Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 05
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi
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________________ जैनगीता। द्वादशाब्दी गुरूपास्ते-रधीत्याऽऽगमसञ्चयम् / कालं तावन्तमेवार्थं, भवेत् स्त्रार्थयुग्मवित् // 10 // विहारयेत् सूरिवरस्तमार्ण्य, साधोयुगं देशविदेशभागम् / मुण्डेत् प्रतीच्छेच्च बहून् मुनीन् स, _ विद्याच्च भाषां विविधां जनानाम् / / 11 / / जिनेशजन्मवतकेवलान्त-कृद्भूमिमेक्ष्याऽमलदर्शनाढ्यः / ज्ञात्वा पदार्ह मुनिनाथवर्याः, पदेऽभिसिञ्चन्ति सहानगारैः // 12 // सबालवृद्धे गण ईश एष, द्रव्यैर्गुणैः सत्परिवर्त्तनैः सह / , पाल्येत तेनापि जिनानुकारं, तोष्येत तेनार्थपदानि दत्त्वा / / 13 / / सूरीन्द्रपट्टस्य यथावदाहतौ, भवेजिनः सज्जनुषां तृतीये / पश्चाऽतिशेषा मुनिसार्थपेऽस्मिन् , स्वप्नेऽपि नेमेऽन्यमुनीश्वराणाम्॥१४॥ आत्मर्णमोक्षं परिवाचयन् गणं, यथा विधत्ते सुगुणांस्तु शिष्यान् / निष्पाद्य पट्टे प्रतिभासमानान् , विधाय कार्योऽन्तगतः समाधिः।।१५।। एवंविधान् गणधरान् विविधप्रकृत्या, भक्त्या समर्थ्य गुणगाननिबद्धलक्षः / आज्ञाधरो भवति दासनिकृष्टरूपो, जैनः स एव जिनशास्त्रधरैः प्रगीतः // 16 // इति तृतीयोऽध्यायः / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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