Book Title: Ahimsa Tattva ko Jivan me Utaro Author(s): Hastimal Acharya Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf View full book textPage 4
________________ • ३२४ • व्यक्तित्व एवं कृतित्व के पास आयोगे । आप एक दूसरे का आदर करना सीख लो तो कोई मतभेद की बात ही नहीं रहती। यह भूमिका अहिंसा सिखाती है। गाँधीजी ने अहिंसा की भूमिका को भ० महावीर की कृपा से प्राप्त किया। उनका सिद्धान्त कठिन होने पर भी उसे मानकर इस अमृत को गाँधीजी ने पिया। उन्होंने सोचा कि देश और देशवासियों को हमें गुलामी से मुक्त कराना है। सुभाष भी यही चाहते थे और गाँधी भी यही चाहते थे। सुभाष और गाँधीजी का उद्देश्य एकसा था । सुभाष ने कहा कि मेरा भारतवर्ष आजाद हो, गाँधीजी भी चाहते थे कि देश आजाद हो । तिलक भी चाहते थे कि देश आजाद हो । गोखले भी चाहते थे कि देश आजाद हो। अन्य नेता लोग भी चाहते थे कि देश आजाद हो। आज कोई कहे कि शान्ति और क्रान्ति दोनों में मेल कैसे हो सकता है ? आज कहने को तो कोई यह भी कह सकता है कि गाँधीजी की अहिंसा की नीति दब्बूपन और कायरता की थी। सुभाष की क्रान्ति की नीति से, सेना की भावना में परिवर्तन हो गया । सैनिकों ने विद्रोह मचा दिया, इसलिये अंग्रेजों को जाना पड़ा। __कहने वाले भले ही विविध प्रकार की बातें कहें, लेकिन मैं आपसे इतना ही पूछेगा कि क्या गाँधीजी और सुभाष के विचारों में भेद होते हुए भी सुभाष और उनके साथियों ने कभी अपने शब्दों में गाँधीजी का तिरस्कार करने की भावना प्रगट की? उन्होंने अपने भाषणों में ऐसी बात नहीं कही। यदि उनके विचारों में टक्कर होती तो फूट पड़ जाती और ऐसी स्थिति में देश आजाद हो पाता क्या ? नहीं। गाँधीजी अपने विचारों से काम करते रहे और सुभाष अपने विचारों से काम करते रहे। शौकतअली, मोहम्मदअली आदि मुस्लिम नेता भी आजादी की लड़ाई में पीछे नहीं रहे। वे भी कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे थे। ____ मैं जब वैराग्य अवस्था में अजमेर में था, तब गाँधीजी, हिन्दू, मुस्लिम, सिख आदि समुदायों के नेता, शान्त-क्रान्ति के विचार वाले वहाँ एक मंच पर एकत्रित हुए थे । सबके साथ आत्मीयता का सम्वन्ध था । गाँधीजी सोचते थे कि ये सब मेरे भाई हैं । देश को मुक्त कराने के लिये हम सब मिलकर काम कर सकते हैं । इसीलिये देश गुलामी से मुक्त हुआ। कैसे हुआ ? देश की आजादी के विषय में विविध विचार होते हुए भी बुद्धिजीवियों की श्रृंखला जुड़ी और Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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