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अहिंसा - तत्त्व को जीवन में उतारें
परम मंगलमय जिनेश्वर देव का जब-जब स्मरण किया जाता है, मन सेविकारों का साम्राज्य एक तरह से बहिष्कृत हो जाता है । विकारों को निर्मूल करने का साधन अपनाने से पहले उसका आदर्श हमारे सामने होना चाहिये ।
व्यवहार मार्ग में भी आदर्श काम करता है और अध्यात्म मार्ग में भी आदर्श काम करता है । चलने के लिये, यदि हमको चलकर राह पार करनी है तो कैसे चलना, किधर से चलना और आने वाली बाधानों का कैसे मुकाबला करना, उसके लिये व्यक्ति को कुछ आदर्श ढूँढ़ने पड़ते हैं ।
हमारी अध्यात्म साधना का और विकारों पर विजय मिलाने का आदर्श जिनेन्द्र देव का पवित्र जीवन है । वैसे ही आप सांसारिक जीवन में हों, राजनीतिक जीवन में हों या घरेलू जीवन में हों, उसमें भी मनुष्य को कुछ आदर्श लेकर चलना पड़ेगा ।
भ० महावीर ने हजारों वर्ष पहले जो मार्ग अपनाया, उसे तीर्थंकर देव की स्तुति करके शास्त्रीय शब्दों में इस प्रकार कहा गया है - " अभयदयाणं, चक्खुदयाणं ।" यह बढ़िया विशेषण है और अब अपने सामने चिन्तन का विषय है ।
वास्तव में दूसरे को अभय वही दे सकता है, जो पहले स्वयं अभय हो जाय । खुद अभय हो जायगा, वही दूसरों को अभय दे सकता है । और खुद अभय तभी होगा जब उसमें हिंसा की भावना न रहेगी ।
श्रष्टांग योग :
यम,
हमारे यहां एक साधना प्रिय आचार्य हुए हैं, पतंजलि ऋषि । उन्होंने अष्टांग योग की साधना मुमुक्षुजनों के सामने रखी । अष्टांग योग में पहला हैफिर नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि । यम पाँच प्रकार के हैं । श्रहिंसा, सत्य अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह | सबसे पहला स्थान अहिंसा को दिया गया है । उन्होंने कहा कि जब तक अहिंसा को साध्य बनाकर नहीं चलोगे, तब तक आत्मा को समाज को, राष्ट्र को और किसी को दुःख मुक्त नहीं कर सकोगे । अहिंसा एक ऐसी चीज है, जो प्रति आवश्यक है ।
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• व्यक्तित्व एवं कृतित्व
अहिंसा का लाभ बताया कि अहिंसा क्यों करनी चाहिये। पतंजलि के शब्दों में ही आपसे कहूँगा, "अहिंसा प्रतिष्ठायां वैरत्यागः ।" यदि आप चाहते हैं कि दुनिया में आपका कोई दुश्मन न रहे, आपका कोई दुश्मन होगा, तो आप चैन की नींद सो सकेंगे क्या ? यदि पड़ोसी द्वष भावना से सोचता होगा, तो आपको नींद नहीं आयेगी। राजनीतिक क्षेत्र में, समाज के क्षेत्र में, धन्धे बाड़ी के क्षेत्र में भी आप चाहेंगे कि दुश्मन से मुक्त कैसे हों? मुक्ति की तो बहुत इच्छा है, लेकिन कर्मों की मुक्ति करने से पहले संसार की छोटी मोटी मुक्ति तो करलो।
संसार चाहता है कि पहले गरीबी से मुक्त हों। आप लोग इण वास्ते ही तो जूझ र्या हो । यदि देश पराधीन है तो सोचोगे कि गुलामी से मुक्त होना चाहिये । अंग्रेजों के समय में अपने को क्या दुःख था ? भाई-बहिनों को और कोई दु:ख नहीं था, सिर्फ यही दु:ख था कि मेरा देश गुलाम है। आप जैसे मान रहे हैं वैसे ही गाँधीजी को क्या दुःख था ? उनको खाने-पीने का, पहनने का दुःख नहीं था, सिर्फ यही दुःख था कि मेरा देश गुलाम है। उन्होंने सोचा कि गुलामी से मुक्त होने के दो तरीके हैं। एक तरीका तो यह है कि जो हमको गुलाम रखे हुए हैं, उनके साथ लड़ें, झगड़ें, गालियाँ दें, उनके पुतले जलावें । दूसरा तरीका यह है कि उनको बाध्य करें, हैरान करें, चेतावनी दें । उनको विवश करदें । उनको यह मालूम हो जाय कि उनके प्राधीन रहनेवालों में से उन्हें कोई नहीं चाहता है इसलिये अब उन्हें जाना पड़ेगा। इन दोनों रास्तों में से कौनसा रास्ता अपनाना चाहिए ?
