Book Title: Agam 44 Nandisuyam Padhama Chuliya Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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से किं तं चूलियाओ ? चूलियाओ आइल्लाणं चउण्हं पुव्वाणं चूलिया, सेसाइं पुव्वाइं अचूलियाई, से त्तं चूलियाओ ।
दिट्ठिवायस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अनओगदारा संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ, से णं अंगठ्ठयाए बारसमे अंगे एगे सुयक्खंधे चोद्दसपुव्वाइं संखेज्जावत्थू संखेज्जा चुल्लवत्थू संखेज्जापाहुडा संखेज्जा पाहुडपाहुडा संखेज्जाओ पाहुडियाओ संखेज्जाओ पाहुड-पाहुडियाओ संखेज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं संखेज्जा अक्खरा अनंता गमा अनंता पज्जवा० जाव उवदंसिज्जंति, से एवं आया जाव आधविज्जंति, से त्तं दिद्विवाए |
[१५५] इच्चेइयंमि दुवालसंगे गणिपिडगे अनंता भावा अनंता अभावा अनंता हेऊ अनंता अहेऊ अनंता कारणा अनंता अकारणा अनंता जीवा अनंता अजीवा अनंता भवसिद्धिया अनंता अभवसिद्धिया अनंता सिद्धा अनंता असिद्धा पन्नत्ता ।
[१५६] भावमभावा हेऊमहेऊ कारणमकारणा चेव ।। जीवाजीवा भवियमभविया सिद्धा असिद्धा य ।।
[१५७] इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अनंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं सुत्तं-१५७
संसारकंतारं अनुपरियट्टिसु, इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पन्न काले परित्ता जीवा आणाए विराहिता चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियदृति, इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं अनागए काले अनंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियट्टिस्संति, इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अनंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं वीईवइंसु, इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं पड़प्पन्न काले परित्ता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं वीईवयंति, इच्चेइयं दुवालसंग गणिपिडगं अनागए काले अनंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं वीईवइस्संति,
इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं न कयाइ नासी न कयाइ न भवइ न कयाइ न भविस्सइ भुविं च भवइ य भविस्सइ य, धुवे नियए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए निच्चे, से जहानामए पंचत्थिकाए न कयाइ नासी न कयाइ नत्थि न कयाइ न भविस्सइ भुविं च भवइ य भविस्सइ य धुवे नियए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए निच्चे, एवामेव दुवालसंगे गणिपिडगे न कयाइ नासी न कयाइ नत्थि न कयाइ न भविस्सइ भुविं च भवइ य भविस्सइ य धुवे नियए सासए अक्खए अव्वए अवहिए निच्चे से समासओ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा- दव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ, तत्थ दव्वओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वदव्वाइं जाणइ पासइ, खेत्तओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वं खेत्तं जाणइ पासइ, कालओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वं कालं जाणइ पासइ, भावओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वे भावे जाणइ पासइ ।
[१५८] अक्खर सण्णी सम्मं साइयं खलु सपज्जवसियं च । गमियं अंगपविद्वं सत्तवि एए सपडिवक्खा ।। [१५९] आगम-सत्थग्गहणं जं बुद्धिगुणेहिं अट्ठहिं दिहुँ । बिंति सुयनाणलंभं तं पुव्वविसारया धीरा ।। [१६०] सुस्सूसइ पडिपुच्छइ सुणइ गिण्हइ य ईहए यावि । तत्तो अपोहए वा धारेइ वा सम्मं ।।
दीपरत्नसागर संशोधितः]
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[४४-नंदीसूयं]

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