Book Title: Agamsaddakoso Part 4
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan
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(सुत्तंकसहिओ)
रगसिगा [रगसिका वाघ
आया. १६७,२६२,५०४; जीवा. १६७
सूय. २७८,२८२,४१७; रचित [रचित बनावेj, स्येसुं
टा. ४२४; नाया. ९३,१५७; पण्हा. १५;
उव. ५०; .
सूर. १०७: रचितग [रचितक] स्या, साधुमारे भो चंद. १११; निसी. ७७५, આદિ બનાવેલ
रजंत [रज्यत्] २।२२वोते पण्हा. ४५;
निर. ९:
उत्त. ६२३; रचिय [रचित] मो रचित'
रज्जधुरा [राज्यधुरा शयनी धुरा जीवा. १६७; अनुओ. २५६; भग. ५०६; नाया. १०.६६; रच्छा [रथ्या] शेरी
निर. ९; उत्त. १२०६;
रज्जधुराचिंतय [राज्यधूश्चिन्तका सय १२मारनी रच्छामुह [रथ्यामुख शेरीनो प्रवेशमा
ચિંતા કરનાર बुह. १२,१३;
राय. ५१ रजत रजत]यांही,३'.
रज्जपरियट्ट [राज्यपरिवर्त]। यर्नु परिवर्तन अनुओ. २५६;
वव. १८६; रजय [रजत]यांही, ३'.
रजमाण [रज्यमान]
२२तो, तो सूय. ७९४;
आया. ५४०; भग. ४०७; रज राज्य/राज्य
नाया. १८७,१८९,१९१,१९५; सूय. १६८,६४१ थी ६४४;
निसी. ७७५,१२५९; ठा. ४९४,८७२,८७५;
उत्त. १११६; भग. ८४,५०६,५१८,५८७,६५७; रजलाभ [राज्यलाभाशयनी प्राप्ति नाया. १३,१५,३३,६८,७०,७१,७६,८९, दसा. ५३; ८८,९० थी ९५,१०९,१४४,१४९, || रज्जवइ [राज्यपति/सी, रा४नोस्वामी १५३,१७३,१७५,१८०,२१३;
भग. ५१८,५२०; नाया. १३,१५; अंत. १३,२०,४०, विवा. ९,२७; रजवास [राज्यवास] २१व्यावास्थामांश्ते उव. ६,१४; राय. ४८,५०; जंबू. ४६; जंबू. ४३,५५,१२१,१२२:
रजसिरि [राज्यश्री]२२यलक्ष्मी निर. १४,१६ थी १८: वण्हि. ३:
भग. ५२३; अंत. १३; महाप. ६२; तंदु. २४,१५८; पहा. १९; विवा.३० संथा. २४,७६; गच्छा. २४;
राय. ८१
निर. १४,१७; निसी. ७२५; जीय. ९८;
रजसोक्ख [राज्यसौख्य] रायसुष दस. ५०६; उत्त. १८९,२३०, भत्त. १२२;
४९०,५७१,५७८,५९६,६०३; रजाभिसेय [राज्याभिषेक] रा त रातो अनुओ. २१५;
અભિષેક रज [र/रायो प्रीति२वी
संथा. २५;
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