अहिंसा की भूमिका :
गाँधी ने इस पर बड़ा चिन्तन किया । शायद यह कह दिया जाय तो भी अनुचित नहीं होगा कि महावीर की अहिंसा का व्यवहार के क्षेत्र में उपयोग करने वाले गाँधी थे । संसार के सामने उसूल के रूप में अहिंसा को रखने वाले महावीर के बाद में वे पहले व्यक्ति हुए। अहिंसा का व्यवहार के क्षेत्र में कैसे उपयोग करना ? घर में इसका कैसे व्यवहार करना ? पड़ोसी का कलह अहिंसा से कैसे मिटाना ? यह चिंतन गाँधीजी के मन में पाया। उन्होंने सोचा कि हमारे लिए यह अमोघ शस्त्र है। हमारे गौरांग प्रभु के पास में तोपें हैं, टैंक हैं, सेना है, तबेला है और हमारे पास में ये सब नहीं हैं ।
अब इनको कैसे जीतना, कैसे भगाना, कैसे हटाना और देश को मुक्त कैसे करना ? यदि आपकी जमीन किसी के हाथ नीचे दब गई है तो आप क्या करोगे भाई ? आपको शस्त्र उठाना नहीं पाता, चलाना नहीं पाता, तो पहले आप उसको नरमाई के साथ कहोगे। इस पर नहीं मानता है तो धमकी दोगे,
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इससे भी काम नही चलेगा, तो राज्य की अदालत में कानूनी कार्यवाही करोगे, दाबा करोगे । नतीजा यह होगा कि इस पद्धति से काम करते वर्षों बीत जायेंगे। इससे काम नहीं चलेगा।
गाँधीजी ने अहिंसा का तरीका अपनाया। सबसे पहले उन्होंने कहा कि मैं अहिंसा को पहले अपने जीवन में उतारूं । भ० महावीर ने जिस प्रकार अहिंसा को समझा, समाज के जीवन में और विश्व के सम्पूर्ण प्राणी मात्र के जीवन में काम आने वाला अमृत बताया और यह बताया कि अहिंसा का अमृत पीने वाला अमर हो जाता है, जो अहिंसा का अमृत पीयेगा वह अमर हो जायेगा। उसी अहिंसा पर गाँधीजी को विश्वास हो गया। गाँधीजी के सामने भी देश को आजाद करने के लिये विविध विचार रहे। देश की एकता और आजादी मुख्य लक्ष्य था । देश में विविध पार्टियाँ थी। इतिहास के विद्यार्थी जानते होंगे कि आपसी फूट से देश गुलाम होता है और एकता से स्वतंत्र होता है । देश गुलाम कैसे हुआ ? फूट से।
देश में राजा-महाराजा, रजवाड़े कई थे जिनके पास शक्ति थी, ताकत थी, जिन्होंने बड़े-बड़े बादशाहों का मुकाबला किया। छत्रपति शिवाजी कितने ताकतवर थे । राजस्थान को वीरभूमि बताते हैं । वहाँ पर महाराणा प्रताप, दुर्गादास राठौड़ जैसे बहादुर हुए जिन्होंने आँख पर पट्टी बाँधकर शस्त्र चलाये और बड़े-बड़े युद्धों में विजय पाई, अपनी पान रखी। ऐसे राजा-महाराजाओं के होते हए भी देश गुलाम क्यों हुआ? एक ही बात मालूम होती है कि देश में फूट थी। ताकतवर ने ताकतवर से हाथ मिलाकर, गले से गला मिलाकर, बाँह से बाँह मिलाकर काम करना नहीं सीखा, इसलिये बादशाहों के बाद गौरांग लोग राजा हो गये। उन्होंने इतने विशाल मैदान में राज्य किया कि सारा भारतवर्ष अंग्रेजों के अधीन हो गया। मुगलों से भी ज्यादा राज्य का विस्तार अंग्रेजों ने किया। इतने बड़े विस्तार वाले राज्य के स्वामी को देश से हटाना कैसे ?
