Book Title: Agam 33 Virstava Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar View full book textPage 8
________________ आगम सूत्र ३३, पयन्नासूत्र-१०, 'वीरस्तव' सूत्र-४० तुम्हारे पास शिव-आयुध नहीं है और तुम नीलकंठ भी नहीं तो भी जीव की बाह्य-अभ्यंतर (कर्म) रज को तुम हर लेते हो इसलिए तुम हर (शीव) हो । सूत्र - ४१ कमल समान आसन है । चार मुख से चतुर्विध धर्म कहते हैं । हंस अर्थात् ह्रस्वगमन से जानेवाले हो इसीलिए तुम ही ब्रह्मा कहलाते हो । सूत्र - ४२ समान अर्थवाले ऐसे जीव आदि तत्त्व को सबसे ज्यादा जानते हो । उत्तम निर्मल केवल (ज्ञान-दर्शन) पाए हुए हो इसलिए तुम्हें बुद्ध माना है। सूत्र - ४३ श्री वीर जिणंद को इस नामावलि द्वारा मंदपुन्य ऐसे मैंने संस्तव्य किया है । हे जिनवर ! मुज पर करुणा करके हे वीर ! मुजे पवित्र शीवपंथ में स्थिर करो। ३३ वीरस्तव-प्रकिर्णक-१० का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् (वीरस्तव) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवादः मुनि दीपरत्नसागर कृत्-(वीरस्तव)- आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Pages Page 8Page Navigation
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