Book Title: Agna Stotra Author(s): Kalyankirtivijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ 40 अनुसंधान-२१ तह जिणवरिंद ! आणा विराहिआ जं पमायदोसेणं / भवभमंतेणं मए तं मिच्छादक्कडं होउ // 8 // निउणमईगम आणा ववहारेणं न नज़्जई कह वि / निच्छयओ पुण नियमा तुह जिण ! भणिों पमाणं मे // 9 // मिच्छत्ततावतत्तो पत्तो तुहआणनिरुवमच्छायं / ता तत्थ कुण पसायं सामिअ ! विस्सामदाणा(णे)णं // 10 // इय वित्रत्तो जिणपहु जिणपहसूरीहिं जगगुरू पढमो / विनत्तीइ पसायं निविग्घं कुण[उ] अम्हाणं // 11 // // इति श्रीस्तवनसम्पूर्णः // संवत् 1717 वर्षे ज्येष्ठ सुदि 13 वार सकरे लखितं ॥छ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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