Book Title: Agam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Author(s): Aryarakshit, Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 15
________________ (२) तीर्थंकर गण्डिकानुयोग— तीर्थंकर प्रभु की जीवनियाँ। (३) गणधर गण्डिकानुयोग- गणधरों की जीवनियाँ । (४) चक्रवर्ती गण्डिकानुयोग— भरतादि चक्रवर्ती राजाओं की जीवनियाँ। (५) दशार्ह गण्डिकानुयोग- समुद्रविजय आदि दशा) की जीवनियाँ। (६) बलदेव गण्डिकानुयोग— राम आदि बलदेवों की जीवनियाँ। (७) वासुदेव गण्डिकानुयोग- कृष्ण आदि वासुदेवों की जीवनियाँ। (८) हरिवंश गण्डिकानुयोग— हरिवंश में उत्पन्न महापुरुषों की जीवनियाँ। (९) भद्रबाहु गण्डिकानुयोग— भद्रबाहु स्वामी की जीवनी। (१०) तपःकर्म गण्डिकानुयोग— तपस्या के विविध रूपों का वर्णन। (११) चित्रान्तर गण्डिकानुयोग- भगवान् ऋषभ तथा अजित के अन्तर समय में उनके वंश के सिद्ध या सर्वार्थसिद्ध में गये हैं, उनका वर्णन। (१२) उत्सर्पिणी गण्डिकानुयोग— उत्सर्पिणी काल का विस्तृत वर्णन। (१३) अवसर्पिणी गण्डिकानुयोग— अवसर्पिणी काल का विस्तृत वर्णन। देव, मानव, तिर्यंच और नरक गति में गमन करना, विविध प्रकार से पर्यटन करना आदि का अनुयोग 'गण्डिकानुयोग' में है। जैसे वैदिकपरम्परा में विशिष्ट व्यक्तियों का वर्णन पुराण साहित्य में हुआ है, वैसे ही जैनपरम्परा में महापुरुषों का वर्णन गण्डिकानुयोग में हुआ है। गण्डिकानुयोग की रचना समय-समय पर मूर्धन्य मनीषी तथा आचार्यों ने की। पंचकल्पचूर्णि२३ के अनुसार कालकाचार्य ने गण्डिकाएँ रची थीं, पर उन गण्डिकाओं को संघ ने स्वीकार नहीं किया। आचार्य ने संघ से निवेदन किया—मेरी गण्डिकाएं क्यों स्वीकृत नहीं की गई हैं ? उन गण्डिकाओं में रही हुई त्रुटियाँ बतायी जायें, जिससे उनका परिष्कार किया जा सके। संघ के बहुश्रुत आचार्यों ने उन गण्डिकाओं का गहराई से अध्ययन किया और उन्होंने उन पर प्रामाणिकता की मुद्रा लगा दी। इससे यह स्पष्ट है—कालकाचार्य जैसे प्रकृष्ट प्रतिभासम्पन्न आचार्य की गण्डिकाएं भी संघ द्वारा स्वीकृत होने पर ही मान्य की जाती थीं। इससे गण्डिकाओं की प्रामाणिकता सिद्ध होती है। अनुयोग का अर्थ व्याख्या है। व्याख्येय वस्तु के आधार पर अनुयोग के चार विभाग किये गये हैं—चरणकरणानुयोग, धर्मकथानुयोग, गणितानुयोग और द्रव्यानुयोग। दिगम्बरपरम्परा के ग्रन्थ द्रव्यसंग्रह की टीका५ में, पंचास्तिकाय में, तत्त्वार्थवृत्ति में इन अनुयोगों के नाम इस प्रकार मिलते हैं—प्रथमानुयोग, चरणानुयोग, करणानुयोग और द्रव्यानुयोग। श्वेताम्बर और दिगम्बर ग्रन्थों में नाम और कर्म में कुछ अन्तर अवश्य है पर भाव सभी का एक२३. पञ्चकल्पचूर्णि। -कालकाचार्य प्रकरण, पृ. २३-२४ २४. चत्तारिउ अणुओगा, चरणे धम्म गणियाणुओगे य । दवियाऽणुओगे य तहा, जहकम्मं ते महड्डीया ॥ -अभिधान राजेन्द्रकोष, प्र. भाग, पृ. २५६ प्रथमानुयोगो...चरणानुयोगो...करणानुयोगो...द्रव्यानुयोगो इत्युक्तलक्षणानुयोगचतुष्टयरूपे चतुर्विधं श्रुतज्ञानं ज्ञातव्यम्। —द्रव्यसंग्रह टीका, ४२/१८२ २६. पंचास्तिकाय, १७३ २७. तत्त्वार्थवृत्ति, २५४/१५ [१२]

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