Book Title: Agam Suttani Satikam Part 12 Suryapragnapti Chandrapragnapati
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 332
________________ અમારા સંપાદીત ૪૫ આગમોમાં આવતા મૂલ નો અંક તથા તેમાં સમાવિષ્ટ ગાથા क्रम | आगमसूत्र मूलं गाथा | क्रम | आगमसूत्र गाथा १. आचार | ५५२ ८०६ सूत्रकृत ७१ स्थान १०१० १४२ १४२ समवाय ३८३ १७२ १७२ १०८७ १६१ । १३९ | भगवती ६. | ज्ञाताधर्मकथा २४१ १३३ १३३ | १४७ २४. | चतुःशरण । |७२३ । २५. | आतुरप्रत्याख्यान | १६९ २६. महाप्रत्याख्यान २७. भक्तपरिज्ञा ११४ | २८. तंदुलवैचारिक । ५७ | २९. | संस्तारक | ३०. गच्छाचार | ३१. गणिविद्या | ३२. देवेन्द्रस्तव I १४ । ३३. । मरणसमाधि ३४. निशीष बृहत्कल्प उपासक दशा | ७३ १३७ | १३७ ८२ | ३०७ | ३०७ | ४७ ६६४ |६६४ १४२० ওও ३५. २१५ ८५ व्यवहार २८५ | ३९८ ११४ ६२२ २३१ १०३ १०३ अन्तकृद्दशा अनुत्तरोपपातिक १०. प्रश्नव्याकरण ११. विपाकश्रुत १२. औपपातिक १३. राजप्रश्निय १४. जीवाभिगम १५. प्रज्ञापना १६. सूर्यप्रज्ञप्ति १७. चन्द्रप्रज्ञप्ति १८. जम्बूदीपप्रज्ञप्ति निरयावलिका | कल्पवतंसिका २१. पुष्पिता २२. | पुष्पचूलिका २३., वहिदशा २१४ १०३ १५२८ २१८ ९२ ३६५ १३१ ११६५ ९३ | ३७. | दशाश्रुतस्कन्ध ३८. जीतकल्प ३९. महानिशीथ १०७ आवश्यक ४१. ओघनियुक्ति | ४१. | पिण्डनियुक्ति | ४२.. दशवैकालिक | ४३. उत्तराध्ययन | ४४. नन्दी | १ | ४५. | अनुयोगद्वार ७१२ ७१२ ५४० | ५१५ | ११ १७३१ १६४० । १ १६८ . ३५० | १४१ नों :- 651 गाथा संध्याको समावेश मूलं मां 25 °४°१य छे. ते मूल सिवायनी म गाथा सम४वी नही. मूल श६ मे. समोसूत्र भने गाथा बने भाटे नो भोपेतो संयुक्त भनुम छे. गाथा Mix संपानीमा सामान्य मं धरावती होवाथी तेनो सस આપેલ છે. પણ સૂત્રના વિભાગ દરેક સંપાદકે ભિન્નભિન્ન રીતે કર્યા હોવાથી અમે સૂત્રાંક જુદો પાડતા નથી. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340