Book Title: Anekant 1954 08
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ साहित्य परिचय और समालोचन १. श्रीमहावीर स्तोत्रम् –'चन्द्रदूत काव्य ‘और गैट अप चित्राकर्षक है। सस्तासाहित्यमण्डलने और विद्वत्प्रबोध शास्त्र एवं नरसुन्दरगणिकी अव- इस पुस्तकको प्रकाशित कर असम्प्रदायक उदारताका चरिसे अलंकृत) प्रकाशक, श्राजिनदत्तसरि-ज्ञान जो परिचय दिया है वह सराहनीय है। आशा है भंडार, सूरत । पृष्ठ संख्या ६४ । मूल्य भेंट । भ वष्यमें अन्य भी शिक्षाप्रद जैन कथानकोंको मंडल प्रस्तुत ग्रन्थमें खरतर गच्छीय अभयदेवसरिके द्वारा प्रकाशमें लाया जायगा। " शिष्य जिनवल्लभसरि द्वारा रचित 'महावीर स्तोत्र' ३० ३गृहस्थ धर्म-- लेखक स्व० ० शीतलप्रसाद जी। पद्यों में दिया हुआ है, और उस पर नरसुन्दरगणीकी प्रकाशक, मूलचन्द किसनदास जी कपड़िया, सूरत। अवचूरि भी साथमें दी हुई है। . -पृष्ठ संख्या २७२, मूल्य सजिल्द प्रतिका ३) रुपया। महावीर स्तोत्र अच्छा भावपूर्ण स्तवन है। यह प्रस्तुत ग्रन्थका नाम उसके विषयसे स्पष्ट है। स्तवन विक्रमकी १२ वीं शताब्दी (सं० ११२५-११६७) इसमें मर्म से लेकर मरण पर्यन्त तक सभी आवश्यक की रचना है । अवचूरिको रचना कब हुई, यह कुछ क्रियाओंका स्वरूप और उनके करनेको विधिका परिज्ञात नहीं हो सका । उक्त स्तोत्रके कर्ता जिनवल्लभ चय दिया हुआ है । यह ग्रन्थ ३१ अ यायांमें विभक्त सूरिजी प्राकृत संस्कृत भाषाके अच्छे विद्वान थे। है गृहस्थ धर्म तुलनात्मक अध्ययनको लिए हुये एक उन्होंने अनेक स्तोत्र-ग्रन्थोंकी रचना की है। विचारपूर्ण पुस्तकके लिखे जाने की आवश्यकता है। दूसरी रचना चन्द्रदूतकाव्य है जिसके कर्ता फिर भी वह पुस्तक उसकी आंशिक पूर्ति तो करती ही साधु सुन्दरके शिष्य विमलकीर्ति हैं । और 'विद्वत्प्रबोध है। छपाई सफाई साधारण है। शास्त्रके कर्ता वल्लभगणी हैं। ४. चारुदत्त चरित्र-लेखक पं० परमेष्ठीदास इस ग्रन्थकी प्रस्तावनाके लेखक मुनि मंगलसागर जैन न्यायतीर्थ । प्रकाशक, मूलचन्द किसनदास कापहैं। ग्रन्थकी छपाई सफाई अच्छी है । ग्रन्थका प्रका- डिया सुरत | पृष्ठ संख्या १५६, मूल्य १३)। शन बालाघाट वालाका आरस हुआ है, और यह प्रस्तुत पुस्तकमें चम्पा नगरीके सेठ चारुदत्तका प्रकाशन स्थानसे भेंट स्वरूप प्राप्त हो सकता है। जीवन-परिचय दियो हआ है। लेखकने उक्त चरित्र २. बाहुबली और नेमिनाथ-बाबू माईद- सिंघई भारामलके पद्यमय चारुदत्त चरित्र, जो संवत् याल जैन सम्पादक, यशपाल जैन । प्रकाशक, मार्तण्ड १८१३ का रचा हुआ है, से लेकर लिखा है। जहाँ उपाध्याय, मन्त्री सस्तासाहित्य मण्डल, नई दिल्ली। कोई बात विरुद्ध या असंगत जान पड़ी, उसके सम्बपृष्ठ संख्या ३२ मूल्य छः पाना। न्धमें फुटनोटमें खुलाशा करनेका यत्न भी किया गया ____उक्त पुस्तक 'समाज-विकास माला' का १६ वां है। चरित नायक किस तरह वेश्या बन्धनमें पड़ कर भाग है। इसमें बाहुबली और नेमिनाथके तप और अपनी करोड़ोंकी सम्पत्ति दे डालता है, और अपने त्यागकी कथा शिक्षाप्रद कहानीके रूपमें अंकित की परिवारके साथ स्वयं भी अनन्त कष्टोंका सामना करता गई है। पुस्तककी भाषा सरल है और उक्त भहपुरुषों हुआ दुःखी होता है और विषयासक्तिके उस भयंकर के जीवन परिचयको साररूपमें रखनेका प्रयत्न किया परिणामका पात्र बनता है। परन्तु अन्त में विवेकके गया है । साथमें कुछ चित्रोंकी भी योजना की गई है जागृत होने पर किए हुए उन पापोंका प्रायश्चित करने जिससे पुस्तककी उपयोगिता बढ़ गई है । पुस्तकमें दो तथा आत्म-शोधनके लिए मुनिव्रत धारण किया, और एक खटकने योग्य भूलें रह गई हैं जैसे पोदनपुरको अपने व्रतोंको पूर्ण दृढ़ताके साथ पालन कर महद्धिक अयोध्याके पास बतलाना । जलयुद्धको घटनामें विजय- देव हुआ। पुस्तकके भाषा साहित्यको और प्रांजल के कारणको स्पष्ट न करना और नेमिनाथके साधु बनानेकी आवश्यकता है, अस्तु पुस्तककी छपाई तथा होने पर उन्हें साधुके मामूली कपड़े पहने हुए बतलाना सफाई साधारण है, प्रेस सम्बन्धी कुछ अशुद्धियाँ जब कि वे जिनकल्पी दिगम्बर साधु थे। यह सब खटकने योग्य हैं । फिर भी प्रकाशक धन्यवादाहे हैं। होते हुए भी पुस्तक उपयोगी है, छपाई सफाई सुन्दर परमानन्द जैन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38