Book Title: Alap paddhati Ek Samikshatamak Adhyayan
Author(s): Devendra Kumar Jain
Publisher: Z_Fulchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012004.pdf

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Page 3
________________ पंचम खण्ड : ६७९ उक्त ग्रन्थका अनुवाद भी बहुत सरल तथा सुन्दर हुआ है। शुद्ध स्वभाव और अशुद्ध स्वभावकी व्युत्पत्ति की गई है-शुद्धं केवलभावमशुद्धं तस्यापि विपरीतम् । इसका अर्थ किया गया है-केवल भावको अर्थात् परका जिसमें कुछ भी सम्बन्ध नहीं है ऐसे भावको शुद्ध स्वभाव कहते हैं । और शुद्ध स्वभावसे विपरीत भावको अशुद्ध स्वभाव कहते हैं। भावार्थ--शुद्ध भावोंकी अपेक्षासे द्रव्य शुद्ध स्वभाववाला और अशुद्ध भावोंकी अपेक्षासे द्रव्य अशुद्ध स्वभाववाला कहलाता है। "लक्षण" का अर्थ गुण किया गया है। टिप्पणमें इसका स्पष्टीकरण है-यहाँ पर "लक्षण" शब्दसे गुणका ग्रहण किया गया है, क्योंकि लक्षण, शक्ति, धर्म, स्वभाव, गुण और विशेष आदि ये सब शब्द एक गुण रूप अर्थके ही वाचक हैं अर्थात् गुणके नाम है । पंचाध्यायीमें भी कहा है शक्तिर्लक्ष्म विशेषो धर्मो रूपं गुणः स्वभावश्च । प्रकृतिः शीलं चाकृतिरेकार्थवाचका अमी शब्दाः ।।४८।। संक्षेपमें, शास्त्राकार १३९ पृष्ठोंमें मुद्रित उक्त ग्रन्थ नयोंको समझनेके लिए एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । अनुवादकी दृष्टिसे यह एक सफल रचना है । अनुवाद करनेवालोंकी इस प्रकारके ग्रन्थोंको सामने रखकर आदर्श मानककी अवधारणा निर्धारित करनी चाहिए। इससे सरलतया भाषान्तरणका रहस्य बुद्धिगम्य हो सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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