Book Title: Andhvishwas evam Miothya Manyato ke Nivaran me Nari ki Bhumika Author(s): Maya Jain Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf View full book textPage 4
________________ चतुर्थ खण्ड | 314 कितनों को लाभ हुआ ? नारियों की थोथी मान्यतामों को नारियों के द्वारा ही, जागति पैदा करके दूर किया जा सकता है / ___ शकुन और अपशकुन सम्बन्धी निराधार धारणाएँ भी समाज में देखी जाती हैं। तीर्थंकरों की माताओं ने जो स्वप्न देखे थे वे शुभ शकुन थे, जिनका अपना विशेष महत्त्व था। वे स्वप्न धर्मनिष्ठ एवं श्रुतशीला नारी को ही दिखे / आज की नारी को भी स्वप्न दिखते हैं, पर वे सत्य से परे इसलिए हो जाते हैं कि उनके जीवन में धार्मिकता के बीज नहीं हैं / अपशकुनों का बोलबाला आज भी समाज में है-यथा-बिल्ली का रास्ता काट जाना, छींक आना आदि / पर उन पर विचार किया जाए तो ये अपशकुन क्यों हैं, इसका किसी को पता ही नहीं है अतः इन अंधविश्वासों को त्यागना होगा और इन्हें समाप्त करने के लिए नारियों को आगे माना होगा। आज की सबसे बड़ी कुरीति दहेजप्रथा समाज में व्याप्त हो रही है। दहेज की बलिवेदी पर कन्यायें चढा दी जाती हैं / इसका सबसे बड़ा कारण धार्मिक जागृति का न होना ही कहा जा सकता है / आत्महत्या जघन्य अपराध है, पर प्रात्महत्या क्यों और किसलिए की जाती है यह तो सर्वविदित ही है / ऐसे जघन्य अपराधों को नारी ही रोक सकती है। अाज हमारे समाज में मिथ्या-मान्यताओं का भी बोलबाला है। किसी शुभ कार्य के प्रसंग पर अपने इष्टदेव का स्मरण न कर, अन्य देवी देवताओं को पूजना, मन्दिर में तीर्थंकर की प्रतिमा, वीतरागता के भावों को प्रदर्शित करने वाली होती है पर व्यक्ति धनोपार्जन की लालसा आदि को लेकर यक्ष-यक्षिणियों, पद्मावती आदि की मूर्तियों की पूजा करने लगते हैं। मैं यहाँ यह बात स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि यक्ष-यक्षिणियां पद्मावती आदि श्रद्धा की पात्र तो हो सकती है परन्तु पूजा की पात्र नहीं। अंत में यही कहा जा सकता, है कि अत्याचार, अनाचार, दुराचार, पाखण्ड आदि को दूर करने में नारी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, क्योंकि उसके व्यावहारिक जीवन में मातृत्व गुण के अतिरिक्त पवित्रता, उदारता, सौम्यता, विनयसम्पन्नता, अनुशासनप्रियता, प्रादर सम्मान की भावना आदि गुणों का पुट मणि-कांचन की तरह होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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