Book Title: Anekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 290
________________ जैन लक्षणावलो (प्रथम भाग) श्री प्रगरचन्द नाहटा जैन धर्म के अनेक पारिभाषिक शब्द हैं जिनका सही अर्थ प्राप्त करने के लिए जैन लक्षण ग्रन्थों और शब्द कोषों की अत्यावश्यकता है। ऐसे ग्रंथों के निर्माण में बहुत लम्बा समय प्रौर प्रचर खर्च तथा काफी श्रम लगता है, पर उनकी उपयोगिता और महत्व को देखते हए यह कार्य बहत जरूरी होता है। अभी-अभी 'जैन लक्षणावली' नामक महत्वपूर्ण ग्रन्थ वीर सेवा मन्दिर, दिल्ली में प्रकाशित हुया है। श्री जुगलकि गोर जी मुख्तार ने इस ग्रन्थ को योजना बनाई थी। जब-जब मै वीर सेवा मन्दिर में उनमे मिलता तो इस ग्रथ की भी चर्चा होती और पिछले कई वर्षों से तो इसका कार्य होता हया प्रत्येक बार देखता। उस चिर प्रतीक्षित महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ का प्रथम भाग गत वर्ष प्रकाशित हो गया तो उसे देखकर बडी ही प्रसन्नता हई। पं० बालचन्द सिद्धान्त शास्त्री इधर कुछ वर्षों से इस ग्रन्थ को अन्तिम रूप देने में लगे हए थे, उन्होंने इस प्रथम भाग की प्रस्तावना भी काफी विस्तृत तथा महत्वपूण लिखी है। इस जैन पारिभाषिक शब्द कोष के प्रथम भाग में (असे लगाकर औ) तक म्वरों के शब्द आये हैं। तीन सौ बारह (३१२) पृष्ठों में मूल ग्रन्थ है। ८६ पृष्ठों की प्रस्तावना है। मूल ग्रन्थ के बाद इस ग्रन्थ को तैयार करने में जिन-जिन ग्रन्थों का उपयोग किया गया है, उन तीन सौ इकावन (३५१) दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों के ग्रन्थो का मूचो दी गई है। साथ ही इन ग्रन्थों के रचयिता एक सौ सैंतीस (१३७) विद्वानों को भी मूची दे दी गई है। प्रस्तावना में तीन मौ इकावन (३५१) ग्रन्थों में से एक सौ दो (१०२) ग्रन्थों का परिचय दिया गया है। बाकी ग्रन्थो का परिचय अगले भागों में दिया जायगा। इस ग्रन्थ में पारिभाषिक लक्षणात्मक शब्द संस्कृत में दिये है। इन शब्दो के लक्षण पिनजन ग्रन्थों में मिलते हैं, उनका मावश्यक उद्धरण देकर अन्त में हिन्दी में सारांश दिया गया है। इससे यह ग्रन्थ सभी के लिए बहत उपयोगी हो गया है। समय, थम और इस कार्य में होने वाले अर्थ व्यय खर्च की दृष्टि से इसका मूल्य २५ रु. रखा जाना उपयुक्त हो है। अगले भाग शीघ्र ही प्रकाशित हों, यही शुभ कामना है। जैन ग्रन्थालयों को इसे अवश्य खरीद करके पूरे प्रकाशित किा जाने में सहयोग देना ही चाहिए।

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