Book Title: Ahimsa Vishva Shanti Ki Aadhar Bhumi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf

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Page 1
________________ अहिंसा : विश्व-शान्ति की आधार-भूमि भगवान् महावीर का अहिंसा-धर्म एक उच्चकोटि का आध्यात्मिक एवं सामाजिक धर्म है। यह मानव जीवन को अन्दर और बाहर-दोनों ओर से प्रकाशमान करता है। महावीर ने अहिंसा को भगवती कहा है। मानव की अन्तरात्मा को, अहिंसा भगवती, बिना किसी बाहरी दबाव, भय, अातंक अथवा प्रलोभन के सहज अन्तःप्रेरणा देती है कि मानव विश्व के अन्य प्राणियों को भी अपने समान ही समझे, उनके प्रति बिना किसी भेदभाव के मित्रता एवं बन्धुता का प्रेमपूर्ण व्यवहार करे। मानव को जैसे अपना अस्तित्व प्रिय है, अपना सुख अभीष्ट है, वैसे ही अन्य प्राणियों को भी अपना अस्तित्व तथा सुख प्रिय एवं अभीष्ट है--यह परिबोध ही अहिंसा का मूल स्वर है। अहिंसा 'स्व' और 'पर' की, 'अपने' और 'पराए' की, घृणा एवं वैर के प्राधार पर खड़ी की गई भेदरेखा को तोड़ देती है। अहिंसा का धरातल : अहिंसा विश्व के समग्र चैतन्य को एक धरातल पर खड़ा कर देती है। अहिंसा समग्र जीवन में एकता देखती है, सब प्राणियों में समानता पाती है। इसी दृष्टि को स्पष्ट करते हुए भगवान महावीर ने कहा था-'एगे आया---प्रात्मा एक है, एक रूप है, एक समान है। चैतन्य के जाति, कुल, समाज, राष्ट्र, स्त्री, पुरुष आदि के रूप में जितने भी भेद है, वे सब आरोपित भेद है, बाह्य निमित्तों के द्वारा परिकल्पित किए गए मिथ्या भेद हैं। प्रात्मानों के अपने मूल स्वरूप में कोई भेद नहीं है। और, जब भेद नहीं है, तो फिर मानव जाति में यह कलह एवं विग्रह कैसा? वास एवं संघर्ष कैसा? घृणा एवं वेर कैसा? यह सब भेदबुद्धि की देन है। और अहिंसा में भेदबुद्धि के लिये कोई स्थान नहीं है। अहिंसा और भेदबुद्धि में न कभी समन्वय हुमा है और न कभी होगा। आज जो विश्व नागरिक की कल्पना कुछ प्रबुद्ध मस्तिष्कों में उड़ान ले रही है, 'जय जगत' का उद्घोष कुछ समर्थ चिन्तकों की जिह्वा पर मुखरित हो रहा है, उसको मूर्तरूप अहिंसा के द्वारा ही मिलना सम्भव है। दूसरा कोई ऐसा आधार ही नहीं है, जो विभिन्न परिकल्पनाओं के कारण खण्ड-खण्ड हुई मानव-जाति को एकरूपता दे सके । प्रत्येक मानव के अपने सृजनात्मक स्वातंत्र्य एवं मौलिक अधिकारों की सुरक्षा की गारण्टी, जो विश्वनागरिकता तथा जयजगत का मूलाधार है--उसे अहिंसा ही दे सकती है, अन्य कोई नहीं। अहिंसा विश्वास की जननी है। और, विश्वास परिवार, समाज और राष्ट्र के पारस्परिक सदभाव, स्नेह और सहयोग का मूलाधार है। अहिंसा, अविश्वास के कारण इधर-उधर बेतरतीब बिखरे हुए मानव-मन को विश्वास के मंगल सूत्र में जोड़ती है, एक करती है। अहिंसा 'संगच्छध्वम्, संवदध्वम्' की ध्वनि को जन-जन में अनुगंजित करती है, जिसका अर्थ है-साथ चलो, साथ बोलो। मानव-जाति की एकसूत्रता के लिए यह एक साथ' का मन्त्र सबसे बड़ा मन्त्र है। यह एक साथ' का महामन्त्र मानव-जाति को व्यष्टि की क्षद्र भावना से समष्टि की व्यापक भावना की दिशा में अग्रसर करता है। अहिंसा का उपदेश है, संदेश है, आदेश है कि व्यक्तिगत अच्छाई, प्रेम और त्याग से, आपसी सद्भावनापूर्ण पावन परामर्श से, केवल साधारण स्तर की सामाजिक एवं राजनैतिक समस्याओं को ही नहीं, जाति, सम्प्रदाय, संस्कृति और राष्ट्रों की विषम-से-विषम उलझनों को भी सुलझाया जा सकता है। और, यह सुलझाव ही भेद में अभेद का, अनेकता में एकता का विधायक है। अहिंसा : विश्व-शान्ति की प्राधार-भूमि २६७ Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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