Book Title: Agamsaddakoso Part 4
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 18
________________ (सुतंकसहिओ) १७ - उत्त. ८०८; रइ [रति र1ि , विषयासत, रति नाम रइय [रतिकारतियुत उव. ३१; पन्न. २२५ મોહનીય કર્મની એક પ્રકૃત્તિ, એક પાપસ્થાનક, પ્રીતિ, અનુરાગ, વિશેષનામ रइय [रतिदानंहमापनार नाया. ३३; पण्हा. १९ आया. ११२,२९७; उव. १०, जीवा. १८५ सूय. ३६२,६६८: सम. ३०९; जंबू. ३४; नाया. २७,३७,५७.१२३; रइय [रजिता रंगेहुं विवा. ११,१६,२५; उव. २१; । ओह. ३९२; राय. १२,८४; पन्न. २१७; रइयामय [रजतमय] २०४तयुत जंबू. २२७; आउ. २३; जंबू. १२८; महाप. ५; भत्त. ५४; रइल [रजस्वत्] धूमवाणु, भेटुं उत्त. १३३,४४८,४६२,५१५,६२७,७९३; जीवा. २००; रइअरइ [रतिअरति] ५५स्थान रइल्लिय रिजस्वत्सो ७५२' भत्त. १०९; भग. २८०; रइकर [रतिकर] भेनामनो मे पर्वत रइवक्का [रतिवाक्या] सवेयालिय' सूत्रनाथूसि तंदु. १५६; दस. ५०६ रइकरग [रतिकरको ७५२' रई [रति]ो 'रइ' जंबू. २३०,२३५; संथा. ४९; वीर. २३; रइकरपव्वय [रतिकरपर्वत पर्वत-विशेष रउग्घात [रजउद्घात सामोधूगवाणी थवीत वहि . ३; जीवा. १८५; रइत [रचितमuaj, साधुमारे पास तैया२:२१ગૌચરીનો એક દોષ रउस्सल [रजस्वल] २४ युति जंबू. ४९; पण्हा. १९; उव. १.१२.२४; रउस्सला (रजस्वला) तुती स्त्री राय. ५,१५,२३,२९,५९; भग. ३५९; जीवा. १७५,१८५; पन्न. ६२१: रइत [रतिदमानंहमापनार रएंत [रजत्रंगत, सामवोते निसी. १३८,१४४,१५०,१६६,१७२, जंबू. ७३; रइप्पिया [रतिप्रिया पाएव्यंत हेवनी में १८०,२५५,२६१,२६७,२८३,२८९,२९७, ४२१,४२७,४३३,४४९,४५५,४६३,४८८, અગ્રમહિષી ४९४,५००,५१६,५२२,५३०,६७०,६७६,६८२; भग.४८९: नाया. २३१; रएता [रचयित्वा स्यनारीने रइय [रचित सो 'रइत' भग. ५०६; नाया. १७०; पन्न. २०३,२०५,२१७; निर. १८; पुष्फि ५; जंबू. १४,३४,५६,६१,६२,७३,७८,८१. रओहरण [रजोहरण] २३२९, साधुन मे ८५,१२१,१२४,१२५,२२९; । ઉપકરણ चउ. ५२; दसा. ९८,९९; ॥ सूय. २८३; पण्हा. ३८,४५, 42 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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