अहिंसा की सीख :
___ लेकिन गांधीजी ने देखा कि अहिंसा एक अमोघ शस्त्र है। अहिंसा क्या करती है ? पहले प्रेम का अमृत सबको पिलाती है। प्रेम का अमृत जहाँ होगा वहाँ पहुँचना पड़ेगा । आप विचार की दृष्टि से मेरे से अलग सोचने वाले होंगे। तब भी आप सोचेंगे कि महाराज और हम उद्देश्य एक ही है, एक ही रास्ते के पथिक हैं । मैं भी इसी दृष्टि से सोच रहा हूँ और वे भी इसी दृष्टि से सोच रहे हैं । हम दोनों को एक ही काम करना है। ऐसा सोचकर आप महाराज
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के पास आयोगे । आप एक दूसरे का आदर करना सीख लो तो कोई मतभेद की बात ही नहीं रहती। यह भूमिका अहिंसा सिखाती है।
गाँधीजी ने अहिंसा की भूमिका को भ० महावीर की कृपा से प्राप्त किया। उनका सिद्धान्त कठिन होने पर भी उसे मानकर इस अमृत को गाँधीजी ने पिया। उन्होंने सोचा कि देश और देशवासियों को हमें गुलामी से मुक्त कराना है।
सुभाष भी यही चाहते थे और गाँधी भी यही चाहते थे। सुभाष और गाँधीजी का उद्देश्य एकसा था । सुभाष ने कहा कि मेरा भारतवर्ष आजाद हो, गाँधीजी भी चाहते थे कि देश आजाद हो । तिलक भी चाहते थे कि देश आजाद हो । गोखले भी चाहते थे कि देश आजाद हो। अन्य नेता लोग भी चाहते थे कि देश आजाद हो।
आज कोई कहे कि शान्ति और क्रान्ति दोनों में मेल कैसे हो सकता है ? आज कहने को तो कोई यह भी कह सकता है कि गाँधीजी की अहिंसा की नीति दब्बूपन और कायरता की थी। सुभाष की क्रान्ति की नीति से, सेना की भावना में परिवर्तन हो गया । सैनिकों ने विद्रोह मचा दिया, इसलिये अंग्रेजों को जाना पड़ा।
__कहने वाले भले ही विविध प्रकार की बातें कहें, लेकिन मैं आपसे इतना ही पूछेगा कि क्या गाँधीजी और सुभाष के विचारों में भेद होते हुए भी सुभाष और उनके साथियों ने कभी अपने शब्दों में गाँधीजी का तिरस्कार करने की भावना प्रगट की? उन्होंने अपने भाषणों में ऐसी बात नहीं कही। यदि उनके विचारों में टक्कर होती तो फूट पड़ जाती और ऐसी स्थिति में देश आजाद हो पाता क्या ? नहीं। गाँधीजी अपने विचारों से काम करते रहे और सुभाष अपने विचारों से काम करते रहे। शौकतअली, मोहम्मदअली आदि मुस्लिम नेता भी आजादी की लड़ाई में पीछे नहीं रहे। वे भी कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे थे।
____ मैं जब वैराग्य अवस्था में अजमेर में था, तब गाँधीजी, हिन्दू, मुस्लिम, सिख आदि समुदायों के नेता, शान्त-क्रान्ति के विचार वाले वहाँ एक मंच पर एकत्रित हुए थे । सबके साथ आत्मीयता का सम्वन्ध था । गाँधीजी सोचते थे कि ये सब मेरे भाई हैं । देश को मुक्त कराने के लिये हम सब मिलकर काम कर सकते हैं । इसीलिये देश गुलामी से मुक्त हुआ। कैसे हुआ ? देश की आजादी के विषय में विविध विचार होते हुए भी बुद्धिजीवियों की श्रृंखला जुड़ी और
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बुद्धिजीवियों की श्रृंखला से सब संस्थाएँ और सब वर्ग एक उद्देश्य के साथ देश की मुक्ति के लिये जूझ पड़े और अंग्रेजों को बाध्य होकर देश छोड़कर यहाँ से जाना पड़ा।
