Book Title: Agam 38 Jiyakappo Panchamam Cheyasuttam Mulam PDF File Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Deepratnasagar View full book textPage 7
________________ गाहा-६७ - - - - _ [७३] - - [१७] गिम्ह-सिसिर-वासासं देज्ज ऽहम-दसम-बारसंताई । नाउं विहिणा नवविह-स्यववहारोवएसेणं ।। [६८] हट्ठ-गिलाणा भावम्मि-देज्ज हट्ठस्स न 3 गिलाणस्स जावइयं वा विसहइ तं देज्ज सहेज्ज वा कालं ।। [६९] पुरिसा गीया ऽगीया सहाऽसहा तह सढाऽसढा केई परिणामाऽपरिणामा अइपरिणामा य वत्थूणं ।। तह धिइ-संघयणोभय-संपन्ना तदुभएण हीना य आय-परोभय-नोभय-तरगा तह अन्नतरगा य ।। [७१] कप्पट्ठियादओ वि य चउरो जे सेयरा समक्खाया सावेक्खेयर-भेयादओ वि जे ताण पुरिसाणं ।। [७२] जो जह-सत्तो-बहुत्तर-गुणो व तस्साहियं पि देज्जाहि । हीनस्स हीनतरगं झोसेज्ज व सव्व-हीनस्स ।। एत्थ पुण बहुतरां भिक्खुणो त्ति अकयकरणाणभिगया य । जंतेण जीयमहम-भत्तंतं निव्वियाईयं ।। [७४] आउट्टियाइ दप्प-प्पमाय- कप्पेहि वा निसेवेज्जा दव्वं खेत्तं कालं भावं वा सेवओ परिसो ।। जं जीय-दानमुत्तं एयं पायं पमायसहियस्स एत्तो च्चिय ठाणंतरमेगं वड्ढेज्ज दप्पवओ || [७६] आउट्टियाइ ठाणंतरं च सट्ठाणमेव वा देज्जा कप्पेण पडिक्कमणं तदुभयमहवा विनिद्दिढ़ ।। आलोयण-कालम्मि वि संकेस-विसोहि-भावओ नाउं हीनं वा अहियं वा तम्मत्तं वा वि देज्जाहि ।। [७८] इति दव्वाइ-बहु-गुणे गुरु-सेवाए य बहुतरं देज्जा हीनतरे हीनतरं हीनतरे जाव झोस त्ति ।। [७९] झोसिज्जइ सुबहु पि हु जीएण ऽन्नं तवारिहं वहओ । वेयावच्चकरस्स य दिज्जइ सानुग्गहतरं वा ।। [८०] तव-गविओ तवस्स य असमत्थो तवमसद्दहन्तो य तवसा य जो न दम्मइ अइपरिणाम-प्पसंगी य ।। सुबहुत्तर-गुण-भंसी छेयावत्तिसु पसज्जमाणो य पासत्थाई जो वि य जईण पडितप्पिओ बहसो ।। [८२] उक्कोसं तव-भूमि समईओ सावसेस-चरणो य छेयं पणगाईयं पावइ जा धरइ परियाओ ।। [८३] आउट्टियाइ पंचिंदिय-धाए मेहणे य दप्पेणं सेसेसुक्कोसाभिक्ख- सेवणाईस् तीसं पि || [दीपरत्नसागर संशोधितः] [३८/१-जीयकप्पो ] - - - - - - - [6] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9