Book Title: Agamik Churniya aur Churnikar
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf
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________________ गायन कल्पसूत्रपाठ, निमलित है बेचरदास यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ - जैन आगम एवं साहित्य 53. अहवा बितियचुनिकाराभिपायेण चत्तारि.... जीतकल्पचूर्णि, 71. वही, पृ.५४ 72. वही, पृ. 55 54. वही, पृ. 3,4,21 73. वही, पृ. 102 55. वही, पृ.४ 74. वही, पृ. 105, आचार्य हरिभद्रकृत धूर्ताख्यान का आधार 56. वही, पृ. 30 यह प्राचीन कथा है। 57. प्रस्तुत चूर्णि की हस्तलिखित प्रति श्री पुण्यविजय जी की 75. वही, पृ. 165-166 कृपा से प्राप्त हुई अतः लेखक मुनिश्री का अत्यन्त आभारी 76. इस चर्णि की हस्तलिखित प्रति श्री पण्यविजयजी की कपा है। यह प्रति जैसलमेर ज्ञानभण्डार से प्राप्त प्राचीन प्रति की से प्राप्त हुई अतः उनका अति आभारी हूँ। इसका आठवाँ प्रतिलिपि है। अध्ययन कल्पसूत्र के नाम से अलग प्रकाशित हुआ है 58. दशवैकालिकचूर्णि, पृ. 2 जिसमें मूलसूत्रपाठ, नियुक्ति, चूर्णि और 59. वही, पृ. 7-8 पृथ्वीचन्द्राचार्यविरचित टिप्पनक सम्मिलित हैं। सम्पादक -- मुनि श्री पुण्यविजयजी, गुजराती भाषान्तर - पं. बेचरदास 60. नियुक्तिगाथा - जीवाजीवाहिगमो चरित्तधम्मो तहेव जयणा जीवराज दोसी, चित्रविवरण - साराभाई मणिलाल नवाब, य। उवएसो धम्मफलं छज्जीवणियाइ अहिगारा / / प्राप्तिस्थान - साराभाई मणिलाल नवाब, छीपा मावजीनी 61. वही, पृ. 146-47 पोल, अहमदाबाद, सन् 1952 62. वही, पृ. 497 77. मुनि श्रीपुण्यविजयजी द्वारा स्वीकृत पाठ के आधार पर इन 63. गाथा-संख्या का आधार मनिश्री पुण्यविजयजी द्वारा तैयार शब्दों का संग्रह किया गया है। की गई दशवैकालिक की हस्तलिखित प्रति है। 78. इस चूर्णि की हस्तलिखित प्रति के लिए मुनि श्रीपुण्यविजयजी 64. देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार, ग्रंथांक - 47 का कृतज्ञ हूँ जिन्होंने अपनी निजी संशोधित प्रति मुझे देने की कृपा की। 65. सम्पादक-उपाध्याय श्री अमरचन्द व मुनि श्रीकन्हैया लाल जी, सन्मति ज्ञानपीठ,लोहामण्डी, आगरा, सन् 1957-1960 1. निशोथ: एक अध्ययन - पं. दलसख मालवणिया सन्मति 80. वहा, पृ. 25 ज्ञानपीठ, आगरा, सन् 1959 . 81. वही, पृ. 37 66. सा य छव्विहा - जहा दसवेयालिए भणिया तहा भाणियव्वा। 82. वही, पृ. 1383 प्रथम भाग, पृ. 2 83. वही, पृ. 1620 67. भाष्यगाथा - 3 68. निशीथविशेषचूर्णि, पृ. 34 - जैन साहित्य के 69. वही, पृ. 34-35 वृहद् इतिहास से साभार। - सम्पादक 70. एसा भइबाहुसामिकता गाहा -वही, पृ. 38 ordarorrorariwariandaridroindianitidariniwas 41 r inivaririwniromotoroorinivarioritroriroinnar Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org