यह इतिहास की कड़ी यहाँ बतादी है। देश आजाद हुआ। किससे ? अहिंसा, प्रेम और बंधु भावना की एक शक्ति के द्वारा देश आजाद हुआ, गुलामी से मुक्त हुआ । और देश परतंत्र क्यों हुआ ? आपसी लड़ाई-झगड़ों से । अहिंसा-तत्त्व को जीवन में उतारें :
यदि आप अहिंसा सप्ताह मनाते हैं । गाँधी जयन्ती की अपेक्षा से अहिंसा सप्ताह मनाते हैं, तो उसमें भाषण होंगे, प्रार्थना होगी, चर्खा कताई वगैरह होगी, ऐसे विविध प्रकार के कार्यक्रम देश के हजारों, लाखों लोग करते होंगे। लेकिन मैं कहता हूँ कि सब के साथ मिल भेंट कर अहिंसा तत्त्व को आगे बढ़ाने के लिये आप क्या कर रहे हैं ? महावीर ने धर्म क्षेत्र में अहिंसा को अपनाने को शिक्षा दी । गाँधी ने राज्य क्षेत्र में अहिंसा को अपनाने की प्रयोगात्मक शिक्षा दी। महावीर ने अहिंसा के द्वारा आत्मशुद्धि करने का बारीक से बारीक चिन्तन किया। लेकिन गाँधी ने चिन्तन किया कि घर गृहस्थी के मामलों को भी अहिंसा हल कर सकती है । अहिंसा के द्वारा कोई भी बात चाहे समाज की हो या घर की, हल की जा सकती है। जिसके घर में अहिंसा के बजाय हिंसा होगी, प्रेम के बजाय फूट होगी, वहाँ शक्ति, समृद्धि, मान, सम्मान सब का ह्रास होगा। उनका जीवन काम करने के लिये आगे नहीं बढ़ पायेगा। इसलिये महावीर का अहिंसा सिद्धान्त देश में समस्त मानव जाति को सिखाना होगा, अमली रूप में लाना होगा। सभी लोग इसे अमल में लावें, उससे पहले महावीर के भक्त इसको अपनावें, यह सबसे पहली आवश्यकता है। लेकिन महावीर के भक्तों को अभी अपनी वैयक्तिक चिन्ता लग रही है। सबके हित की बात तो बोल जाते हैं, लेकिन करने के समय अपना घर, अपनी दुकान, अपना धन्धा, अपने बालबच्चों की व्यवस्था आदि के सामने दूसरी बातों की ओर देखने की फुरसत नहीं है। चाहे देश और प्रदेश का अहित हो रहा हो, अहिंसा के बजाय हिंसा बढ़ती हो, तो भी उसके प्रतिकार के लिये सौम्य तरीके से आगे कदम नहीं बढ़ा सकते । आप सोचते हैं कि प्रो काम आपां रो थोड़े ही है, बिगड़े तो राज रो बिगड़े और सुधरे तो राज रो सुधरे। इसलिये ये समस्याएँ ज्यों की त्यों रह जाती हैं । वोलने में रह जाती हैं, करनी में नहीं आती।
