Book Title: Agam Suttani Satikam Part 22 Vyavahara
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
View full book text
________________
76
| २४.
६.
७२
६२
क
।
१३
।
[9] અમારા સંપાદીત ૪૫ આગમોમાં આવતા મૂલ નો અંક તથા તેમાં સમાવિષ્ટ ગાથા क्रम | आगमसूत्र | मूलं | गाथा | क्रम | आगमसूत्र | मूलं | गाथा १. | आचार | ५५२ | १४७ | २४. | चतुःशरण । ६३ । ६३ सूत्रकृत ८०६ ७२३ | २५. आतुरप्रत्याख्यान
७१
| ७० स्थान
१०१० १६९ | २६. | महाप्रत्याख्यानं । १४२ | १४२ समवाय ३८३ ९३ | २७. | भक्तपरिज्ञा
१७२ | १७२ भगवती १०८७ ११४ | २८. तंदुलवैचारिक
१६१
| १३९ ज्ञाताधर्मकथा २४१ ५७ | २९. . संस्तारक
१३३ १३३ उपासक दशा १३ | ३०. | गच्छाचार
१३७ । १३७ अन्तकृद्दशा
१२ । ३१. | गणिविद्या अनुत्तरोपपातिक ४ | ३२. | देवेन्द्रस्तव
३०७ ३०७ १०. | प्रश्नव्याकरण
४७ १४ | ३३. | मरणसमाधि ६६४ । ६६४ ११. विपाकश्रुत ४७ | ३ | ३४. | निशीष ।
१४२० १२.| औपपातिक ७७
| ३५. | बृहत्कल्प
२१५ १३.| राजप्रश्निय । ८५ । - | ३६. | व्यवहार
२८५ १४. जीवाभिगम ३९८
| ३७. | दशाशतरकार
दशाश्रुतस्कन्ध ११४ १५.| प्रज्ञापना ६२२ २३१ ३८. जीतकल्प
१०३ | १०३ १६.| सूर्यप्रज्ञप्ति | २१४ | १०३ | ३९. | महानिशीथ । १५२८ १७. चन्द्रप्रज्ञप्ति २१८ | १०७ | ४०. | आवश्यक
९२ | २१ १८. जम्बूदीपप्रज्ञप्ति | ३६५ १३१ | ४१. | ओघनियुक्ति ११६५ ११६५ १९. निरयावलिका
४१. । पिण्डनियुक्ति
७१२ । ७१२ २०. कल्पवतंसिका
४२.
दशवैकालिक ५४० २१. पुष्पिता
११
२ | ४३. | उत्तराध्ययन १७३१ १६४० | पुष्पचूलिका १ . ४४. | नन्दी
१६८ ९३ २३. / वण्हिदशा
१ | ४५. | अनुयोगद्वार ३५० | १४१
८
३
नों :- 631 गाथा संध्यानी समावेश मूलं मां 45 °४०१य छे. ते मूल सिपायनी मस गाथा समावी नही. मूल श६ मे समो. सूत्र भने गाथा बने भाटे नो. आपेलो. संयुस्त भनुम छे. गाथा घi४ संपाहनोमा सामान्य घरावती जोपाथी तनी मसाज આપેલ છે. પણ સૂત્રના વિભાગ દરેક સંપાદકે ભિન્નભિન્ન રીતે કર્યા હોવાથી અમે સૂત્રાંક જુદો પાડતા નથી.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564