Book Title: Ahimsa Aparigraha ke Sandarbh me Nari ki Bhoomika
Author(s): Saroj Jain
Publisher: Z_Sajjanshreeji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012028.pdf

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Page 4
________________ 172 अहिंसा-अपरिग्रह के सन्दर्भ में नारी की भूमिका : श्रीमती सरोज जैन हमारी बहिनों के मन में यह प्रश्न आ सकता है कि मेरे अकेले द्वारा सौन्दर्य प्रसाधन का प्रयोग न करने से जीवों की हिंसा कैसे रुक जायेगी ? अथवा मुझ अकेले द्वारा दहेज न लेने अथवा उसका प्रदर्शन न करने से मन की क्रूरता कैसे कम होगी, कैसे रुक जायेगी ? ये प्रश्न स्वाभाविक हैं। किन्तु किसी अच्छे कार्य का प्रारम्भ थोड़े ही लोगों द्वारा होता है। जब धीरे-धीरे सौन्दर्य प्रसाधनों की माँग और उपयोग कम हो जायेगा तो उनका निर्माण भी कम होने लगेगा। जब हम दहेज के प्रदर्शन के स्थान पर बहू के गुणों और उसके कुल के संस्कारों को प्रदर्शित करने लगेंगे तो अपने आप दहेज के प्रदर्शन का मूल्य कम हो जायेगा। किन्तु इस सबके लिये साहित्य प्रचार द्वारा, चर्चाओं के द्वारा, फिल्म प्रदर्शन के द्वारा महिलाओं के भीतर सौन्दर्य प्रसाधन के प्रति घृणा पैदा करनी होगी। विदेशों में यह कार्य प्रारम्भ हो गया है। वहाँ सौन्दर्य प्रसाधन बनते हुए दिखलाये जाते हैं। उनमें पशुओं की क्रूर हत्या के दृश्य देखकर महिलाएं अपने प्रसाधन कूड़े में फेंकने लगी हैं। मांसाहार की क्रूरता देखकर हजारों लोग शाकाहारी बनने लगे हैं। अमेरिका में अब हर प्रकार की क रता को रोकने के लिये अहिंसक संस्थाएँ कार्यरत हैं। अभी हाल में वहाँ “साइलैण्ट स्क्रीन" नामक 38 मिनट की फिल्म दिखाकर महिलाओं को भ्र ण-हत्या (गर्भपात) की क्रूरता से रोका जा रहा है। जब इतनी बड़ी-बड़ी हिंसाएँ रोकी जा रही हैं तो प्रसाधन में हिंसा और क्रूरता को क्यों स्थान दिया जाय ? विदेशी महिलाएँ जब अहिंसा का अनुकरण कर रही हैं तब भारत की नारियाँ इसमें पीछे क्यों रहें ? आइये, आज हम अपने धार्मिक जीवन को सार्थक करने के लिये और विश्व में सभी प्राणियों को जीने का अधिकार देने के लिये यह प्रण करें कि हम किसी भी प्रकार की क्रूरता में सम्मिलित नहीं होगी। हम सब पर्युषण में सुगन्ध दशमी का व्रत करती हैं। उसके भीतर जो मूल भावना छिपी है कि हम ऐसी बनावटी और हिंसक सुगन्धी का त्याग करें जो हमारे अहिंसा धर्म की विरोधी हों। तभी हम "जिओ और जीने दो" के सिद्धान्त को अमल में ला सकेंगे। सभी "परस्परोपग्रहो जीवानम्' के सूत्र को जीवन में उतार सकेंगे। मैं आपको यही कहना चाहूँगी कि हम दिखावटी सुखों को छोड़कर सच्ची मानवता की सेवा करें। महाकवि दिनकर ने ठीक ही कहा है-- जब तक नित्य नवीन सुखों की प्यासी बनी रहेगी। मानवता तब तक मशीन की दासी बनी रहेगी / / अतः मशीनों द्वारा हिंसक पदार्थों से बने हुए सौन्दर्य प्रसाधनों का प्रयोग अहिंसा में विश्वास रखने वाली जैन महिलाओं को नहीं करना चाहिये / यदि उन्हें अपना शृंगार करना ही है तो ऐसी वस्तुओं का वे प्रयोग करें जो प्राकृतिक साधनों से बनी हों। भारत जड़ी-बूटियों का देश है / अतः यहाँ पर देशी वस्तुओं से भी ऐसे प्रसाधन बनते हैं, जो कि न हिंसक है और न नुकसानदायक / उनका प्रयोग करके महिलाएँ अनावश्यक क्रूरता से बच सकती हैं। फैशनपरस्त महिलाओं के अन्धानुकरण से सदाचारी महिलाओं को बचना चाहिये। सादा जीवन और उच्च विचार को जीवन में अपनाने से महिलाओं के व्यक्तित्व की स्थायी छाप लोगों में पड़ती है। इससे भारतीय संस्कृति का नाम उजागर होता है / अतः प्रदर्शन की क्रूरता को रोकने में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। यदि घरेलू जीवन में क्रूरता न हो और परिग्रह के परिणामों की सही जानकारी हो तो विश्व-शान्ति की स्थापना में मदद मिल सकती है। Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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