Book Title: Agamik Churniya aur Churnikar
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf
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यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - जैन आगम एवं साहित्य विवित्तचरिया चूलिता य। तत्थ धम्मे धिरीकरणत्था रतिवक्कणामधेया पढमलूचा भणिता । इदाणि विवित्तचरियोवदेसत्था बितिया चूला भाणिततव्वा । ६२
अन्त में चूर्णिकार ने अपनी शाखा का नाम, अपने गुरु का नाम तथा अपना खुद का नाम बताते हुए निम्न गाथाएँ लिखकर चूर्णि की पूर्णाहुति की है
वीरवरस्स भगवतो तित्थे कोडीगणे सुविपुलम्मि गुणगणवइराभस्सा वेरसामिस्स साहाए ।1 ॥ महरिसिसरिससभावा भावाऽभावाण मुणितपरमत्या रिसिगुत्तखमासमणो खमासमाणं निधी आसि ॥ 2 ॥ तेसिं सीसेण इमा कलसभवमईदणामधेज्जेणं । दसकालियस्स चुण्णी पयाणरयणातो उवण्णत्था ॥ 3 ॥ रुथिरपदसंधिणियता छडियपुणरुत्तवित्थरपसंगा। बक्खाणमंतरेणावि सिस्समतिबोधणसमत्था ॥4॥ ससमयपरसमयणयाण जं च ण समाधितं पमादेणं । तं खमह पसाह य इय विण्णत्ती पवयणीणं ॥ 5 ॥
चूर्णिकार का नाम कलशभवमृगेन्द्र अर्थात् अगस्त्यसिंह है। कलश का अर्थ है कुंभ, भव का अर्थ है उत्पन्न और मृगेंद्र का अर्थ है सिंह। कलशभव का अर्थ हुआ कुंभ से उत्पन्न होने वाला अगस्त्य । अगस्त्य के साथ सिंह जोड़ देने से अगस्त्य सिंह बन जाता है। अगस्त्यसिंह के गुरु का नाम ऋषिगुप्त है। ये कोटिगणीय वज्रस्वामी की शाखा के हैं।
प्रस्तुत प्रति के अंत में कुछ संस्कृत श्लोक हैं जिनमें मूल प्रति का लेखन कार्य सम्पन्न कराने वाली के रूप में शांतिमति के नाम का उल्लेख है-
सम्यक् शांतिमतिर्व्यलेखयदिदं मोक्षाय सत्पुस्तकम् ।
प्रस्तुत चूर्णि के मूल सूत्रपाठ, जिनदासगणिकृत चूर्णि के मूल सूत्रपाठ तथा हरिभद्रकृत टीका के मूल सूत्रपाठ इन तीनों में कहीं-कहीं थोड़ा-सा अंतर है। नीचे इनके कुछ नमूने दिए जाते हैं जिनसे यह अंतर समझ में आ सकेगा। यही बात अन्य सूत्रों के व्याख्याग्रंथों के विषय में भी कही जा सकती है। दशवैकालिक सूत्र की गाथाओं" के अंतर के कुछ नमूने इस प्रकार हैं---
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अध्ययन गाथा अगस्त्यसिंहकृत
चूर्णि
1
2.
2
3
3
4
5 (प्र.उ.)
5(')
5(")
5(")
7
7
8
10
10
3
3
1
4
2
1
2
5
5
3
5(")
27 5 (द्वि.उ.) 24
7
15
4
10
5
13
13
15
9 (प्र.उ.)
9 (fa.31.) 1
12
22
9 (तृ.उ.) 15
9 (च.उ.) 11
23
3
1
19
1 चूलिका 14
4
19
3
4
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मुक्का
साहबो
अहागडे हिं...
पुणे
कहं णु कुज्जा कतिहं कुज्जा (पाठान्तर)
कयाहं कुज्जा (")
कहं सकुज्जा (")
छिंदाहि रागं
विण हि दोसं
संपुच्छणं संपुच्छगो (पाठा.)
खवेत्तु
चित्तमंतमक्खा.
(पाठा.)
इच्छेतेहिं छहिं जीवनिकायेहि
पाण-भूते य
अणातिले
जहाभागं
पाणियकम्मतं
इच्छेज्जा
धारए
आयारभावदोसेण
गाथा नहीं
गाथा नहीं
भवियव्वं
चिट्टे
साला
घुणिय
आरुहंतिएहिं
दग
विवज्जयित्ता
कुसीलं
ण प्पचर्लेति
निप्फेडो
ਰਂ
जिनदासकृत
चूर्णि
मुत्ता
साहूणो
अहाकडेसु.....
पुप्फेहिं कतिहं कुज्जा
कयाहं कुज्जा (पाठा)
कहं णु कुज्जा (")
छिंदाहि दोसं
विणएज्ज रागं
संपुच्छणा
खवेत्ता
चित्तमत्ता अक्खा
(पाठा.)
इच्चेतेहिं छहिं
जीवनिकायेहि
पाण-भूते य
अणाउले
जहाभावं
दगभवणाणि य
इच्छेज्जा
धारए
गाथा नहीं
गाथा है
गाथा है
होयव्वयं
चिट्ठे
साला
घुणिय
आरहंतेहिं
दग
विविंच धीर!
JI!.
सकुसीलं
णो पयति
निग्धाडो
हरिभद्रकृत
चूर्णि
मुत्ता
साहूणो अहागहेसु.....
पुप्फेसु
कहं णु कुज्जा कतिहं कुज्जा (पा.) कयाहं कुज्जा (")
कथमहं (कहहं)
छिंदाहि दोसं
विणएज्ज रागं
संपुच्छण
खवेत्ता
चित्तमंत्तमक्खा (पाठा.)
इच्चेसि जीवनिकायाणं पाणि-भूयाई
dhininitdad
अणाउले
जहाभागे
दगभवणाणि य
घावए
आयारभावदोसन्
गाथा नहीं
गाथा नहीं
?
सिक्खे चिट्टे (पाठा.)
साहा.
विहुय
आरहंतेहिं
तण
विवज्जयित्ता
कुसिला
न
उत्तारो
तम्हा
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