Book Title: Agamik Shabdavali aur uski Paribhashikta Author(s): Mahendrasagar Prachandiya Publisher: Z_Mohanlal_Banthiya_Smruti_Granth_012059.pdf View full book textPage 7
________________ स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ यथा१) इयर्या समिति २) भाषा समिति ३) एषणा समिति ४) आदान निक्षेपण समिति ५) परिष्ठापनिका समिति साधु समाचरी साधु-जीवन के लिए नित्यकर्मों की व्यवस्था रात और दिन में साधु को किस कार्यक्रम के अनुसार अपना साधनामय जीवन व्यतीत करना चाहिये। इस प्रकार का विधिविधान वस्तुतः साधुसमाचरी कहलाता है। ___ उत्तराध्ययन सूत्र के अनुसार श्रमचर्या हेतु समाचारी को आठ अंगो में विभक्त किया गया है। यथा - १) स्वाध्याय २) ध्यान ३) प्रति लेखन ४) सेवा ५) आहार ६) उत्सर्ग ७) निद्रा ८) विहार श्रमणचर्या के लिये कहा गया “काले कालं समाचरे" अर्थात ठीक समयपर सभी कार्य करना चाहिए। इस प्रयोग-चर्या से अनेक सहगुणों की अभिवृद्धि होती है। संल्लेखना जीवन और मरण सांसारिक प्राणी की दो प्रमुख घटनायें है। जीवन सभी को सुखद और प्रिय लगता है। मरण दुःखमय अप्रिय है। जैन संस्कृति में मरण को कलात्मक Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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