__ अखबारों में खबर आती है कि दिल्ली में २८ करोड़ की लागत से नया कत्लखाना खोला जा रहा है। वहाँ पर वैज्ञानिक तरीके से जीवों की हिंसा होगी । अहिंसा के सिद्धान्त को माननेवाले देश हिंसा की ओर बढ़ रहे हैं। देश
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________________ * व्यक्तित्व एवं कृतित्व की सरकार अहिंसक कहलाने वाली गाँधीवादी सरकार है। गाँधीवादी सरकार में अहिंसा का तत्त्व कितना व्यापक होना चाहिये / गाँधीवादी सरकार कितने शुद्ध विचारों के साथ आगे आने का प्रयत्न कर रही है, यह देखने की बात है। सबसे पहले जैन कार्यकर्ताओं में से इस प्रकार की सच्ची नीति अपनाने वाले लोग आगे आवें। इस बात की देश के लिये बहुत बड़ी आवश्यकता है। इस अहिंसा तत्त्व को देश आसानी से समझे। सार्वजनिकसेवा करने वाले लोग व्यक्तिगत स्वार्थ को भुलाकर, ममत्व को भुलाकर देखें कि गाँधी जैसे व्यक्ति देश के लिये बलि हो गये, गोली खाकर मर गये, लेकिन उन्होंने अहिंसा तत्त्व को अन्त तक नहीं छोड़ा। मरते समय उनके मुंह से राम निकला / जहाँ ऐसा नमूना हमारे सामने है, वहां जैन समाज और भारत के अहिंसक समाज के लोगों को कितना उच्च शिक्षण लेना चाहिये। यदि आप अहिंसा के सिद्धान्त को अमली रूप देकर विश्व प्रेम की ओर बढ़ेंगे, तो आपका वास्तव में अहिंसा सप्ताह मनाना सार्थक होगा। एक व्यावहारिक काम देश के अहिंसा प्रेमियों के सामने यह आता है कि गाँधी सप्ताह में भी यदि कत्लखाने बन्द नहीं हों, हमारे प्राणी जो मानव समाज के लिये पोषक हैं, उन पशुनों में, गाय, भैंस, बकरे, बकरियाँ आदि जानवरों का वध इन कत्लखानों में हो और गाँधी सप्ताह के दिनों में जैन समाज के लोग, हिन्दू समाज के लोग, राम और कृष्ण को मानने वाले लोग यदि इसको रोकने की ओर कदम नहीं बढ़ा सके, तो यह कैसी बात मानी जायगी ? अहिंसा का खाली गुणगान ही करते हैं, लेकिन उनको अहिंसा में विश्वास नहीं है। मैं चाहूँगा कि हमारे जैन समाज के लोग इस दिशा में भी कदम बढ़ावें और समाज की शक्ति को अहिंसा के मैदान में लगावें। जब कभी सामाजिक बुराइयाँ मिटानी हों, राष्ट्र की बुराइयाँ मिटानी हों, तब आप कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ें। पश्चिमी देश फ्रान्स में एक व्यक्ति जंगली जानवरों तक से प्यार करने वाला हुआ। उसकी स्मृति में प्राणी दिवस मनाया जाता है। अनार्य देश के लोग अहिंसा का आदर करते हैं और अहिंसक देश हिंसा में विश्वास करने वाला बनता जा रहा है। हमने जब सतारा में चातुर्मास किया था, तब फ्रांस के उस प्राणी रक्षक भाई के बारे में बहुत कुछ सुना था। कम-से-कम जैन समाज के लोग दया और अहिंसा को अमली रूप देवें। खुद के जीवन को भी ऊँचा उठावें और जो आपके सम्पर्क में आवें, उनके जीवन को भी ऊँचा उठावें / देश और समाज को ऊँचा उठाने के साथ, विश्व प्रेम और अहिंसा के विचारों में तेजस्विता ला सकें, तो सबके लिये कल्याण की बात होगी। जो ऐसा करेगा वह इस लोक और परलोक में शांति, आनन्द और कल्याण प्राप्त करने का अधिकारी होगा। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only