Book Title: Anchalgaccha dwara Mewad Rajya me Jain Dharm ka Utkarsh Author(s): Balwantsinh Mehta Publisher: Z_Arya_Kalyan_Gautam_Smruti_Granth_012034.pdf View full book textPage 1
________________ अंचल गच्छ द्वारा मेवाड़ राज्य में जैनधर्म का उत्कर्ष श्री बलवन्तसिंह महेता [ श्रीमद् जैनाचार्य श्रजितसहरिके उपदेशसे सारे राज्यमें जीवहिंसा बंद ] ' राजस्थान जो भारत में जैनधर्मके प्रमुख केन्द्रों में माना जाता है उसमें मेवाड़ का प्रमुख एवं विशिष्ट स्थान रहा है । श्रहिंसाधर्म वीरोंका धर्म है और 'कर्मे सूरा सो धम्मै सूरा' के अनुसार वीर लोग ही इसका पालन कर सकते हैं । जैनाचार्योंके उपदेशसे मेवाड़के जैन वीर और वीरांगनाओं ने इसको अपने जीवन में उतार, शौर्य, साहस, त्याग और बलिदानके देश व धर्मके लिए जो अद्भुत उदाहरण उपस्थित कर मानवके गौरव व गरिमाको बढ़ाया, वे भारत के इतिहास में ही नहीं संसारके इतिहास में अनूठे माने जाकर श्रमिट रहेंगे और प्रत्येक देशके नर-नारियोंके लिए सदाके लिए प्रेरणास्रोत बने रहेंगे । अहिंसाको कायरताका प्रतीक मानने वालोंको भी मेवाड़के इन्हीं जैनवीरोंने उन्हें अपने कर्तव्यों से मुँह तोड़ उत्तर दे, जैनधर्मकी जो प्रतिष्ठा बढ़ाई है वह जैनसमाजके लिए कम गौरवकी बात नहीं मानी जायगी । राजस्थानके सब ही क्षत्रिय राजाओंको प्रजा द्वारा 'घणी खम्मां' से संबोधित किये जानेकी प्रथाका प्रचलित होना जैनाचार्यों के द्वारा 'क्षमा वीरस्य भूषणम्' के उपदेशका ही प्रतिफल माना गया है । कर्मभूमि ही धर्मकी केंद्रभूमि हो सकती है । यही कारण है कि मालवा, गुजरात तथा राजस्थान के सब ही धर्माचार्यों ने मेवाड़ को अपने धर्मप्रचारके लिए केंद्रस्थल बनाया और आशातीत सफलता प्राप्त कर जैन धर्म को व्यापक बनाया । मेवाड़ को कर्मभूमि में परिवर्तित करनेमें प्रकृति की भी बड़ी देन रही है । यही कारण है कि तीर्थंकरोंसे लेकर जैनधर्म के सबही जैनाचार्यों ने इस भूमिको स्पर्श किया । मेवाड़ बनास व चंबल नदियों और उसकी शाखाओं के कूलों व घाटियों में बसा हुआ है । जहाँ अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता डॉ. सांकलियाने उत्खनन और शोध से एक लाख वर्ष पूर्व में आदिम मानव का अस्तित्व प्रामाणित किया है । भारतमें पाषाणयुगकालीन सभ्यता के सर्वाधिक शस्त्रास्त्र भी यहीं पाये जाने से मेवाड़ स्वतः ही भारत की मानवसभ्यता के श्रादि उद्गम स्थानोंमें श्राता है और उसे कर्मभूमि में परिवर्तित करता है । मेवाड़ में जैनधर्म उतना ही प्राचीन है जितना कि उसका इतिहास । मेवाड़ श्रौर जैनधर्मका मणिकांचन संयोग है | मेवाड़ आरंभसे ही जैनधर्मका प्रमुख केंद्र रहा है । 'मोहेन्जो डेरो' के समान प्राचीन नगर आधार 'आह' और महाभारतकालीन मज्झिभिका नगर और उसकी बौद्धकालीन दुर्ग जयतुर - चित्तौड़ मेवाड़ में १. डॉ. पीटर्सन रिपोर्ट ३ और ५वीं, मेवाड़का इतिहास । શ્રી આર્ય કલ્યાણ ગૌતમ સ્મૃતિ ગ્રંથ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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