीन मूल वचनों के संयोगी असंयोगी और अपुनरुक्त ये सात ही भंग हो सकते हैं, अधिक हो ही नहीं सकते। माना कि कोई सेठ तीर्थयात्रा करने गये हैं। उन्हें दूर के किसी स्थान पर अपने शहर का आदमी मिला । उसने खबर दी कि आजकल हमारे प्रदेश में चोरियां बहुत हो रही है। सेठ विचार करने लगेंगे १. क्या मेरे मकान में चोरी हुई होगी? २. क्या न हुई होगी? ३. चोरी हुई होगी या न हुई होगी? ४. निश्चित क्या कह सकते हैं ? ५. हुई होगी। निश्चित क्या कह सकते हैं ? ६. न हुई होगी। निश्चित क्या कह सकते हैं ? ७. हुई होगी या न हुई होगी। निश्चित क्या कह सकते हैं ? इस प्रकार के सात प्रश्न और उनके सात उत्तर उस सेठ के मन में आयेंगे। किसी वस्तु के सम्बन्ध में उसके अस्तित्व विषयक जांच-पड़ताल को गृहीत मानकर अपेक्षा-भाव सूचक 'स्यात्' तथा निश्चितता का सूचक 'एव' जोड़कर सप्तभंगी का शास्त्रीय ढंग का ढाँचा इस प्रकार बनेगा १. स्यादस्त्येव । २. स्यान्नस्त्येव । ३. स्यादस्तिनास्तिचैव । ४. स्यादवक्तव्य एव । ५. स्यादस्त्येव स्यादवक्तव्यश्चैव । ६. स्यानास्त्येव स्यादवक्तव्यश्चैव । ७. स्यादस्तिनास्ति अवक्तव्यश्चैव । सप्तमंगी द्वारा जांच-पड़ताल करने के बाद जो निर्णय आते हैं वे स्पष्ट, निश्चित और स्वतन्त्र होते हैं और वस्तु में प्रत्येक धर्म की संगति एकदम निविवाद हो जाती है। सप्तमंगी के अलावा वस्तु के सात अलग-अलग या भिन्न स्वरूपों को समझने के लिए जैन न्याय में 'नय' की योजना की गयी है। ये नय भो सात हैं। प्रथम तीन द्रव्याथिक नय और शेष चार पर्यायाथिक नय हैं। द्रव्याथिक नय द्रव्य के सामान्य-विशेष, सामान्य तथा विशेष धर्मों का प्रतिपादन करते हैं। पर्यायाथिक नय पर्याय की वर्तमान अवस्था, लिंग, वचन काल आदि व्याकरण भेद के आधार पर शब्दों के ठीक अर्थ का प्रतिपादन करना, शब्द मेदों के आधार पर ठीक अर्थ का प्रतिपादन करना तथा क्रियामेदार्थक प्रतिपादन करना आदि कार्य करते हैं। स्याद्वाद में निक्षेप का भी एक विशेष कार्य है । निक्षेप चार हैं। निक्षेप का कार्य है स्वरूप कथन में प्रयुक्त शब्दों के अर्थों को ठीक-ठीक जानकारी प्राप्त करना । निक्षेप जानकारी देते हैं कि अमुक शब्द अमुक अर्य से नाम है, अमुक अर्थ से आकृति है, अमुक अर्थ से द्रव्य है एवं अमुक अर्थ से भाव है । निक्षेप से प्रयुक्त शब्दों के अर्थ में स्पष्टता आ जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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