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प्रकाशकीय
___ "ज्ञानदान सबसे महान् दान है।'' इस वचन के अनुरूप परम श्रद्धेय उपप्रवर्तक श्री अमर मुनि जी ने भगवद् वाणी के रूप में निबद्ध जैन सूत्रों का हिन्दी-अंग्रेजी अनुवाद कराकर चित्र सहित प्रकाशन की
महत्त्वपूर्ण दीर्घकालीन योजना बनाई है। ___इस योजना मे अब तक निम्न आगम प्रकाशित हो चुके हैं
• आचारांगसूत्र (भाग १, २) • ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र (भाग १, २) • अन्तकृद्दशासूत्र • कल्पसूत्र • उत्तराध्ययनसूत्र • दशवकालिकसूत्र • नन्दीसूत्र • उपासकदशा एवं अनुत्तरौपपातिकदशासूत्र • अनुयोगद्वारसूत्र (भाग १) • रायप्रश्नीयसूत्र ___ हमारा यह परम सौभाग्य है कि परम श्रद्धेय स्व. उत्तर भारतीय प्रवर्तक महास्थविर गुरुदेव भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी महाराज द्वारा प्रदत्त प्रेरणा और आशीर्वाद से उपप्रवर्तक श्री अमर मुनि जी आगम सेवा के इस महान् पुण्य कार्य मे हम सबको प्रेरणा और प्रोत्साहन प्रदान कर युग-युग तक चिरस्थायी रहने वाला ज्ञानदीप प्रज्वलित कर रहे हैं। यह ज्ञानदीप न तूफानों में चंचल होता है और न ही महाकाल के थपेडों से बुझ पाता है। वास्तव मे 'अमर ज्ञानदीप' जलाकर श्री अमर मुनि जी एक युगान्तरकारी कार्य कर रहे है। ___ सचित्र आगम प्रकाशन योजना में इस अनुयोगद्वारसूत्र का कार्य जो दो भागो में सम्पन्न हो चुका है। पाठकों के हाथों में है। ___ जैनधर्म-दर्शन के मूल शब्दो का अभिप्राय समझकर उनके भाव के अनुसार अंग्रेजी मे उनका अनुवाद करना वास्तव मे बहुत ही कठिन और व्यापक चिन्तन-मनन का कार्य है। खासकर अनुयोगद्वार जैसे आगम मे तो बहुत ही श्रम करना पड़ा है। फिर भी हमे सतोष है कि विद्वान् अनुवादक ने आगमो के भाव के अनुसार मनन करके अंग्रेजी परिभाषाएँ बनाई हैं और उनको सुन्दर सहज रूप से प्रस्तुत किया है।
श्रीचन्द जी सुराना (अनुवाद, विवेचन व सम्पादन) तथा श्री सुरेन्द्र बोथरा (अग्रेजी अनुवाद) का सहयोग तो प्रारम्भ से ही हमे उपलब्ध है। इसके साथ ही आगमों के ज्ञाता विद्वान् श्री राजकुमार जी जैन (रिटायर्ड आई. ए. एस., दिल्ली) भी आगम सेवा के इस अभियान से जुड़ गये हैं।
चित्रकार डॉ. त्रिलोक शर्मा ने इस आगम के चित्र बनाये हैं। चित्रों के माध्यम से आगमो का गम्भीर कथन बहुत ही सरल रूप मे प्रकट हो गया है, जो सबके लिए सुबोध है। इन चित्रो के रेखांकन आगमो की मर्मज्ञ विदुषी डॉ. सरिता जी महाराज को दिखाये गये है और उनके सुझाव अनुसार उचित सशोधन भी किया गया है। हम सभी सहयोगी बंधुओ के प्रति कृतज्ञ है। भविष्य में उनके सहयोग की आशा/आकाक्षा के साथ।
महेन्द्रकुमार जैन
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अध्यक्ष
पद्म प्रकाशन
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