Book Title: Agam me Sukshma Jivo ki Vaigyanik Vyakhya
Author(s): Chandanraj Mehta
Publisher: Z_Mohanlal_Banthiya_Smruti_Granth_012059.pdf

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________________ आगमों में सूक्ष्म जीवों की वैज्ञानिक व्याख्या - चन्दनराज मेहता जैन आगमों के आधार पर जीव दो प्रकार के होते हैं त्रस और स्थावर । जो जीव सुख पाने के लिए और दुख से निवृत्त होने के लिये एक स्थान से दूसरे स्थान में गमनागमन कर सकते हैं वे त्रस हैं। जिन जीवों में सलक्ष्य गमनागमन की क्षमता नहीं होती, स्थावर कहलाते हैं । दो, तीन, चार और पांच इन्द्रिय वाले सभी जीव त्रस हैं। एक इन्द्रिय वाले जीव पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति स्थावर जीव हैं । त्रस और स्थावर इस वर्ग में संसार के समस्त प्राणियों का समावेश हो जाता है । दर्शन दिग्दर्शन पृथ्वी, पानी, वनस्पति आदि जो जो जीव दृश्य हैं वे बादर है और जो आंखों के विषय नहीं है वे सूक्ष्म है। जैन आगमों में छह जीव निकाय के रूप में प्रसिद्ध हैं। काय का अर्थ है शरीर । पृथ्वी है जिन जीवों का शरीर, वे जीव पृथ्वीकायिक हैं। इस वर्ग में मिट्टी मुरड़, हीरा, पन्ना, कोयला, सोना, चांदी आदि अनेक प्रकार के जीव हैं। मिट्टी की एक छोटी-सी डली में असंख्य जीव होते हैं। ये जीव एक साथ रहने पर भी अपनी स्वतंत्र सत्ता बनाये रखते हैं । Jain Education International 2010_03 पानी जिन जीवों का शरीर है, वे आप्कायिक हैं। जिन जीवों का शरीर अग्नि है, वे जीव तेजसकायिक हैं। जिन जीवों का शरीर वायु है वे जीव वायुकायिक कहलाते हैं। जिन जीवों का शरीर वनस्पति है, वे जीव वनस्पति कायिक कहलाते हैं । इस काय में रहने वाले जीवों के दो प्रकार होते हैं- प्रत्येक वनस्पति और साधारण वनस्पति । प्रत्येक वनस्पति के जीव एक-एक शरीर में एक ही होते हैं। एक जीव के आश्रित असंख्य जीव रह सकते हैं पर उनकी सत्ता स्वतंत्र है । साधारण वनस्पति में एक-एक शरीर अनन्त जीवों का पिण्ड होता है । सब प्रकार की काई, कन्द, मूल आदि साधारण वनस्पति है । २१८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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